अरविंंद कुमार मिश्रा

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक वैश्विक कार्यबल के स्तर पर डेढ़ अरब आजीविकाएं अर्थतंत्र के हरित रूपांतरण से प्रभावित होंगी। स्पष्ट है कि इसके लिए हरित तकनीक और मानवीय श्रम के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। एक ऐसा सामंजस्य जो उत्पादन, वितरण और उपभोग के पूरे माडल को टिकाऊ बनाए। यह तभी संभव है, जब कार्यशील आयुवर्ग (15-59) के लोगों को तकनीक और उसका प्रशिक्षण मुहैया कराया जाए।

आज जलवायु संकट का असर रोजगार परिदृश्य पर भी पड़ रहा है। हरित अर्थव्यवस्था के बढ़ते चलन से रोजगार और परंपरागत आजीविकाएं नई शक्ल ले रही हैं। हरित तकनीक की बदौलत उत्पादन और वितरण की पूरी प्रणाली बदल रही है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (अंकटाड) ने हरित रोजगार के लिए कृत्रिम बौद्धिकता, मशीनी शिक्षण, क्लाउड कंप्यूटिंग, इलेक्ट्रिक वाहन, हरित हाईड्रोजन जैसी सत्रह तकनीकों को जरूरी बताया है। पिछले कुछ सालों में भारतीय अर्थतंत्र की इन तकनीकों के साथ संबद्धता बढ़ी है। हालांकि अभी हम अंकटाड की तकनीक एवं नवाचार रपट-2023 में तैंतालीसवें स्थान पर हैं। 166 देशों की सूची में अमेरिका पहले, जर्मनी सातवें और चीन नौवें पायदान पर है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन यानी आइएलओ ने हर उस रोजगार को हरित श्रेणी में परिभाषित किया है, जो कार्बन उत्सर्जन को कम करने वाली आर्थिक गतिविधि से संबद्ध है। यह कृषि, उद्योग, सेवा और प्रशासनिक गतिविधियों में सबसे अधिक है। अभी दुनिया भर में साढ़े सात करोड़ रोजगार सिर्फ प्रकृति आधारित गतिविधियों पर केंद्रित हैं। आइएलओ का अनुमान है कि 2030 तक दो करोड़ अतिरिक्त रोजगार प्रकृति आधारित उद्यमों से सृजित होंगे।

देश में पिछले वित्तीय वर्ष में एक लाख चौंसठ हजार लोग सौर और पवन ऊर्जा क्षेत्र में कार्यरत थे। अंतरराष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजंसी (आइआरईएनए) और आइएलओ की संयुक्त रपट के अनुसार 2020-21 में भारत में कुल आठ लाख तिरसठ हजार हरित रोजगार पैदा हुए। वर्तमान में देश के कुल कार्यबल का बीस फीसद हरित रोजगार से संबद्ध है।

‘स्किल काउंसिल फार ग्रीन जाब’ का अनुमान है कि अकेले सौर ऊर्जा क्षेत्र में 2050 तक 30 लाख 26 हजार युवाओं को नौकरियां मिलेंगी। आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के मुताबिक इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग में इस दशक के अंत तक पांच करोड़ प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार होंगे। इसी समान अवधि में पचास लाख मीट्रिक टन सालाना ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता हासिल करने के क्रम में छह लाख रोजगार सृजित होंगे।

भारत में पिछले कुछ वर्षों में रसोई से लेकर विशाल औद्योगिक इकाइयों तक हरित संसाधनों की मौजूदगी बढ़ी है। आवासीय परियोजनाओं में शीतलन और उष्मागति की जैसी ऊर्जा दक्ष पद्धतियों को अपनाया जा रहा है। बिजली उत्पादन से लेकर रोजमर्रा से जुड़ी सेवाएं उपलब्ध कराने में हरित तकनीक की अहम भूमिका है। जिस तरह वैश्विक अर्थतंत्र जलवायु अर्थव्यवस्था की ओर करवट ले रहा है, ऐसे समय में भारत के पास घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही मोर्चों पर अवसर हैं। बशर्ते, हम हरित रोजगार से जुड़ी तकनीक और कौशल हासिल कर सकें। यह हरित तकनीक में शोध और निवेश बढ़ाकर ही संभव है।

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) के अध्ययन के मुताबिक देश में पचास करोड़ लोगों को किसी न किसी एक कौशल की जरूरत है। हरित रोजगार के लिए जरूरी आवश्यक कौशल उन्नयन कार्यक्रमों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के जरिए आगे बढ़ाया जाना चाहिए। अक्षय ऊर्जा, हरित परिवहन, गैस आधारित अर्थव्यस्था तथा नैनो तकनीक पर केंद्रित पाठ्यक्रमों को बढ़ावा देना होगा।

देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में इन विषयों पर डिप्लोमा से लेकर पीएचडी पाठ्यक्रम शुरू होना अच्छा संकेत है, लेकिन इन पाठ्यक्रमों में औद्योगिक तथा अकादमिक (इंडस्ट्री-एकेडमिया) समन्वय अब भी कमजोर है। यह तय करना होगा कि ये पाठ्यक्रम सिर्फ महानगरों में स्थित शैक्षणिक संस्थानों तक सीमित न रहें। ध्यान रहे, कौशल विकास और दक्षता संवर्धन के प्राथमिक लाभार्थियों में नियोक्ता प्रमुख होते हैं।

