गुजरात हाई कोर्ट ने गर्भपात की अनुमति के लिए दायर नाबालिग बलात्कार पीड़िता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि एक समय कम उम्र में लड़कियों की शादी होना और उनके 17 साल की उम्र से पहले बच्चे को जन्म देना आम बात थी। बुधवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस ने मनुस्मृति का भी जिक्र किया।

गर्भपात की मंजूरी के लिए हाई कोर्ट पहुंची थी नाबालिग, जज साहब बोले- मनुस्मृति पढ़िए, लड़कियों का 17 साल की उम्र से पहले बच्चे को जन्म देना आम था

गुजरात हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति समीर दवे ने बुधवार को एक नाबालिग रेप पीड़िता की 29 सप्ताह की गर्भावस्था को खत्म करने की अनुमति के लिए दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मनुस्मृति का जिक्र किया। 21वीं सदी से पहले की प्रथाओं का जिक्र करते हुए जज ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता के वकील को मनुस्मृति पढ़नी चाहिए। जस्टिस समीर दवे ने यह भी कहा कि अगर लड़की और भ्रूण दोनों स्वस्थ हैं, तो हो सकता है कि इस याचिका को स्वीकृति न दी जाए।

नाबालिग रेप पीड़िता ने की थी गर्भपात की अनुमति देने की अपील

दरअसल, रेप पीड़िता की आयु 16 साल, 11 महीने है और उसके गर्भ में सात महीने का भ्रूण पल रहा है। पीड़िता के पिता ने गर्भपात की अनुमति के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। चूंकि गर्भावस्था की अवधि 24 हफ्ते से ज्यादा हो गई है, ऐसे में इस अवधि के पार हो जाने के बाद अदालत की अनुमति के बिना गर्भपात नहीं कराया जा सकता है। बुधवार को पीड़िता के वकील ने मामले की जल्द सुनवाई की अपील करते हुए कहा कि लड़की की उम्र के कारण परिवार चिंचित है।

पहले लड़कियां 17 साल की उम्र से पहले बच्चे को जन्म दे दिया करती थीं

जिस पर जस्टिस दवे ने कहा कि चिंता इसलिए है क्योंकि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। उन्होंने पीड़िता से कहा, “अपनी मां या दादी से पूछिए शादी के लिए पहले अधिकतम आयु 14-15 होती थी और लड़कियां 17 साल की उम्र से पहले बच्चे को जन्म दे दिया करती थीं। यही नहीं, लड़कियां लड़कों से पहले परिपक्व हो जाती हैं। आपने भले ही नहीं पढ़ी होगी लेकिन आप एक बार मनुस्मृति पढ़िए।”

अदालत ने राजकोट सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को लड़की की तत्काल चिकित्सा जांच करने का निर्देश दिया और यह भी कहा कि अगर लड़की और भ्रूण दोनों स्वस्थ पाए जाते हैं तो गर्भपात के लिए कोई आदेश पारित नहीं किए जाएंगे।

भ्रूण या लड़की में कोई गंभीर बीमारी होने पर कोर्ट करेगा विचार

मामले पर अगली सुनवाई 15 जून को होगी। जस्टिस दवे ने कहा, “पहली बार संभोग में गर्भावस्था और सात महीने तक एक लड़की का खुलासा नहीं करना, यह कहानी बहुत है। लड़का 23 साल का है और भ्रूण है सात महीने से ज्यादा। अगर भ्रूण जीवित रहता है तो आप क्या करेंगे? कौन देखेगा? मैं तुम्हें बच्चे को मारने की अनुमति नहीं दे सकता। हालांकि, भ्रूण या लड़की में कोई गंभीर बीमारी होने पर कोर्ट निश्चित रूप से विचार कर सकता है।”

याचिकाकर्ता के वकील ने हालांकि स्पष्ट किया कि चिंता लड़की और उसकी उम्र को लेकर ज्यादा है। अगर वह 20 से 20 प्लस की होती तो अलग बात होती। जिस पर जज ने वकील से कहा कि चूंकि, प्रसव की संभावित तिथि 16 अगस्त है इसलिए उन्होंने अपने कक्ष में विशेषज्ञ चिकित्सकों से सलाह-मशविरा किया है। उन्होंने कहा, “अगर भ्रूण या लड़की के किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होने की बात सामने आती है तभी यह अदालत गर्भपात की अनुमति पर विचार कर सकती है। अगर दोनों स्वस्थ हैं तो अदालत के लिए इस तरह का आदेश पारित करना मुश्किल होगा।”