Karnataka High Court: कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार द्वारा अपील दायर करने में 14 साल की देरी को माफ करने से इनकार कर दिया। जस्टिस डीके सिंह और जस्टिस वेंकटेश नाइक की खंडपीठ ने कहा कि इतनी बड़ी चूक को उचित ठहराने के लिए सरकार को “भगवान राम की तरह 14 वर्षों तक वनवास में रहने वाला” नहीं माना जा सकता।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने कहा कि सरकार 14 साल बाद जागी है। उसे विवादित फैसले और आदेश के खिलाफ अपील दायर करने का अब औचित्य नजर आ रहा है। कोर्ट ने कहा कि 14 साल वह समय है जब भगवान राम वनवास में थे और उसके बाद वे अयोध्या लौट आए थे। सरकार देरी के लिए माफ़ी मांगने के लिए 14 साल वनवास में नहीं थी… हमें इतनी बड़ी और अत्यधिक देरी को माफ़ करने का कोई आधार नहीं दिखता।
कोर्ट राजस्व विभाग (स्टाम्प एवं पंजीकरण) के प्रधान सचिव, पंजीकरण महानिरीक्षक एवं स्टाम्प आयुक्त तथा दावणगेरे के जिला पंजीयक द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रहा था। राज्य सरकार ने 11 फरवरी, 2011 के उस आदेश को चुनौती देने की मांग की थी, जो मैसूर किर्लोस्कर लिमिटेड के परिसमापन की कार्यवाही से उत्पन्न हुआ था।
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हाई कोर्ट ने माना कि राज्य द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत “पर्याप्त कारण” की सीमा को पूरा नहीं करता। कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि इस तरह की विलंबित अपील पर विचार करने से न्यायिक कार्यवाही की अंतिमता कमज़ोर हो जाएगी।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जहां उचित स्पष्टीकरण दिया गया हो, वहां देरी को माफ किया जा सकता है, लेकिन “केवल राज्य की निष्क्रियता और लापरवाही” देरी को माफ करने का आधार नहीं हो सकती। इसके साथ ही कोर्ट राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया।
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