हरियाणा चुनाव में बीजेपी की अप्रत्याशित जीत हुई है। जिस नतीजे की उम्मीद किसी ने नहीं की थी, जिस बढ़त को कोई भी एग्जिट पोल नहीं पकड़ पाया था, चुनाव में बीजेपी ने वो कमाल कर दिखाया है। उसे अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिला है, वहीं कांग्रेस उस जादुई आंकड़े से काफी पीछे छूट गई है। अब वैसे तो बीजेपी ने शहरी सीटों पर जबरदस्त प्रदर्शन किया है, ग्रामीण सीटों में भी उसकी सेंधमारी रही है, लेकिन अगर बात सिर्फ आरक्षित सीटों की हो तो वहां भी उसका प्रदर्शन जबरदस्त कहा जाएगा।

हरियाणा की आरक्षित सीटें कौन सी?

हरियाणा में 90 में से 17 सीटें आरक्षित रहती हैं। इसमें अंबाला जिले में मुलाना, यमुनानगर में साढौरा, कुरुक्षेत्र में शाहाबाद, कैथल में गुहला, करनाल में नीलोखेड़ी, पानीपत में इसराना, जींद में नरवाना, सिरसा में कालांवाली, फतेहाबाद में रतिया, गुरुग्राम में पटौदी, सोनीपत में खरखौदा, हिसार में उकलाना, भिवानी में भवानी खेड़ा, झज्जर में झज्जर सीट, रोहतक में कलानौर, रेवाड़ी में बावल और पलवल में होडल सीट शामिल है।

इस बार बीजेपी ने आरक्षित वाली कितनी सीटें जीती?

अब चुनावी आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी इन 17 आरक्षित सीटों में से 8 जीत चुकी है। यहां भी बीजेपी ने कई उन सीटों पर इस बार कब्जा किया है जो पिछली बार दुष्यंत चौटाला की पार्टी ने जीत ली थी। पिछले विधानसभा चुनाव में जेजेपी को आरक्षित सीटों में के कोटे से 4 पर जीत मिली थी। इस बार उसका सूपड़ा साफ हो गया है और सीधा फायदा बीजेपी को मिला है।

बीजेपी ने विधानसभा चुनाव की नीलोखेड़ी, नीलोखेड़ी, इसराना, खरखौदा, नरवाना,भवानी खेड़ा, बावल, पटौदी, होडल सीट पर जीत दर्ज की है। अब यह जीत मायने इसलिए रखती है क्योंकि इस बार के लोकसभा चुनाव देखें तो वहां भी बीजेपी को हरियाणा की दोनों ही आरक्षित सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था।

जानिए हरियाणा में कांग्रेस की हार के क्या कारण रहे

लोकसभा चुनाव में कैसा था बीजेपी का प्रदर्शन?

हरियाणा की सिरसा और अंबाला सीट पर कांग्रेस ने एक आसान जीत दर्ज की थी। लेकिन अब सिर्फ 4 महीनों के अंदर में समीकरण बदल गए हैं। बीजेपी ने 17 आरक्षित सीटों में से 8 पर विजयी परचम लहराया है। यह बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस ने दलित वोटबेस में जो सेंधमारी की थी, उसे बीजेपी ने कुछ हद तक हरियाणा के विधानसभा चुनाव में कम कर दिया है। बीजेपी के लिए इसे ज्यादा बड़ी कामयाबी इसलिए माना जा रहा है क्योंकि लोकसभा चुनाव के वक्द एससी-एसटी वाली कुल 132 आरक्षित सीटों में से 82 पर ही बीजेपी को जीत मिली थी, वही कांग्रेस ने अपना आंकड़ा 10 सीटों से बढ़ाकर 32 कर लिया था।

ऐसे में इस बार हरियाणा चुनाव में जब बीजेपी ने दलित सीटों पर कांग्रेस को काटे की टक्कर दी है और जेजेपी को पूरी तरह साफ कर दिया है, यह बताने के लिए काफी है कि पार्टी ने आत्ममंथन भी किया और अपनी रणनीति में बदलाव भी। इसी वजह से बीजेपी ने कई उन सीटों पर भी जीत दर्ज की है जो वैसे तो आरक्षित नहीं रहीं लेकिन वहां पर दलित वोट निर्णायक माने गए, उनकी उपस्थिति 20 फीसदी से ज्यादा की रही।

मिर्चिपुर-गोहाना कांड कांग्रेस को पड़े भारी

अब बीजेपी की स्थिति तो दलित वोटरों के बीच में सुधरी है, कांग्रेस का जो ग्राफ गिरा है, उसके कारण भी समझने जरूरी हैं। असल में इस चुनाव में बीजेपी ने जिस तरह से मिर्चिपुर और गोहाना दलित कांड को भुनाने की कोशिश की, जिस तरह से लोगों को उन पुरानी लेकिन अप्रत्याशित घटनाओं के बारे में याद दिलाया, उसने भी बीजेपी के पक्ष में माहौल बना दिया।

कुमारी शैलजा जैसे दलित नेताओं को लेकर कन्फ्यूज कांग्रेस

पूरे चुनाव के दौरान राहुल गांधी तो फिर जातिगत जनगणना के जरिए दलितों को साधते रहे, लेकिन बीजेपी ने काउंटर करने के लिए कांग्रेस की पिछली सरकारों के इतिहास को चुना। तब जानकार जरूर मान रहे थे कि उन पुरानी घटनाओं को उठा बीजेपी को ज्यादा फायदा नहीं होने वाला, लेकिन नतीजे बता रहे हैं कि कांग्रेस को उस नेरेटिव का नुकसान भी भुगतना पड़ा है। इसके ऊपर कांग्रेस ने क्योंकि कुमारी शैलजा जैसे बड़े दलित नेताओं को लेकर अपना स्टैंज स्पष्ट नहीं किया, अंत तक पता नहीं चल पाया कि वे सीएम बन पाएंगी या नहीं, इसे भी अब हार का एक कारण माना जा रहा है।