सरकार ने बुधवार रात कोहिनूर हीरे के मुद्दे पर पलटी मारते हुए कहा कि वह बेशकीमती हीरे को वापस लाने के लिए पूरा प्रयास करेगी, हालांकि पहले उसने उच्चतम न्यायालय में कहा था कि इसे ब्रिटिश शासकों द्वारा ‘न तो चुराया गया था और न ही जबरन छीना’ गया था, बल्कि पंजाब के शासकों ने इसे दिया था। सरकार ने एक बयान में कहा कि मीडिया में ‘जो बात गलत ढंग से पेश की जा रही है’ उसके विपरीत उसने अभी अपनी राय से अदालत को अवगत नहीं कराया है।
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इससे एक दिन पहले सॉलीशीटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यह नहीं कहा जा सकता कि कोहिनूर को चुराया अथवा जबरन ले जाया गया है क्योंकि इसे महाराजा रंजीत सिंह के उत्तराधिकारी ने ईस्ट इंडिया कंपनी को सिख योद्धाओं की मदद की एवज में 1849 में दिया था। सोमवार को केंद्र ने कोर्ट में कहा था कि अगर हम कोहिनूर जैसी बहुमूल्य वस्तुएं पर अपना दावा पेश करेंगे, तो हर एक दूसरा देश हमारे देश में मौजूद चीजों पर दावे पेश करेंगे और ऐसे में हमारे सारे म्यूजिम खाली हो जाएंगे। केंद्र सरकार के इस रुख का उनकी सहयोगी दल शिरोमणी अकाली दल सहित कई अन्य पार्टियों ने विरोध जताया था।
आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस मुद्दे पर आई खबरें ‘तथ्यों पर आधारित नहीं हैं’। इसमें कहा गया है कि सरकार कोहिनूर को मैत्रीपूर्ण ढंग से कोहिनूर हीरे को वापस लाने के लिए हर संभव प्रयास करने के अपने संकल्प को दोहराती है।
सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें मांग की गई है कि सरकार ब्रिटेन से 20 करोड़ डॉलर से अधिक कीमत का कोहिनूर हीरा वापस लाने के लिए कदम उठाए।