उत्तराखंड में भाजपा की ओर से सरकार गठन की संभावनाएं तलाशे जाने की खबरों के बीच पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्यपाल कृष्णकांत पाल से अपील की है कि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन हटने और सरकार गठन की संभावना बनने पर भाजपा की बजाय विधानसभा में सबसे बडेÞ दल का नेता होने के नाते उन्हें ही पहले न्यौता दिया जाए।

सदन में बहुमत सिद्घ करने का मौका दिया जाए। पूर्व मंत्रियों दिनेश अग्रवाल और प्रीतम सिंह की ओर से बुधवार रात राजभवन जाकर पूर्व मुख्यमंत्री रावत की ओर से सौंपे गए ज्ञापन में समाचारपत्रों और मीडिया में आई खबरों का हवाला देते हुए कहा गया है कि हालांकि, इन खबरों की सच्चाई और विश्वसनीयता की अभी पुष्टि नहीं हो पाई है लेकिन ऐसा लग रहा है कि उत्तराखंड में भाजपा को सरकार बनाने के लिए कहा जा सकता है।

रावत ने कहा कि इन खबरों ने गंभीर शंका पैदा कर दी है कि भाजपानीत केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन हटाकर और भाजपा को सरकार बनाने का मौका देकर संविधान के साथ फिर धोखा करेगी। उन्होंने कहा कि वैसे भी विधानसभा में सबसे बड़े दल का नेता होने के बावजूद अगर उन्हें सदन में बहुमत सिद्ध करने का मौका दिए बिना भाजपा को सरकार बनाने देने के लिए आमंत्रित करना कानून के भी खिलाफ होगा।

रावत ने कहा कि जब अनुच्छेद 356 का प्रयोग कर एक मुख्यमंत्री को अपदस्थ किया गया है तो उसे हटाए जाने पर सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री को ही पहले न्यौता दिया जाना चाहिए और उसे विधानसभा में बहुमत सिद्घ करने को कहा जाना चाहिए। इस संदर्भ में रावत ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने को दी गई चुनौती का भी जिक्र किया और कहा कि उस पर अंतिम सुनवाई फिलहाल चल रही है।

गत 18 मार्च के बाद राज्यपाल द्वारा उन्हें 28 मार्च तक सदन में बहुमत सिद्घ करने का आदेश देने और प्रस्तावित शक्ति परीक्षण से एक दिन पहले राष्ट्रपति शासन लागू कर दिए जाने सहित प्रदेश में हुए घटनाक्रम का जिक्र करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि वह यह दोहराना चाहते हैं कि उनके पास विधानसभा में अब भी जरूरी बहुमत है। उन्होंने कहा, ‘ मैं कहना चाहता हूं कि मेरे पास जरूरी बहुमत है और मुझे सदन में अपनी ताकत सिद्घ करने का मौका दिया जाना चाहिए।

इसके लिए मैं हमेशा तैयार हूं।’ ज्ञापन पर हरीश रावत के साथ ही पूर्व संसदीय कार्यमंत्री इंदिरा हृदयेश, पूर्व गृह मंत्री प्रीतम सिंह, पूर्व वनमंत्री दिनेश अग्रवाल और विधायक ममता राकेश के भी हस्ताक्षर हैं। 18 मार्च को विधानसभा में विनियोग विधेयक पर मत विभाजन की भाजपा की मांग का कांग्रेस के नौ विधायकों ने समर्थन किया था जिसके बाद प्रदेश में सियासी तूफान की स्थिति पैदा हो गई और उसकी परिणिति 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन के रूप में हुई।