चुनावी चंदे के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) पर केंद्र सरकार ने पहले राष्ट्रीय और राज्य स्तर के राजनीतिक दलों के अलावा जनता से भी सुझाव मांगने का मन बनाया था। लेकिन, सरकार ने बाद में अपने कदम वापस पीछे खींच लिए। इस बात का खुलासा आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज को सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मिले दस्तावेजों से हुआ है। दस्तावेजों से पता चलता है कि 21 अगस्त, 2017 को तत्कालीन संयुक्त सचिव प्रशांत गोयल ने एक नोट तैयार किया, जिसमें कहा गया था, “सेक्रेटरी EA (वित्त मंत्रालय के इकोनॉमिक अफेयर डिपार्टमेंट में सचिव सुभाष चंद्र गर्ग) ने वित्त मंत्रालय के दिशानिर्देश पर इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के ड्राफ्ट का प्रेजेंटेशन प्रधानमंत्री के अनुमोदन के लिए उनके समक्ष रखा था, जो कि आगामी विचार-विमर्श पर आधारित है।” नोट में पांच विस्तृत बिंदुओं का ब्यौरा दिया गया।
इस नोट के पांचवें पॉइंट में बताया गया, “निम्नलिखित मुद्दों पर एक विचार किया जा सकता है: (1) क्या प्रस्तावित योजना पर राजनीतिक दलों के साथ विचार-विमर्श किया जाना चाहिए? यदि हां, तो क्या मसौदे पर टिप्पणियों को 15 दिनों के भीतर राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों द्वारा पेश किया जा सकता है? (2) क्या ड्राफ्ट स्कीम को एमओएफ वेबसाइट पर होस्ट करके टिप्पणियों के लिए सार्वजनिक करने की जरूरत है? हालांकि, 21 अगस्त को लिखे नोट वाला यह हिस्सा हटा दिया गया। 22 अगस्त को गोयल ने एक नया नोट लिखा, जिसमें इन प्रश्नों का जिक्र काफी संक्षेप में था।
केंद्र सरकार के फैसले पर आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को जनता के बीच चर्चा के लिए सरकार में राजनीतिक इच्छा-शक्ति की कमी है।
भारद्वाज का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लागू कराने के लिए फाइनैंस एक्ट 2017 में संशोधन 2014 के प्री-लेजिस्लेटिव कंसल्टेंसी पॉलिसी में निर्धारित प्रक्रियाओं का पूरी तरह से उल्लंघन था। इस नीति के तहत ड्राफ्ट से जुड़े तमाम पहलू पर लोगों के बीच व्यापक चर्चा जरूरी है। इसके अलावा, आरटीआई अधिनियम की धारा 4 सरकार को महत्वपूर्ण नीतियां बनाते समय सभी प्रासंगिक तथ्यों को प्रकाशित करने के लिए बाध्य करती है।
गौरतलब है कि संयोग से जब वित्त मंत्री ने राजनीतिक दलों से संपर्क किया तब कई ने ड्राफ्ट नहीं मिलने की शिकायत की थी। कई दलों का कहना था कि उनके पास इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ा ड्राफ्ट ही नहीं था, जिस पर वे अपनी प्रतिक्रिया दे सकें।
उदाहरण के तौर पर 30 मई को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा ने अपने एक पत्र में कहा, “बजट भाषण से संकेत मिले कि सरकार एक योजना बनाएगी। लेकिन, हम इस तरह की योजना का पता नहीं लगा पाए हैं। लिहाजा, हमारे पास केवल बजट भाषण और कुछ टिप्पणियां हैं जो आपने अप्रैल में मीडिया में दी थीं …योजना के संबंध में सरकार द्वारा किए गए योजना का अध्ययन करने के बाद ही हम आगे की टिप्पणी कर पाएंगे।”