कौशल विकास की दिशा में ‘स्किल काउंसिल आफ ग्रीन जाब’ (एससीजीजे) ने एक लाख से अधिक लोगों को ‘सूर्यमित्र प्रशिक्षण कार्यक्रम’ से प्रशिक्षित कर एक अच्छा माडल प्रस्तुत किया है। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की छत्तीस अलग-अलग क्षेत्रों पर केंद्रित कौशल परिषद हरित तकनीक के प्रशिक्षण पर जितना जोर देगी, रोजगार बाजार के लिए उतना ही बेहतर होगा।

युवाओं के बीच हरित रोजगार के अवसर को प्रोत्साहित करने के लिए ‘ग्रीन जाब पोर्टल’ की स्थापना की जानी चाहिए। हरित रोजगार को बढ़ावा देने वाली कौशल और दक्षता उन्नयन योजनाओं को समन्वित करना होगा। इसके अंतर्गत प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान, मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री वन धन योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के जरिए हरित तकनीक का प्रशिक्षण हितग्राहियों को दिया जाए।

वर्तमान में 14,740 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आइटीआइ) में 24 लाख से अधिक युवा विभिन्न विषयों के कौशल सीख रहे हैं। 2014 तक देश में दस हजार आइटीआइ थे। राष्ट्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता नीति 2015 के जरिए आइटीआइ को ग्रेडिंग भी प्रदान कर रही है। इससे इन संस्थानों के सामने विश्व स्तरीय संस्थान बनने का मौका है। पिछले छह सालों में देश में पांच करोड़ लोगों को कौशल विकास योजना से जोड़ा गया है।

अर्थतंत्र का हरित आवरण दिखने में भले बहुत सुंदर हो, लेकिन इस बदलाव में चुनौतियां भी कई हैं। जलवायु अर्थव्यवस्था विकसित करने के क्रम में देश की सामाजिक, शैक्षणिक और भौगोलिक व्यावहारिकताओं की अनदेखी नहीं की जा सकती। यह सर्वमान्य तथ्य है कि तकनीक की स्वीकार्यता लंबे समय तक नहीं टाली जा सकती। मगर हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि क्षेत्र विशेष में तकनीक, नवाचार और कौशल की स्थिति क्या है।

विश्व आर्थिक मंच द्वारा अप्रैल 2023 में जारी रपट आगाह करने वाली है, जिसमें कहा गया है कि वैश्विक कार्यबल में अगले पांच साल के भीतर 1.4 करोड़ नौकरियां खत्म होंगी। इसके पीछे अर्थव्यवस्था आक्रामक डिजिटलीकरण, कृत्रिम बौद्धिकता, महंगाई और आपूर्ति तंत्र की बाधाओं को बड़ी वजह बताया गया है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक वैश्विक कार्यबल के स्तर पर डेढ़ अरब आजीविकाएं अर्थतंत्र के हरित रूपांतरण से प्रभावित होंगी। स्पष्ट है कि इसके लिए हरित तकनीक और मानवीय श्रम के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। एक ऐसा सामंजस्य जो उत्पादन, वितरण और उपभोग के पूरे माडल को टिकाऊ बनाए। यह तभी संभव है, जब कार्यशील आयुवर्ग (15-59) के लोगों को तकनीक और उसका प्रशिक्षण मुहैया कराया जाए।

हाल ही में मध्यप्रदेश के इंदौर में जी-20 के श्रम और रोजगार मंत्रियों के सम्मेलन में तीन अहम मुद्दों पर सहमति बनी। इनमें वैश्विक स्तर पर कौशल के अंतर को पाटना, गिग और प्लेटफार्म श्रमिकों के हितों की रक्षा तथा सामाजिक सुरक्षा के लिए वित्त पोषण अहम है। विश्व भर में कौशल विकास की क्या स्थिति है, कहां किस कौशल के श्रमिकों की जरूरत है, इसके मानचित्रण (मैपिंग) की मांग भारत लंबे समय से करता रहा है।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन कौशल अंतर का आकलन करेंगे। अब देखना है कि इस सम्मेलन से निकले निष्कर्ष कैसे साकार होते हैं। हरित तकनीक और कौशल में एकाधिकार की वजह से विकसित देशों ने 2018 में 60 अरब डालर का हरित तकनीक आधारित निर्यात किया। 2021 में यह आंकड़ा 156 अरब डालर के स्तर को पार कर गया।

वहीं विकासशील देश 2021 में सिर्फ 75 अरब डालर की हरित तकनीक से जुड़ा निर्यात कर सके हैं। ऐसे में जी-20 से पहले जी-7 को यह समझना होगा कि बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े अंतरराष्ट्रीय कानून सिर्फ मुट्ठी भर देशों के कारोबारी हितों को साधने का जरिया न बनें। भारत जिस तरह वैश्विक दक्षिण की आवाज बन रहा है, इस परिदृश्य में हमारा पूरा जोर हरित तकनीक की आत्मनिर्भरता और वित्तपोषण पर हो। इससे एक ओर भारत हरित मानव संसाधन के बल पर शून्य कार्बन उत्सर्जन का घरेलू लक्ष्य हासिल करेगा, वहीं जलवायु समाधान के लिए जरूरी श्रम पूंजी का वैश्विक केंद्र बनने में भी सफल होगा।