Donkey Route Immigration: अमेरिका के द्वारा अवैध रूप से वहां रह रहे भारतीय प्रवासियों को वापस भेजने के बीच पूरे पंजाब में और देश के अन्य इलाकों में इसे लेकर बहुत चिंता है कि ऐसे प्रवासियों का अब क्या होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप की सरकार अवैध अप्रवासियों के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाने जा रही है। ऐसे अवैध अप्रवासियों को लेकर अमेरिका से उड़ा एक विमान भारत पहुंच चुका है।
इस बीच पंजाब के 35 साल के शख्स हरजिंदर सिंह बताते हैं कि कैसे वह भी विदेश जाना चाहते थे लेकिन उन्हें वापस भेज दिया गया और उन्हें कितनी दुश्वारियों को झेलना पड़ा। हरजिंदर डंकी रूट के जरिये विदेश जाना चाहते थे।
बताना होगा कि देश के कई इलाकों से विशेषकर पंजाब और हरियाणा से बड़ी संख्या में लोग डंकी रूट के जरिये अमेरिका और अन्य देशों में जाते हैं। उनका सपना होता है कि अमेरिका जाकर ज्यादा पैसे कमाएं जिससे उनके घर की माली हालत बेहतर हो।
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ट्रेवल एजेंट को दिए थे 17 लाख रुपए
हरजिंदर सिंह ने जब अमेरिका जाने का फैसला किया था, उस समय उनकी उम्र 30 साल थी। जालंधर के मुंडी चोहलियां के रहने वाले हरजिंदर सिंह का सपना था कि वह विदेश में रहें और इसके लिए उन्होंने एक ट्रेवल एजेंट को 20 हजार डॉलर (17 लाख रुपए) की रकम दी थी।
हरजिंदर सिंह द इंडियन एक्सप्रेस को बताते हैं कि उनकी मां ने रास्ते के लिए तीन डिब्बे पंजीरी बना कर दी थी। पंजीरी एक मीठा व्यंजन है जो ज्यादातर पंजाब में बनाया जाता है। हरजिंदर बताते हैं कि जैसा उन्होंने सोचा था रास्ता वैसा आसान नहीं था।
इसके बाद डंकी रुट से ले जाने के लिए बिचौलियों ने उनसे पैसे मांगे। फिर अगले दिन एक और नए एजेंट ने मैक्सिको ले जाने के लिए पैसे मांगे। फिर हमें घोड़े के रास्ते एक पहाड़ और एक नाला पार करवाया गया। हरजिंदर सिंह बताते हैं कि यहां से वह कोलंबिया पहुंचे और 8 घंटे का बस से सफर करने के बाद कैली पहुंचे। फिर टर्बो की ओर बढ़े और वहां से नाव लेकर पनामा जंगल के अंदर पहुंचे, जहां 15 अफ्रीकी प्रवासी भी उनके साथ आ गए।
पनामा जंगल में चले 105 किमी
हरजिंदर और उनके साथ रहे लोगों को पनामा जंगल के 105 किमी के हिस्से को पार करने में 10 दिन से ज्यादा लगे। हरजिंदर बताते हैं, ‘हमने कम से कम 40 लाशें देखी, कुछ को आधा खाया हुआ था और कुछ सिर्फ कंकाल थे, पांच साल हो गए, लेकिन मुझे आज भी उस रास्ते को पार करने के डरावने सपने आते हैं। कई दिनों बाद हमें कुछ सैनिक दिखे और उन्होंने हमें एक शिविर में भेज दिया, जहां मैं कई दिनों बाद सोया।’
बस, ट्रक से पहुंचे मैक्सिको तक
हरजिंदर आगे बताते हैं, ‘इसके बाद एक शिविर में हमें 13 दिन रुकना पड़ा फिर हमें कोस्टा रिका जाने की अनुमति मिली। वहां से हमें बस से निकारागुआ ले जाया गया। निकारागुआ से ग्वाटेमाला होते हुए ट्रकों में भरकर मैक्सिको के तपाचुला पहुंचे।’
अमेरिका जाना चाहते थे, भारत वापस भेज दिया
तपाचुला में हरजिंदर बाकी लोगों के साथ 20 दिन तक रहे और दस्तावेज़ों की प्रोसेसिंग होने का इंतजार करते रहे। यहां से उन्हें वेराक्रूज़ के एक शिविर में ले जाया गया और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अमेरिका के बॉर्डर्स पर तैनात अफसरों से बात करवाई गई। हरजिंदर ने बताया कि इतनी मुश्किलें झेलने के बाद ऐसा लगा कि अब हम अमेरिका पहुंच जाएंगे लेकिन हमें भारत वापस भेज दिया गया।
हरजिंदर बोले- डर के कारण कमरे में बंद रहा
हरजिंदर बताते हैं, “कई महीनों तक डर के कारण मैं अपने कमरे में बंद रहा। सालों बाद मैंने थोड़ी हिम्मत जुटाई है और 14 एकड़ की जमीन पर लहसुन, गेहूं और धान की खेती करता हूं। 14 एकड़ जमीन में से 10 एकड़ जमीन लीज पर है और मैं सालाना करीब 9 लाख रुपये कमाता हूं लेकिन अभी भी कर्ज बाकी है।”
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