राम जन्मभूमि आंदोलन में हरिद्वार तीर्थ नगरी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। हरिद्वार से ही इस आंदोलन की शुरूआत हुई थी। 1989 में हरिद्वार में राम मंदिर आंदोलन को लेकर धर्म संसद हुई थी। यह धर्म संसद दूसरी थी। इससे पहले प्रयागराज में पहली धर्म संसद हुई थी, परंतु प्रयागराज की धर्म संसद में श्रीराम जन्मभूमि का मुद्दा इतनी प्रमुखता से नहीं उठा था।
हरिद्वार की धर्म संसद में यह मुद्दा उठा था और अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के लिए कार सेवा करने और पूरे देश में व्यापक आंदोलन छेड़ने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया था। इस धर्म संसद में बड़ी तादाद में साधु संतों के सभी 13 अखाड़ों के आचार्य महामंडलेश्वर, श्री महंतो और साधु संतों ने भाग लिया था।
राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े हुए राकेश बजरंगी बताते हैं कि हरिद्वार में 1989 में हुई धर्म संसद ऐतिहासिक थी और इसके फैसलों ने ही श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को नई धार दी थी। हरिद्वार में राम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर सबसे अधिक धर्म संसद हुई थीं। हरिद्वार में चार धर्म संसद हुई थीं और कुंभ के मौके पर भी धर्म संसद की गई थी।
राम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रणी नेता अशोक सिंघल की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र अयोध्या के बाद हरिद्वार ही था। अयोध्या में राम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर हुई दोनों कार सेवाओं में हरिद्वार के साधु संतों और लोगों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया था। जब अयोध्या में ढांचा गिरा था, तब भी हरिद्वार से कार सेवा में बड़ी तादाद में लोग शामिल हुए थे।
श्री राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन को लेकर हरिद्वार में हुई सभी धर्म संसदों में भारत माता मंदिर के संस्थापक महामंडलेश्वर और शीर्ष संत स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि और परमार्थ आश्रम के अध्यक्ष स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही और इस आंदोलन ने स्वामी चिन्मयानंद को लोकसभा तक पहुंचाया और वह केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री तक बने।
राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े शिक्षाविद डाक्टर रजनीकांत शुक्ला बताते हैं कि श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर अशोक सिंघल ने विभिन्न संप्रदाय के सभी 13 अखाड़े को एक सूत्र में पिरो दिया था और राम जन्मभूमि आंदोलन के समय सभी अखाड़े एक साथ विश्व हिंदू परिषद के साथ खड़े रहे। इसका राजनीतिक फायदा भाजपा को मिला।
राम लहर के कारण भाजपा ने 1991 में पहली बार हरिद्वार में लोकसभा और विधानसभा की सीटों पर कब्जा किया। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में भी राम जन्म मंदिर आंदोलन का प्रभाव तेजी से फैला और एक जमाने में उत्तराखंड का गढ़वाल मंडल टिहरी क्षेत्र वामपंथियों के प्रभाव में था तथा अन्य भाग में कांग्रेस के प्रभाव में रहा परंतु 1991 में राम लहर के कारण उत्तराखंड का यह पर्वतीय भाग भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से उपजाऊ भूमि साबित हुआ और यहां भाजपा का एकछत्र राज हो गया।
आंदोलन के दौरान जेल में बंद रहे संजय आर्य कहते हैं कि हरिद्वार की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही और हरिद्वार में कुंभ के अवसर पर विश्व हिंदू परिषद ने जो धर्म संसद की थी, उसका प्रभाव पूरे देश में पड़ा। हरिद्वार में ही राम जन्म भूमि आंदोलन को लेकर ऐतिहासिक और निर्णायक फैसले किए गए थे।