राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड स्कीम (Electoral Bond Scheme) के तहत मिलने वाली फंडिंग पर रोक लगाने वाली अंतरिम याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के प्रतिनिधि से कई सवाल पूछे और चुनावी बॉन्ड के संदर्भ में ‘पारदर्शिता’ को लेकर कई सवाल भी पूछे। कोर्ट के पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि ‘मेरे विचार में मतदाता को सिर्फ उसके उम्मीदवार को बारे में जानने का अधिकार है, उसे इस बात से क्या लेना-देना कि राजनीतिक दल को चंदा कहा से आ रहा है।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस दीपक गुप्ता तथा संजीव खन्ना की बेंच के समक्ष अपनी दलील में अटॉर्नी जनरल ने राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता की जरूरतों पर एक सवाल के जवाब में कहा, ” वास्तविकताओं को ध्यान में रखना चाहिए और समस्या विशेष पर काम किए बिना इसे लागू नहीं किया जा सकता।”
इससे पहले, एजी ने राजनीतिक दलों की फंडिंग से संबंधित सीमाओं का जिक्र किया और कहा कि अभी तक शासन द्वारा चुनावों में फंडिंग नहीं हो रही है। उन्होंने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना के तहत दानदाताओं की पहचान गुप्त रखने का मकसद इस वजह से था, क्योंकि दानदाताओं को डर था कि अगर उनके द्वारा किसी विशेष पॉलिटिकल पार्टी को दिए गए चंदे का खुलासा होता है, तो अन्य राजनीतिक दल नाराज हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से पूछा कि क्या बैंक को चुनावी बांड जारी करने के समय क्रेताओं की पहचान का पता होता है। इस पर वेणुगोपाल ने जवाब दिया और तब कहा कि बैंक केवाईसी का पता लगाने के बाद बांड जारी करते हैं, जो बैंक खातों को खोलने पर लागू होते हैं।
अदालत ने कहा, “जब बैंक चुनावी बांड जारी करते हैं तो क्या बैंक के पास ब्योरा होता है कि किसे ‘एक्स’ बांड जारी किया गया और किसे ‘वाई’ बांड जारी किया गया।” कोर्ट ने आगे कहा, “अगर बांड के क्रेताओं की पहचान ज्ञात नहीं है तो आयकर कानून पर इसका बड़ा प्रभाव होगा और कालाधन पर अंकुश लगाने के आपके सारे प्रयास निरर्थक होंगे।”

