केन्द्र सरकार और आरबीआई के बीच चल रही तनातनी अपने चरम पर पहुंच गई है। दरअसल सरकार ने आरबीआई एक्ट के तहत मिली एक अहम शक्ति का इस्तेमाल करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर को जनहित के मुद्दों पर निर्देश देने का फैसला किया है। बता दें कि आजाद भारत के इतिहास में किसी भी सरकार ने इस शक्ति का अभी तक इस्तेमाल नहीं किया था। इकॉनोमिक टाइम्स की एक खबर के अनुसार, केन्द्र सरकार ने आरबीआई गवर्नर को हाल ही में एक पत्र भेजकर अपने इस कदम की जानकारी दी है। जिसके तहत सरकार, जनहित के फैसलों जैसे लिक्विडिटी के मुद्दे, बैंकों की कमजोर स्थिति और छोटे और मझले उद्योगों को कर्ज आदि पर आरबीआई गवर्नर को निर्देश देगी। आरबीआई की स्वायत्तता के लिए इसे बड़ा झटका माना जा रहा है।

RBI Act के तहत मिली पावरः केन्द्र सरकार ने RBI Act के सेक्शन 7 के तहत मिली शक्ति का इस्तेमाल किया है। इस शक्ति के तहत “सरकार को अधिकार है कि यदि जनहित से जुड़े कुछ मुद्दों को सरकार अहम और गंभीर समझती है, तो वह आरबीआई गवर्नर को सलाह या निर्देश दे सकती है।” गौरतलब है कि सरकार को ये शक्ति भले मिली हुई है, लेकिन अभी तक किसी सरकार ने इस शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया था। यहां तक कि 1991 में जब भारतीय अर्थव्यवस्था बेहद बुरे दौर से गुजर रही थी तब भी और जब साल 2008 में वैश्विक मंदी ने अर्थव्यवस्था को घेरा था, तब भी सरकार ने इस शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया था। ऐसे में मौजूदा सरकार द्वारा आरबीआई एक्ट द्वारा प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल करने से सरकार और आरबीआई के बीच जारी तनाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। चूंकि अभी तक किसी भी सरकार ने इस शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया है तो यह साफ नहीं है कि सरकार इसे कैसे क्रियान्वित करेगी?

कैसे हुई विवाद की शुरुआतः दरअसल बीते शुक्रवार को रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने एक कार्यक्रम के दौरान सार्वजनिक तौर पर रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बरकरार रखने और सरकार की तरफ से पड़ रहे दबाव का जिक्र किया था। विरल आचार्य का यह बयान ऐसे वक्त आया था, जब सरकार देश में पेमेंट सिस्टम के लिए एक नई रेग्युलेटर बनाने की संभावना पर विचार कर रही है। इसके साथ ही सरकार रिजर्व बैंक द्वारा कई बैंकों को लेंडिंग नियमों में छूट दिए जाने के लिए रिजर्व बैंक पर कथित दबाव बना रही है। बहरहाल रिजर्व बैंक ने इस पर नाखुशी जाहिर करते हुए सरकार के इस कदम से नाराजगी जाहिर की। जिसके बाद इस मुद्दे को लेकर विपक्षी पार्टियों ने सरकार को निशाने पर ले लिया था। आरबीआई और सरकार के बीच की तनातनी सार्वजनिक हो जाने पर सरकार ने काफी नाराजगी जाहिर की थी और इसका जिम्मेदार आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को माना था।

वित्त मंत्री ने जतायी थी नाराजगीः वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी मंगलवार को आरबीआई पर पलटवार किया। एक कार्यक्रम के दौरान वित्त मंत्री ने बैंकों द्वारा अंधाधुंध कर्ज देने पर रोक लगाने में नाकाम रहने पर रिजर्व बैंक की आलोचना की। वित्त मंत्री ने एनपीए के खरबों रुपए तक पहुंच जाने के लिए आरबीआई की सुस्ती को जिम्मेदार ठहराया था। इकॉनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई और केन्द्र सरकार के बीच तल्खी इस कदर बढ़ चुकी है कि रिजर्व बैंक ने हाल ही में हुई उद्योगपतियों की एक बैठक में शिरकत भी नहीं की। दरअसल आरबीआई ने एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट) को लेकर सख्त रुख अपना लिया है। आरबीआई ने एक सर्कुलर जारी कर सभी बैंकों को निर्देश दिए हैं कि कर्ज अदायगी की तय तिथि से एक दिन की देरी होने पर भी देनदारों के खिलाफ कार्रवाई के स्पष्ट निर्देश दिए गए थे। इससे उद्योग जगत में खलबली मच गई थी।