Haryana Human Rights Commission: हरियाणा मानवाधिकार आयोग (Haryana Human Rights Commission) ने राज्य के गृह विभाग पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। दरअसल, आयोग ने एक दिव्यांग चार्टर्ड अकाउंटेंट (Disabled Chartered Accountant) के कपड़े उतरवाने तथा उसके रिश्तेदार को उसकी अर्धनग्न तस्वीरें और वीडियो लेने की अनुमति देने के लिए यह एक्शन लिया है। जिसको बाद में उसको सोशल मीडिया पर शेयर किया गया था।
जस्टिस ललित बत्रा की अध्यक्षता वाली आयोग की पूर्ण पीठ ने बुधवार को जारी आदेश में कहा कि इस तरह का क्रूर और अपमानजनक व्यवहार, विशेष रूप से विकलांग व्यक्ति के साथ सभ्य समाज में पूरी तरह से अस्वीकार्य है। आयोग, जिसमें कुलदीप जैन और दीप भाटिया भी शामिल हैं। उन्होंने विभाग को दोषी पुलिस अधिकारियों से जुर्माना वसूलने की अनुमति दे दी है, जिनकी पहचान सहायक उपनिरीक्षक जगवती और कांस्टेबल राकेश कुमार के रूप में हुई है।
कोर्ट आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए फरीदाबाद निवासी शिकायतकर्ता अनिल ठाकुर ने कहा कि न्याय में भले ही देरी हुई हो, लेकिन आखिरकार न्याय मिल ही गया। मेरी गरिमा के हनन का कोर्ट ने संज्ञान लिया।
बता दें, ठाकुर को 24 मई, 2021 को एक आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया गया था। अपनी शिकायत में उन्होंने आरोप लगाया कि फरीदाबाद के सारन पुलिस स्टेशन में हिरासत के दौरान, उनके कपड़े उतारे गए, अर्ध-नग्न अवस्था में उनकी तस्वीरें खींची गईं और वीडियो बनाया गया, और बाद में ये तस्वीरें वायरल कर दी गईं। उन्होंने कहा कि इस घटना से उन्हें अत्यधिक मानसिक आघात और सार्वजनिक अपमान का सामना करना पड़ा, और उनके मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ।
पिछले चार वर्षों में जब फरीदाबाद पुलिस अपने अधिकारियों का बचाव करती रही तथा घटना की सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध कराने में विफल रही तो आयोग ने अपनी जांच शाखा के माध्यम से जांच कराई।
आयोग की जांच शाखा द्वारा की गई निष्पक्ष जांच से पुष्टि हुई कि एएसआई जगवती और कांस्टेबल राकेश कुमार ने ठाकुर को हिरासत में कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया था। हैरानी की बात यह है कि उन्होंने उनके रिश्तेदार (साले) को हिरासत के दौरान वीडियो रिकॉर्ड करने और तस्वीरें लेने की भी अनुमति दी। इससे न केवल पुलिस आचरण नियमों का उल्लंघन हुआ, बल्कि शिकायतकर्ता की निजता, गरिमा और मानसिक स्वास्थ्य पर भी कुठाराघात हुआ।
आयोग ने कड़े शब्दों में कहा कि यह घटना संवैधानिक मूल्यों और मानवीय गरिमा की मूल भावना को चुनौती देती है। कोई भी व्यक्ति, चाहे उसके खिलाफ कोई भी आरोप क्यों न लगे हों। उसका इस तरह अपमान नहीं किया जाना चाहिए। यह कृत्य संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।
आयोग ने अपने आदेश में कहा कि घटना के परिणामस्वरूप, शिकायतकर्ता ने लगातार भावनात्मक आघात, अपमान और अवसाद की शिकायत की है, जो हिरासत के माहौल में मानसिक पीड़ा के समान है। पुलिस हिरासत में रखे जाने से उत्पन्न मनोवैज्ञानिक परिणाम दीर्घकालिक और क्रूर, अमानवीय एवं अपमानजनक व्यवहार के समान हैं, इसलिए शिकायतकर्ता संवैधानिक और मानवाधिकार कानूनों के तहत न्यायिक सुरक्षा, निवारण और उचित मुआवजे का हकदार है।
आयोग के प्रोटोकॉल, सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी डॉ. पुनीत अरोड़ा ने बताया कि पैनल के निर्देशों के अनुसार, ‘हरियाणा सरकार के गृह विभाग को पीड़िता को मुआवजे के रूप में 50,000 रुपये देने का आदेश दिया गया है। हालांकि यह मुआवजा प्रतीकात्मक है, लेकिन यह राज्य द्वारा प्रत्येक नागरिक की गरिमा को बनाए रखने की अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करने को दर्शाता है। डॉ. अरोड़ा ने कहा कि पुलिस हिरासत को यातना और शर्मिंदगी का अड्डा नहीं बनना चाहिए। यह आदेश एक स्पष्ट संदेश देता है कि व्यवस्था हिरासत में दुर्व्यवहार या सत्ता के दुरुपयोग को बर्दाश्त नहीं करेगी।
(इंडियन एक्सप्रेस के लिए वरिंदर भाटिया)