खुले में शौच से मुक्‍ति। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह ड्रीम प्रोजेक्‍ट है। सत्‍ता में आते ही उन्‍होंने स्‍वच्‍छता का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था और दो अक्‍तूबर, 2019 तक पूरे देश को खुले में शौच से मुक्‍त करने का लक्ष्‍य बनाया। प्रधानमंत्री लगातार इस दिशा में काम करवा रहे हैं और इसे बतौर उपलब्‍धि बताते भी रहे हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए चंपारण सत्याग्रह के 100 वर्ष पूरे होने के मौके पर इसी साल 10 अप्रैल को भी प्रधानमंत्री ने देश में स्वच्छता अभियान की सफलता की कहानी सुनाई। पीएम ने कहा कि साढ़े तीन सालों में देश के 350 से ज्यादा जिले और साढ़े तीन लाख से ज्यादा गांव खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। तीन महीने बाद यह सरकारी आंकड़ा और बढ़ गया है लेकिन, जमीनी हकीकत आंकड़ों की सच्‍चाई पर सवाल उठा रहे हैं।

सरकारी दावा: स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण की सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 16 जुलाई, 2018 की शाम 5 बजकर 35 मिनट तक कुल 3 लाख 98 हजार 259 गांव खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) करार दिए जा चुके हैं। इनमें से 4,465 गांव नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत ओडीएफ करार दिए गए हैं। ओडीएफ जिलों की संख्या बढ़कर 415 हो गई है और इसी तरह ओडीफ राज्यों की संख्या 19 हो गई है। ओडीएफ पंचायतों की संख्या 1 लाख 76 हजार 96 और प्रखंडों की संख्या 4,042 हो गई है। इसी वेबसाइट पर दर्ज आंकड़े बताते हैं कि 2 अक्टूबर, 2014 यानी जब प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी, तब देश में मात्र 38.70 फीसदी घरों में ही शौचालय थे जो अब बढ़कर 87.69 फीसदी घरों में बन चुका है। यानी कुल 7 करोड़ 78 लाख 74 हजार 522 घरों में शौचालय बन चुका है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अंडमान निकोबार, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात में 100 फीसदी घरों में शौचालय बन गए हैं। बिहार, ओडिशा, यूपी, असम और तेलंगाना अभी पीछे है।

स्वच्छ भारत मिशन की सरकारी वेबसाइट पर दर्ज आंकड़े। (16 जुलाई, 2018 की शाम 5.35 बजे तक।)

हकीकत: ओडीएफ से मतलब है खुले में शौच से मुक्ति। यानी ओडीएफ वाले राज्य या जिले या गांव में कोई भी शख्स खुले में लोटा लेकर शौच करते हुए नहीं देखा जाना चाहिए। ऐसी जगहों पर हर घर में शौचालय होना चाहिए और लोग उनका इस्‍तेमाल भी कर रहे हों। पर सच्चाई ये नहीं है। प्रधानमंत्री 10 अप्रैल को जहां स्वच्छ भारत के लिए अपनी सरकार की उपलब्‍धियां बता रहे थे, उसी जिले के तेतरिया ब्लॉक की हकीकत कुछ और बयां कर रही थी। यह ब्‍लॉक खुले में शौच से मुक्त घोषित था लेकिन, वहां के कई गांवों में या तो शौचालय बने नहीं थे या बने भी थे तो इस्तेमाल के लायक नहीं थे। एक टीवी रिपोर्ट के मुताबिक अधिकारियों ने इस ब्‍लॉक में 16,000 शौचालय बनाने का दावा किया था, पर सच कुछ और निकला। सच्‍चाई पता चली तो राजनीतिक विवाद भी हुआ। विवाद पीएम द्वारा किए गए दावे पर भी हो गया। उन्‍होंने अपने संबोधन में कहा था कि बिहार में एक हफ्ते के अंदर साढ़े आठ लाख से ज्यादा शौचालयों का निर्माण किया गया है। यानी हर दिन 1 लाख 6 हजार 250 और हर मिनट करीब 4427 शौचालय बने।

स्वच्छ भारत मिशन के आंकड़ों का खेल बाकी जगह भी खेला जा रहा है। ओडीएफ करार दिए गए मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी यही हाल है। मध्य प्रदेश में सीएम शिवराज सिंह चौहान के पैतृक जिले सिहोर के सिराली गांव में 50 घर हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल तक इन घरों में शौचालय नहीं बन सके थे। छत्तीसगढ़ में धमतरी जिले के कई गांवों में शौचालय ऐसे बने हैं जिसमें कुछ में छत नहीं है तो कुछ में टॉयलेट शीट नहीं।ऐसे में आप समझ सकते हैं कि ग्रामीण शौच के लिए कहां जाते होंगे? मगर कागजों पर पूरा गां खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया जा चुका है।

भ्रष्‍टाचार: इसमें खेल दूसरे तरह का भी चल रहा है। बिहार में 2016 में ही अफसरों और एनजीओ की मिलीभगत से करीब 15 करोड़ के घपले की बात सामने आई। कई लोग टॉयलेट के लिए पैसे लेकर कहीं और खर्च कर रहे हैं तो कई को पैसे दिए बिना लाभार्थी दिखाया जा रहा है। मध्‍य प्रदेश के इंदौर को कागजों पर ओडीएफ टैग दे दिया गया है। यह टैग मिल जाने के करीब 14 महीनों बाद, मार्च में पता चला कि यहां के बरछा गांव में टॉयलेट बनवाने के नाम पर अलग ही घपला हो गया। 48 में से 15 टॉयलेट बनवाए ही नहीं गए, जो बनवाए वे पूरे नहीं किए लेकिन भुगतान पूरा (करीब 5.31 लाख रुपए) ले लिया गया। यूपी सहित कई जगहों से ऐसी खबरें आती ही रहती हैं कि आर्थिक रूप से काफी मजबूत परिवारों को भी टॉयलेट बनवाने के लिए सरकार की ओर से 12 हजार रुपए मिले। सरकारी व्‍यवस्‍था सिर्फ गरीब परिवारों को यह रकम देने की है। ऐसे हजारों परिवार मदद कैसे लें, यह तक नहीं जानते और इस वजह से मदद से वंचित हैं।

बता दें कि नरेंद्र मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत के लिए करदाताओं पर स्वच्छता उप कर लगाया है। 2 अक्टूबर, 2014 से अप्रैल 2018 तक इस मद में प्राप्त धनराशि में से 1 लाख 59 हजार करोड़ रुपये स्वच्छता के लिए आवंटित किए गए हैं मगर शौचालय धरातल पर कम सरकारी फाइलों में ज्यादा चमक-दमक रहे हैं।