हरियाणा चुनाव में बीजेपी ने एक ऐसी जीत दर्ज की जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। तमाम एग्जिट पोल बता रहे थे कि कांग्रेस का सियासी वनवास खत्म होने वाला है। लेकिन फिर असल नतीजे आए और कांग्रेस का सरकार बनाने का सपना चकनाचूर हो गया। अब कांग्रेस क्यों हारी, इसका विश्लेषण हो चुका है, बीजेपी ने कैसे सरकार बनाई, इस पर भी चर्चा हो गई। लेकिन एक बिंदू जिस पर किसी की नजर नहीं गई, वो रहा पीएम मोदी का इस बार चुनाव में कम सक्रिय होना।

पीएम मोदी ने हरियाणा में कितनी रैली कीं?

असल में इस बार पीएम नरेंद्र मोदी ने हरियाणा में सबसे कम रैलियां कीं, उनकी तरफ से सिर्फ चुनिंदा सीटों पर फोकस किया गया। इस बार के चुनाव में पीएम मोदी ने सिर्फ 4 रैलियों को संबोधित किया। यह हैरान कर देने वाला आंकड़ा रहा क्योंकि चुनावों में बीजेपी का सबसे चेहरा नरेंद्र मोदी रहते हैं, उनका सबसे बड़ा मुद्दा नरेंद्र मोदी होते हैं और उनकी जीत की इकलौती आस भी नरेंद्र मोदी ही हैं। ऐसे में इस बार जब अपने सबसे बड़े चेहरे को ही राज्य में कम सक्रिय करने का फैसला हुआ, हैरानी भी हुई और कई सवाल भी उठे। अब इसका कारण समझने की कोशिश करते हैं, लेकिन पहले जानते हैं कि पीएम मोदी ने कहां-कहां रैली की थीं।

पीएम मोदी का विनिंग स्ट्राइक रेट कितना?

इस बार के चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी ने बीजेपी के लिए सोनीपत, कुरूक्षेत्र, हिसार और पलवल में कुल 4 रैलियां की थीं। इसके जरिए उन्होंने विधानसभा की सीधे-सीधे 20 सीटों को कवर किया। अब जब चुनाव आयोग की वेबसाइट से डेटा खंगालते हैं तो पता चलता है कि इन 20 सीटों में से 11 पर बीजेपी को जीत मिली है। यानी कि पीएम मोदी का विनिंग स्ट्राइक रेट 55 फीसदी रहा है। दूसरी तरफ राहुल गांधी ने पीएम मोदी से ज्यादा प्रचार किया, उन्होंने जिलों महेंद्रगढ़, नूंह, सोनीपत, झज्जर, कुरुक्षेत्र, अंबाला, करनाल और हिसार में 8 रैलियां करने का काम किया।

बीजेपी का मुस्लिम कार्ड नकारा, कांग्रेस का ‘हिंदुत्व’ भी रिजेक्ट

उन्होंने इस प्रचार से हरियाणा की 33 सीटों को कवर भी किया, लेकिन कांग्रेस को सिर्फ 11 पर जीत दिला पाए, ऐसे में उनका स्ट्राइक रेट मात्र 33 प्रतिशत पर सिमट गया। लेकिन बात अगर पीएम मोदी की करें तो उन्होंने इस बार चुनाव में काफी कम प्रचार किया। इसे समझने के लिए 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी द्वारा किए गए प्रचार को डीकोड करना जरूरी है।

हरियाणा में कम होती चली गईं मोदी की रैली

पीएम मोदी ने 2014 के चुनाव में सबसे ज्यादा 10 रैलियों को संबोधित किया था। उस समय हरियाणा में बीजेपी कमजोर थी, संगठन उतना मजबूत था नहीं। ऐसे में पीएम मोदी ने अपने चेहरे और लोकप्रियता के दम पर पार्टी को 47 सीटें दिलवा दीं। फिर बात आई 2019 के विधानसभा चुनाव की जब पीएम मोदी ने 6 रैलियों को संबोधित किया। अब खट्टर का काम जनता के बीच में कुछ हद तक लोकप्रिय हो चुका था, ऐसे में पीएम की रैलियों की संख्या कम रही। उस चुनाव में अपने दम पर तो नहीं लेकिन जेजेपी के साथ मिलकर बीजेपी ने फिर सरकार बनाई।

अब इस बार पीएम मोदी ने सबसे कम 4 रैलियों को संबोधित किया। जानकार तो मान रहे हैं कि मोदी का कम प्रचार करना भी एक बड़ी रणनीति का हिस्सा है। इसे समझने के लिए उन राज्यों के चुनावी नतीजों को समझना जरूरी है जहां पर पीएम मोदी ने काफी प्रचार किया, लेकिन बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए कर्नाटक ले लेते हैं, पिछले साल यहां विधानसभा चुनाव हुए थे। बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया और प्रचंड बहुमत के साथ कांग्रेस ने अपनी सरकार बनाई।

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जहां मोदी का जरूरत से ज्यादा प्रचार, बीजेपी को नुकसान

