अगले सत्र से गुजरात में 11वीं कक्षा के इकॉनॉमिक्स के छात्र पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बारे में पढ़ेंगे। बदले हुए पाठ्यक्रम के तहत गुजरात बोर्ड ने ‘आर्थिक विचार’ नाम से नया चैप्टर जोड़ा है। इसमें चाणक्य और महात्मा गांधी के साथ ही दीनदयाल उपाध्याय को भी शामिल किया गया है। यह चैप्टर गुजरात बोर्ड से जुड़ी सभी स्कूलों में यह चैप्टर पढ़ाया जाएगा। यह चैप्टर 15 पन्नों का है। इसमें न केवल ‘पंडित दीनदयाल के मुख्य आर्थिक विचार’ को विस्तार से लिखा गया है बल्कि उनकी व्यक्तिगत विशेषताओं का भी जिक्र किया गया है। 11वीं कक्षा का पाठ्यक्रम लगभग एक दशक बाद बदला गया है। दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जन संघ के संस्थापकों में से एक थे और अारएसएस प्रचारक भी थे।
चैप्टर की शुरुआत भारतीय पुराणों में दिए गए आर्थिक विचारों को थोड़ा सा परिचय दिया गया है। इसमें महाभारत के शांति पर्व, मनुस्मृति, शुक्रनीति और कमंडकीय नीतिसार शामिल हैं। लिखा गया है,’इन आर्थिक विचारों में धर्म, दर्शन और सिद्धांतों में करीबी रिश्ता दर्शाया गया है। इन विचारों में चाणक्य का कौटिल्य अर्थशास्त्र सबसे पहले है। दीनदयाल उपाध्याय के परिचय में उनकी काफी तारीफ लिखी गई है।
चैप्टर में उपाध्याय के एकात्म मानववाद का उल्लेख किया गया है। किताब में दीनदयाल के विचारों पर आधारित राज्य सरकार की योजनाओं का भी जिक्र किया गया है। इस में लिखा है,’16 अक्टूबर 2014 को श्रमेव जयते योजना शुरू की गई। गांव और कृषि विकास पर आधारित ग्राम ज्योति योजना शुरू की गर्इ।’ दीनदयाल उपाध्याय पर चैप्टर के बारे में गुजरात बोर्ड के पाठ्यक्रम चेयरमैन नितिन पेठानी ने बताया,’ किताबों का रिवीजन करना लंबी प्रक्रिया होती है। प्रत्येक किताब में नए चैप्टर प्रासंगिकता और उपयुक्तता के अनुसार शामिल किए जाते हैं। शिक्षा विभाग इसके लिए अंतिम सहमति देता है।’
पाठ्यक्रम के रिव्यू से जुड़े एक सदस्य ने बताया कि पंडित दीनदयाल को किताबों में जगह देने का विचार लंबे समय से चल रहा था। शिक्षा विभाग पाठ्यक्रम में बदलाव का इंतजार कर रहा था। महात्मा गांधी के चैप्टर में लिखा हुआ है कि उनके विचारों को गांधीवाद कहा जाता है लेकिन गांधीजी ने कभी अर्थशास्त्री के रूप में आर्थिक विचार नहीं दिए। उनके शब्दों में ही कहा जाए तो गांधीवाद जैसा कुछ नहीं है। ग्रामोदय और संरक्षण को लेकर महात्मा गांधी के विचारों को इस तरह से परिभाषित किया गया है जैसे वे राष्ट्रीयकरण के खिलाफ थे। चैप्टर के अनुसार,’ गांधीजी ने कभी निजी संपत्ति को समाप्त करने या उत्पादक साधनों के राष्ट्रीयकरण का समर्थन नहीं किया।’