हर साल लाखों टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है और वह छोटे-छोटे कणों में पर्यावरण में फैल जाता है। फ्रांस में माइक्रोबियल ओशेनोग्राफी की प्रयोगशाला में शोधकर्ता जां फ्रांसिस घिग्लियोन कहते हैं, ‘हमने 10 साल पहले कल्पना नहीं की थी कि इतने छोटे ‘माइक्रोप्लास्टिक’ हो सकते हैं, जो नग्न आंखों के लिए अदृश्य हैं और वे हमारे चारों ओर हर जगह हैं। हम अभी तक उन्हें मानव शरीर में खोजने की कल्पना नहीं कर सके।’

पर्यावरण चैरिटी डब्ल्यूडब्ल्यूएएफ इंटरनेशनल के 2019 में आए एक शोध में बताया गया कि हमारे वातावरण में प्लास्टिक का इतना प्रदूषण है, जिसके कारण इंसान हर हफ्ते में करीब पांच ग्राम प्लास्टिक को अपने अंदर ले रहा है जो हर हफ्ते एक क्रेडिट कार्ड खाने के बराबर होगा।
घिग्लियोन कहते हैं कि अब वैज्ञानिक कुछ अलग तरह के अध्ययन में जुटे हैं। वे कुछ मानव अंगों में ‘माइक्रोप्लास्टिक’ का पता लगा रहे हैं, जिनमें फेफड़े, प्लीहा, गुर्दे और यहां तक कि गर्भाशय भी शामिल हैं। यही नहीं, सिंथेटिक कपड़ों में मौजूद माइक्रोफाइबर हमारे शरीर में सांस के जरिए दाखिल हो रहा हैं।

इंग्लैंड स्थित हल यार्क मेडिकल स्कूल की लौरा सैडोफ्स्की कहती हैं, ‘हम जानते हैं कि हवा में ‘माइक्रोप्लास्टिक’ है और हम यह भी जानते हैं कि यह हमारे चारों ओर है।’ उनकी टीम ने फेफड़े के ऊतकों में ‘पालीप्रोपाइलीन’ और ‘पीईटी’ (पालीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट) पाया। उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए आश्चर्य की बात यह थी कि यह फेफड़ों के कितने अंदर तक था और उन कणों का आकार कितना बड़ा था।’

मार्च में एक अन्य शोध ने खून में पीईटी के पहले निशान पाए जाने की सूचना दी थी। जांच कर्ताओं के छोटे नमूने को देखते हुए कुछ वैज्ञानिकों का कहना था कि निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी, लेकिन चिंता जताई जा रही है कि अगर प्लास्टिक रक्तप्रवाह में है तो वह सभी अंगों तक पहुंचा सकता है।

हर रोज इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक पानी में अरबों सूक्ष्म कण छोड़ रहा है। साल 2021 में शोधकर्ताओं ने अजन्मे बच्चे के गर्भनाल में माइक्रोप्लास्टिक पाया था। तब भ्रूण के विकास में इसके संभावित परिणामों पर बड़ी चिंता व्यक्त की गई थी। वैगनिंगन यूनिवर्सिटी में ‘एक्वाटिक इकोलाजी एंड वाटर क्वालिटी’ के प्रोफेसर बार्ट कोएलमैन कहते हैं, ‘अगर आप किसी वैज्ञानिक से पूछते हैं कि क्या कोई नकारात्मक प्रभाव है, तो वह कहेगा कि मुझे नहीं पता।’ उन्होंने कहा, ‘यह संभावित रूप से एक बड़ी समस्या है, लेकिन हमारे पास सकारात्मक रूप से पुष्टि करने के लिए वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं कि प्रभाव क्या है।’

ऐसे में जबकि वैज्ञानिकों ने शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी की पहचान कर ली है, संभावना है कि इंसान वर्षों से प्लास्टिक के छोटे कण को खा रहे हैं, पी रहे हैं या सांस के जरिए शरीर में ले रहे हैं। हालांकि मनुष्यों पर स्वास्थ्य अध्ययन अभी तक विकसित नहीं हुए हैं, कुछ जानवरों में विषाक्तता चिंताओं को पुष्ट करती है।