उस चुनाव में पीएम मोदी ने 19 रैलियां और 6 रोड शो किए थे। लेकिन उनका खुद का स्ट्राइक रेट काफी कम रहा और बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। जानकारों ने तब इसका कारण माना कि पीएम मोदी की वजह से चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर जा रहा था, वहीं कांग्रेस लोकल मुद्दों के जरिए छोटी-छोटी पॉकेट्स में सेंधमारी करती चली गई। इसी तरह अगर पश्चिम बंगाल का उदाहरण लिया जाए, वहां भी पीएम मोदी ने अप्रत्याशित प्रचार किया था। कसम खाई गई थी कि ममता बनर्जी की सरकार को उखाड़ फेंक दिया जाएगा।

लोकसभा में मोदी मैजिक, विधानसभा में पड़ता फीका

उस चुनाव में पीएम मोदी ने 23 रैलियां की थीं, विधानसभा की 33 सीटों को कवर करने का काम किया, लेकिन बीजेपी को सिर्फ 15 पर जीत मिली। यानी कि बीजेपी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक का विनिंग स्ट्राइक रेट 50 फीसदी से भी कम रहा। अब यह सारे वो फैक्टर हैं जो सोचने पर मजबूर करते हैं कि लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक जो ज्यादा चलता है और विधानसभा चुनाव आते-आते वो कुछ फीका पड़ जाता है। इसका कारण यह है कि पीएम मोदी के साथ आते हैं राष्ट्रीय मुद्दे जो लोकसभा में फायदा दे सकते हैं, लेकिन विधानसभा में भी वैसा ही असर देखने को मिले, इसकी कोई गारंटी नहीं।

हरियाणा में कितनी बदली बीजेपी की रणनीति

इसी वजह से अब जब हरियाणा का चुनाव आया, बीजेपी ने फैसला किया कि पीएम मोदी से प्रचार तो करवाया जाएगा, लेकिन उन सीटों पर जिनकी फंसने की संभावना ज्यादा थीं। इसी वजह से पीएम मोदी ने अपने प्रचार के जरिए राई, आदमपुर, नलवा, बरवाला जैसी सीटों पर फोकस किया। बाकी सीटों पर जिम्मेदारी लोकल लीडरशिप के पास रही, कहना चाहिए नायब सिंह सैनी के पास रही। एक रणनीति के तहत इस चुनाव को बीजेपी ने स्थानीय बनाने का काम कर दिया था।

हरियाणा में बीजेपी लोकल मुद्दों के साथ

कांग्रेस तो पहलवानों का मुद्दा उठाती रही जिनका सिर्फ सीमित असर दिखा, उसने किसान आंदोलन का जिक्र किया, लेकिन उसका प्रभाव भी कुछ सीटों तक ही देखने को मिला। उसने अग्निवीर का मुद्दा उठाया, लेकिन वो भी राष्ट्रीय ज्यादा और स्थानीय कम माना गया। दूसरी तरफ बीजेपी ने अपने प्रचार के जरिए 1 लाख 20 हजार कच्चे कर्मचारियों के पक्के करने का ऐलान किया, किसानों को मिलने वाली एमएसपी का जिक्र किया और महिलाओं को मिलने वाले संभावित फायदों पर फोकस किया। उसका साफ असर चुनावी नतीजों में दिख रहा है।

मजबूत स्थानीय नेता, मोदी ने नहीं किया डॉमिनेट

इसके ऊपर हरियाणा में इस बार बीजेपी ने अपनी स्थानीय ईकाई पर काफी भरोसा जताया। कहने को पीएम मोदी सबसे बड़ा चेहरा, लेकिन इस बार हरियाणा में पोस्टर बॉय बने सैनी। उनको इतनी प्राथमिकता दी गई कि खट्टर तक को पोस्टरों से बाहर रखा गया। सिर्फ एक चेहरा प्रोजेक्ट हुआ- नायब सिंह सैनी। बीजेपी को इसका फायदा हुआ है क्योंकि एक स्थानीय चेहरे ने स्थानीय मुद्दों के जरिए बीजेपी का बेड़ा पार लगाने का काम किया।

महाराष्ट्र-झारखंड-दिल्ली के लिए बदली रणनीति?

अब हरियाणा ने बीजेपी को जो दिशा दिखाई है, माना जा रहा है कि महाराष्ट्र, झारखंड, दिल्ली जैसे राज्यों में भी यही रणनीति देखने को मिलने वाली है। पार्टी एक मजबूत लोकल लीडरशिप पर ज्यादा निर्भर रहने वाली है, वहां भी लोकल चेहरों को आगे कर चुनाव लड़ने की कवायद दिख सकती है। वही पीएम मोदी की जिम्मेदारी एक एक्स फैक्टर की हो सकती है जो पार्टी के लिए मुश्किल सीटों को निकालने का काम करेंगे। यानी कि लोकल मुद्दे प्लस मोदी का चेहरा बीजेपी का जीत का चुनावी मंत्र हो सकता है।