एक ऑटो ड्राइवर जिसके बेटे प्राइमरी स्कूलों में टीचर हैं, एक ट्रैक्टर ड्राइवर जिसका बेटा BSF में और बेटी प्राइमरी टीचर है… यहां पॉजिटिव एनर्जी देने वाली ऐसे सैकड़ों कहानियां है… हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान सीमा से महज 15 किलोमीटर दूर पंजाब के फाजिल्का जिले में आने वाले डंगर खेड़ा गांव की…
भारत-पाकिस्तान सीमा का नाम लेते ही बड़ी संख्या में देशवासियों के दिमाग में शायद अटारी-वाघा बॉर्डर की तस्वीर उभरती है। पंजाब भारत का एक सीमावर्ती राज्य है और यह कई बार सीमा बार से होने वाली ड्रग्स की तस्करी के लिए सुर्खियों में आता है लेकिन पंजाब बॉर्डर के पास से आई यह खबर आपको पॉजिटिव एनर्जी से भर देगी।
पंजाब के फाजिल्का जिले का डंगर खेड़ा गांव भारत-पाकिस्तान सीमा से महज 15 किलोमीटर दूर है और आसपास के अन्य गांवों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। साढ़े छह हजार की आबादी वाला यह गांव 1614 हेक्टेयर एरिया में फैला हुआ है… गांव में करीब 1100 परिवार हैं… और इन परिवारों ने देश को 450 से ज्यादा सरकारी कर्मचारी दिए हैं और खास बात यह है कि इनमें से 250 नए भारत की तकदीर लिखने वाले टीचर्स (Government Teachers) हैं।
एक आदमी के सपने ने दिखाई युवाओं को दिशा
डंगर खेड़ा की यह कहानी शुरू होती है इसी गांव के एक टीचर कुलजीत सिंह डंगरखेड़ा के साथ। कुलजीत सिंह को साल 1997 में सरकारी टीचर बने। तब से वो डंगरखेड़ा में पढ़ाई के लिए जुनून और उसके बाद सरकारी नौकरियों में जाने के पीछे एक बड़ी वजह बन गए हैं।
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कुलजीत सिंह कहते हैं, “1997 में जब मेरी नौकरी लगी, तब गांव में मुश्किल से एक या दो होंगे जिनका सिलेक्शन सरकारी नौकरी के लिए हुआ था। कई सालों तक हमारे गांव के एक भी सिलेक्शन नहीं हुआ। हमारे गांव की जमीन बहुत उपजाऊ नहीं है, ग्राउंड वाटर पीने के लिए अनफिट है। हम ज्यादातर नहर के पानी पर निर्भर हैं। यहां रोजगार देने के लिए कंपनियां भी नहीं हैं। इसलिए पढ़ाई करना और नौकरी पाना ही एकमात्रा ऐसी चीज है जो हम जिंदा रहने के लिए कर सकते थे। मुझे खुशी है कि मैं कई अन्य लोगों को अपने नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित करने में कामयाब रहा हूं।”
कुलजीत बताते हैं कि उनकी 21 साल की बेटी की दो साल पहले ETT टीचर के तौर पर भर्ती हुई है जबकि उनका बेटा क्लिनिकल साइकोलॉजी की पढ़ाई कर रहा है। प्राइमरी स्कूलों में भर्ती के लिए इस साल घोषित किए गए नजीतों में 5994 पदों में से करीब 30 सिलेक्शन इस गांव से हुए हैं।
अकाउंट्स और बिजनेस स्टडीज पढ़ाने वाले गांव के एक टीचर सुरिंदर कुमार कहते हैं कि डंगर खेड़ा का नाम बदलकर अध्यापक खेड़ा कर देना चाहिए। हमारा गांव एक फैक्ट्री की तरह है, जहां से टीचर्स निकलते हैं। ये टीचर्स राज्य के अलग-अलग सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। सुरिंदर की दो बेटियां हैं। उनकी बड़ी बेटी MBBS कर रही है जबकि दूसरी बेटी क्लास 9 में है और स्टेट लेवल क्रिकेटर है।
