भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश रहा है। हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसा दावा किया गया है कि भारत की आबादी चीन से ज्यादा हो चुकी है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने आकलन में कहा है कि इस साल (2023) के मध्य में भारत की आबादी चीन को पीछे छोड़ देगी। जिस दर से भारत की आबादी बढ़ रही है, उससे यह आशंका काफी समय से जताई जा रही है। पिछले कुछ समय से लोगों में जागरूकता बढ़ने से जन्मदर में भी कमी आई है।

कम क्षेत्रफल होने से आबादी का प्रति मीटर घनत्व ज्यादा

आबादी के लिहाज से भारत का भौगोलिक क्षेत्रफल (Geographical Area) चीन से काफी कम है। इससे प्रति वर्ग मीटर आबादी का घनत्व भारत में बहुत ज्यादा है। इसके साथ ही भारत में किसी भी दूसरे देश की तुलना में करीब 75 फीसदी आबादी उस उम्र की है जिसे कामकाजी (Working Age) कहा जाता है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बाद भारत को क्या फायदे और नुकसान होंगे। सबसे बड़ा संकट बढ़ती आबादी को रोजगार उपलब्ध कराना है। यह एक बड़ी चुनौती है। दुनिया की नजरों में भारत एक बड़ा बाजार है, लेकिन बाजार पूंजी का फ्लो तभी बढ़ेगा जब उसमें कामकाजी लोगों को रोजगार मिलेगा।

आबादी संकट से निपटने के लिए भारत को नई योजनाओं को अमल में लाना होगा

मृत्यु दर घटने से कामकाजी वर्ग की उम्र भी बढ़ रही है। इससे देश में ऐसे लोगों की भी संख्या बढ़ती जा रही है, जो काम करने लायक नहीं रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा हालात से निपटने के लिए सरकार को नई योजनाओं को बनाना और अमल में लाना होगा। इसके लिए कौशल विकास (Skill Development) के साथ ही नए निवेश की ओर ध्यान देना होगा।

विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि बढ़ती जनसंख्या के लिए जरूरी व्यवस्था करने के लिए सरकार के पास दो ही रास्ते हैं- पहला निवेश बढ़ाना और दूसरा जरूरत के मुताबिक कौशल बढ़ाना। यदि इसको सफलतापूर्वक कर लिया गया तो बढ़ी आबादी को बुनियादी जरूरतें पूरी की जा सकेंगी। अगर ऐसा नहीं किया गया तो दिक्कतें बढ़ सकती है।