गुजरात की सीएम आनंदीबेन पटेल ने सोमवार को एक फ़ेसबुक पोस्ट के माध्यम से अपने इस्तीफे की पेशकश की है. आनंदीबेन ने अपनी पोस्ट में पार्टी के 75 साल से अधिक उम्र के नेताओं के स्वैच्छिक कार्यकर्ता के रूप में काम करने के निर्णय को अपने फैसले की वजह बताया है. आनंदीबेन ने लिखा है कि वो इस साल नवंबर में 75 साल की हो रही है और गुजरात में अगले साल के अंत में विधान सभा चुनाव होने हैं इसलिए वो चाहती हैं कि उन्हें पद से मुक्त कर दिया जाए. आखिर आनंदीबेन को अचानक इस्तीफे की की पेशकश क्यों देनी पड़ी?

जून के पहले हफ्ते में खबर आई थी कि बीजेपी ने एक आंतरिक सर्वे कराया जिसके नतीजे आनंदीबेन के बारे में नकारात्मक थे. सर्वे के अनुसार नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात के सीएम का पद संभालने वाली आनंदीबेन गुजरात के वोटरों को जोड़े रखने में विफल हैं, जिसके कारण मतदाताओं में बीजेपी को लेकर निराशा फैली रही है. ख़बरों के अनुसार पार्टी सीएम पद के लिए नए चेहरे पर विचार करना भी शुरू कर चुकी है.

पीएम नरेंद्न मोदी की करीबी माने जाने वाली आनंदीबेन की मुश्किलें पद ग्रहण करने से पहले ही शुरू हो गई थीं. उनके राह में सबसे बड़ी बाधा फिलहाल बीजेपी में नंबर दो माने जाने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह माने जाते हैं. बीजेपी के अंदर अमित शाह और आनंदीबेन को परस्पर विरोधी खेमे का माना जाता है. लेकिन पीएम मोदी के दोनों करीबी कहे जाते हैं. माना जा रहा था कि अमित शाह नहीं चाहते थे कि आनंदीबेन को सीएम बनाया जाए.

मुख्यमंत्री पद क्यों छोड़ना चाहती हैं आनंदीबेन पटेल, देखिए वीडियो एनालिसिस-

तमाम किन्तु-परन्तु के बाद आनंदीबेन सीएम तो बन गईं लेकिन उनके सिर मुड़ांते ओले पड़ गए. उऩके सीएम बनने के एक साल के भीतर ही राज्य में पाटीदार (पटेल) समुदाय ने ओबीसी वर्ग में आरक्षण दिए जाने के लेकर व्यापक आंदोलन शुरू कर दिया. हार्दिक पटेल के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन में 12 लोग मारे गए और दो दर्जन से ज्यादा लोग घायल हुए. पटेलों को बीजेपी का समर्थक माना जाता था. इस आंदोलन के बाद पीएम मोदी को पटेल समुदाय से शांति की अपील करनी पड़ी थी. सीएम आनंदीबेन ने भी उनकी मांग पर विचार करने की बात मान ली थी. आंदोलन ने बीजेपी द्वारा किए गए गुजरात के दावों पर सवाल खड़ा कर दिया था. जिससे पार्टी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी किरकिरी हुई.

आनंदीबेन पटेल को दूसरा बड़ा झटका उनके बेटे और बेटी के भ्रष्टाचार के मामलों में फंसने से लगा. आनंदीबेन की बेटी अनार पटेल के बिजनेस साझीदार पर कानून की अनदेखी करके गिर  सिंह अभ्यारण्य के निकट 250 एकड़ जमीन हासिल करने का आरोप लगा. वहीं  उनके बेटे श्वेतांक पटेल भी अपनी मां के पद का लाभ लेने के आरोप लगेा. श्वेतांक के कंपनी अनार इंडस्ट्रीज के शेयरों में आनंदीबेन के मई 2014 में सीएम बनने के तेज उछाल आई. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार श्वेतांक की कंपनी के शेयर का मूल्य एक साल क अंदर 850 % बढ़ गया. नरेंद्र मोदी ने लोक सभा चुनाव प्रचार में भ्रष्टाचार और परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बनाया था. आनंदीबेन के बेटे और बेटी दोनों के आरोपों में घिरने से न केवल सीएम की छवि दागदार की बल्कि बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी के लिए भी असहज स्थिति पैदा कर दी.