वो बताते हैं कि जब कुलजीत की पंजाबी टीचर के रूप भर्ती हुई तो उन्हें लगा कि उनके स्टूडेंट्स भी आगे बढ़ें। सुरिंदर बताते हैं कि कुलजीत अपार जुनून से भरे हुए हैं। शुरुआती सालों में कई छात्र उनके यहां पढ़ने आते थे। इसके बाद यहां कोचिंग सेंटर और रीडिंग रूम खुलने लगे। इसके बाद उन्होंने छात्रों को विभिन्न भर्ती परीक्षाएं देने के तरीके के बारे में गाइड करना शुरू किया। बदले में उनके छात्रों ने भर्ती परीक्षाओं की तैयारी में युवाओं की मदद करना शुरू कर दिया। यह एक चेन की तरह बन गई। लगभग एक दशक पहले, हमारे गांव में दो कोचिंग खुले। पिछले 2 सालों में, यहां पांच रीडिंग रूम बन गए हैं जो लाइब्रेरी का भी काम करते हैं। लगभग एक दशक पहले, हमारे गांव में दो कोचिंग खुले। पिछले 2 सालों में, यहां पांच रीडिंग रूम बन गए हैं जो लाइब्रेरी का भी काम करते हैं।
गांव में दो कोचिंग सेंटर्स, 5 रीडिंग रूम
डंगर खेड़ा गांव में इस समय दो कोचिंग सेटंर्स हैं, जो स्टूडेंट्स को विभिन्न नौकरियों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां करवाते हैं। इसके अलावा यहां 5 पेड रीडिंग रूम्स, स्कूली बच्चों के लिए 2-3 कोचिंग सेंटर्स हैं। यहां रीडिंग रूम 24*7 खुले रहते हैं और छात्र अपनी सुविधा अनुसार यहां आकर पढ़ाई करते हैं।
गंव में एक लाइब्रेरी कम रीडिंग रूम चलाने वाले संजय करगवाल कहते हैं, “मैं ग्रेजुएट हूं और सरकारी नौकरियों के लिए एग्जाम की तैयारी कर रहा हूं। मैं डंगर खेड़ा में साइड में रीडिंग रूम चलाता हूं। यह पूरी तरह से AC है। हम यहां पढ़ाई करने आने वालों के लिए पीने का पानी, न्यूज पेपर और पावर बैकअप प्रदान करते हैं। मेरे रीडिंग रूम में एक समय में 40 लोग बैठ सकते हैं। यहां एक डिस्कसन रूम भी है, जहां छात्र बैठते हैं और आराम करते हैं और कभी-कभी अपना लंच भी करते हैं।” संजय की छोटी बहन रेने का दो महीने पहले ही ETT टीचर के तौर पर सिलेक्शन हुआ है।
गांव के पास 4000 एकड़ कृषि भूमि
सुरिंदर बताते हैं कि गांव के पास करीब 4000 एकड़ कृषि भूमि है, जहां आमतौर पर कॉटन की खेती की जाती है। उन्होंने बताया कि यहां सभी तरह के लोग रहते हैं। गांव में ऐसी अमीर जमींदार भी हैं जिनके पास 100 एकड़ से ज्यादा जमीन है और ऐसे परिवार भी हैं जिनके पास दो से पांच एकड़ जमीन हैं और कुछ ऐसे भी हैं, जिनके पास जमीन ही नहीं है।
शादीशुदा महिलाएं भी पढ़ती हैं
गांव की सरपंच सोनिया बताती हैं कि रीडिंग रूम्स में पढ़ाई करने के लिए शादीशुदा महिलाएं भी आती हैं। यहां इसको लेकर कोई विचार नहीं है। वो बताती हैं कि अब उनकी इच्छा गांव में पूरी तरह से काम करने वाली लाइब्रेरी हो। सोनिया कहती हैं कि हमने विधायक से कहा है कि वो हमें गांव में एक ऐसी लाइब्रेरी बनाने में मदद करें, जहां छात्र फ्री में पढ़ाई कर सकें। पढ़ाई को लेकर इस गांव के लोगों की उर्जा को देखते हुए हमें एक्स्ट्रा मदद मिलनी चाहिए।
संजय बताते हैं कि गांव के बच्चों को मिल रही सफलता से प्रेरित होकर अब अन्य गांवों के बच्चे भी यहां पढ़ाई के लिए आते हैं। वो मुस्कुराते हुए कहते हैं कि शायद उनका मानना है कि डंगर खेड़ा की हवा में कुछ स्पेशल है, अगर वो यहां पढ़ाई करेंगे तो सफलता जरूर मिलेगी।
गांव में एक प्राइमरी और एक सेकेंडरी स्कूल
डंगर खेड़ा गाव में एक सरकारी प्राइमरी और एक सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल है। यहां 1200 बच्चे पढ़ते हैं। इसके अलावा यहां कोई प्राइवेट स्कूल नहीं है। कुलजीत सिंह बताते हैं कि फिलहाल हम टीचर, डॉक्टर, एसडीओ बनने या अन्य सरकारी नौकरी करने से ही संतुष्ट हैं। हमारा अगला उद्देश्य छात्रों को UPSC की तैयारी के लिए ट्रेनिंग देना शुरू करना होगा। हम अपने गांव से एक IAS या PCS अधिकारी देते हुए देखना चाहते हैं।