Sutlej-Yamuna Link Canal Row: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पंजाब और हरियाणा सरकारों को निर्देश दिया कि वे सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर विवाद के हल के लिए केंद्र सरकार के साथ में सहयोग करें। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच को केंद्र सरकार ने बताया कि वह पहले ही इस मुद्दे को सुलझाने के लिए प्रभावी कदम उठा चुकी है। इस पर कोर्ट ने कहा, ‘हम दोनों राज्यों को निर्देश देते हैं कि वे भारत सरकार के साथ मिलकर एक सौहार्दपूर्ण समाधान निकालने में सहयोग करें।’
केंद्र सरकार की तरफ से सुनवाई में कोर्ट में एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि हमने मध्यस्थता के लिए प्रयास किए हैं, लेकिन राज्यों को अपनी बात पर अमल करना होगा। वहीं हरियाणा सरकार के वकील श्याम दीवान ने कहा कि बातचीत से कोई भी हल नहीं निकल पा रहा है। जहां तक नहर के निर्माण की बात है तो हरियाणा ने अपने एरिया में पूरा काम कर लिया है और पानी नहीं छोड़ा जाना एक खास मुद्दा है।
कितने अमीर हैं सुप्रीम कोर्ट के जज?
क्या है पूरा विवाद?
अब पूरे विवाद की बात करें तो एसवाईएल नहर की परिकल्पना रावी और ब्यास नदियों से पानी के प्रभावी आवंटन के लिए की गई थी। इस प्रोजेक्ट में 214 किलोमीटर लंबी नहर बनाने की परिकल्पना की गई थी। इसमें से 122 किलोमीटर नहर पंजाब में और 92 किलोमीटर हरियाणा में बनाई जानी थी। हरियाणा ने तो अपने एरिया का काम पूरा कर लिया है लेकिन पंजाब ने साल 1982 में काम तो शुरू किया था लेकिन बाद में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। यह विवाद दशकों पुराना है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया दखल
सुप्रीम कोर्ट ने 15 जनवरी 2002 को हरियाणा द्वारा 1996 में दायर एक मुकदमे में उसके पक्ष में फैसला सुनाया था और पंजाब सरकार को एसवाईएल नहर के अपने हिस्से का निर्माण करने का निर्देश दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फिर साल 2023 में बड़ा दखल दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए कहा था कि हमें सख्त आदेश देने पर मजबूर ना करें। कोर्ट ने यह भी कहा कि दो दशक से एसवाईएल का निर्माण ना होने पर हम बेहद ही चिंतित हैं। इतना ही नहीं कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा था कि हमें इस बात की जानकारी दें कि निर्माण का अब तक कितना काम पूरा हो चुका है। केंद्र सरकार दोनों सरकारों से बातचीत करती रहे। निचली जाति से ताल्लुक रखने वाला जज बना तो ऊंचे समुदाय से बर्दाश्त नहीं हुआ