देखें गुजरात के सीएम आनंदीबेन पटेल का वीडियो संदेश

आनंदीबेन की कुर्सी को आखिर बड़ा झटका गुजरात के उना में दलितों के आक्रोश से लगा. गुजरात में कथित गौ रक्षकों ने कुछ दलितों के गाय का मांस उतारने के आरोप में सरेआम बेरहमी से पिटाई की. घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. इसके बाद राज्य के दलितों ने मृत गायों के शव को सरकारी दफ्तरों के बाहर रखकर विरोध किया. पूरे राज्य में दलित ने इसके विरोध में रैलियां निकालीं. कई दलितों ने इसके विरोध में आत्महत्या की कोशिश की. रविवार को ऐसे ही एक युवक की मौत भी हो गई. रविवार को ही राज्य में एक बहुत बड़ी रैली निकाली.

बीजेपी की केंद्र सरकार अगले साल होने वाले विधान सभा चुनावों के मद्देनजर दलितों को लुभाने में लगी है. अगले साल दो बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश और पंजाब में चुनाव होने हैं. दोनों राज्यों में दलितों की अच्छी-खासी आबादी है. ऐसे में गुजरात में दलितों का राज्य की बीजेपी सरकार के खिलाफ आक्रोशित और लामबंद होना पार्टी के राष्ट्रव्यापी मंसूबों पर पानी फिर सकता है.

आनंदीबेन के इस्तीफे के बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करके कहा कि आम आदमी पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण आनंदीबेन ने इस्तीफा दिया है. भले ही केजरीवाल का दावा बड़बोलापन लगे लेकिन आनंदीबेन के इस्तीफे के पीछे राज्य में आम आदमी पार्टी का बढ़ता प्रभाव भी एक वजह हो सकता है. लोक चुनाव के बाद बीजेपी को पहली बड़ी हार दिल्ली विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के हाथों मिली थी. इस हार ने पीएम मोदी और बीजेपी के दिग्विजय रथ को रोक दिया था. आम आदमी पार्टी ने सभी विपक्षी दलों को यकीन दिलाया कि मजबूत स्थानीय नेता नरेंद्र मोदी के कथित करिश्मे का जवाब दे सकता है. दिल्ली के बाद बीजेपी को बिहार में भी नीतीश कुमार और लालू यादव की जोड़ी के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा.

आम आदमी बहुत ही सुनियोजित तरीके आगामी विधान सभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी शासित प्रदेशों में पैर फैला रही है. पार्टी पंजाब में अगले साल होने वाले चुनाव में एक मजबूत दावेदार मानी जाने लगी है. बीजेपी शासित गोवा में भी आम आदमी पार्टी अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही है. इसी कड़ी में आम आदमी पार्टी गुजरात में भी बीजेपी का विकल्प बनने की कोशिश कर रही है. पाटीदार आंदोलन से उपजे आक्रोश के बाद से ही राज्य में आम आदमी विशेष सक्रिय हो गई है. हालिया दलित आंदोलन के बाद तो आम आदमी पार्टी को राज्य में और भी ज्यादा उम्मीद नजर आने लगी है. ऐसे में बीजेपी को डर सता रहा है कि कहीं गुजरात की कुर्सी भी उसके हाथ से फिसल न जाए. पार्टी को लगता है कि आनंदीबेन की छवि कमजोर नेता की बनती जा रही है जिसका लाभ आम आदमी पार्टी को मिल सकता है. शायद यही वजह है कि बीजेपी ने नए सीएम की तलाश शुरू कर दी थी.