भारत में रहने वाले लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियां भिन्न-भिन्न हैं। कुछ लोगों को अपनी आर्थिक तंगी के कारण भिक्षावृत्ति पर निर्भर रहना पड़ता है। मगर अब केंद्र सरकार ने भारत को भिक्षावृत्ति से मुक्त कराने के लिए एक योजना बनाई है। इसके तहत, भिक्षावृत्ति में लगे लोगों को चरणबद्ध तरीके से पहचानकर उनको समाज की मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जाएगा। इसके लिए पहले ऐसे लोगों का सर्वेक्षण किया जाएगा, जिसमें लोगों की उम्र, लिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिति और भिक्षावृत्ति में लिप्त होने के कारणों आदि का पता लगाया जाएगा। इन लोगों को पुनर्वास के लिए विभिन्न योजनाओं के तहत सहायता प्रदान की जाएगी, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं शामिल हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहायता प्रदान करने से लोगों को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी। रोजगार के अवसर प्रदान करके लोगों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जाएगा। सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से लोगों को बुढ़ापे, बीमारी और अन्य आपात स्थितियों में आर्थिक सहायता मिलेगी।
भिक्षावृत्ति के पीछे गरीबी, अशिक्षा, मानसिक विकार, बाल शोषण आदि मुख्य कारण हैं। गरीबी भिक्षावृत्ति का सबसे प्रमुख कारण है। दरअसल, आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के पास रोजगार के अवसर नहीं होते। ऐसे लोग भिक्षावृत्ति को एकमात्र आय का स्रोत बना लेते हैं। इसी तरह अशिक्षित लोगों के पास भी रोजगार के अवसर कम होते हैं। ऐसे लोग भी भिक्षावृत्ति पर निर्भर हो जाते हैं। मानसिक रूप से बीमार लोग समाज में अपना स्थान नहीं बना पाते और भिक्षावृत्ति पर निर्भर हो जाते हैं। बाल शोषण भी भिक्षावृत्ति का एक कारण हो सकता है। दरअसल, जो बच्चे शोषण का शिकार होते हैं, वे भी भिक्षावृत्ति पर निर्भर हो जाते हैं। भिक्षा मांगने वालों में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो सिर्फ आलसी होते हैं। ये लोग बीमारी, चोट लगने का या कोई अन्य बहाना बनाकर, अपनी लाचारी दिखाकर भिक्षा मांगते हैं। इनके अलावा कुछ संगठित गिरोह भी हैं, जो पैसों के लालच में गरीबों और लाचारों से जबरदस्ती भीख मंगवाते हैं।
भारत में भिखारियों की कुल संख्या 4 लाख 13 हजार 670 है, जिनमें पुरुषों की संख्या 2 लाख 21 हजार 673 तथा महिलाओं की संख्या एक लाख 91 हजार 997 है। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। भिक्षावृत्ति से निरंतर चोरी, हत्या, लूटपाट जैसे बढ़ते अपराध चिंता का विषय हैं। बाल भिक्षावृत्ति के लिए बच्चों की तस्करी के बढ़ते मामले भी चिंताजनक हैं। भिक्षावृत्ति एक सामाजिक समस्या है, जिसे हल करने के लिए सरकार के साथ-साथ सामाजिक संस्थाओं तथा भारत के प्रत्येक नागरिक को प्रयास करना चाहिए। सामान्य तौर पर किसी भी देश और राज्य में भिखारियों का होना इस बात का प्रमाण होता है कि वहां की सरकारें अपने सभी नागरिकों की बुनियादी सुविधाओं का खयाल रखने में सफल नहीं रही हैं। मगर संगठित तौर पर चलने वाले भिक्षावृत्ति तंत्र को मानव तस्करी और अपहरण जैसे अपराधों के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए।
भिक्षावृत्ति मुक्त भारत का लक्ष्य भारत को एक ऐसे देश के रूप में विकसित करना है, जहां कोई भी व्यक्ति भिक्षावृत्ति पर निर्भर न हो। भिक्षावृत्ति मुक्त भारत बनाने के लिए सरकार को भिक्षावृत्ति के मूल कारणों को समझना और उन पर प्रभावी तरीके से काम करना होगा। इसके अलावा भिक्षावृत्ति के खिलाफ जन जागरूकता फैलानी होगी। लोगों को भिक्षा देना बंद करने के लिए प्रेरित करना होगा। साथ ही, भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों के पुनर्वास के लिए प्रभावी योजनाओं को लागू करना होगा। इसके लिए सरकार को शिक्षा और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देकर गरीबी और अशिक्षा को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। सरकार को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाकर मानसिक विकारों से पीड़ित लोगों को सहायता प्रदान करनी होगी। बाल शोषण रोकने के लिए सरकार को कड़े कानून बनाने और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करना चाहिए।
भिक्षावृत्ति में लगे लोगों के पुनर्वास के लिए सरकार और समाज को मिलकर काम करना होगा। इन लोगों को आश्रय, कौशल, शिक्षा और अन्य सुविधाएं प्रदान करनी होंगी। दरअसल, भिक्षावृत्ति एक जटिल समस्या है, जिसे हल करने के लिए सरकार को एक समग्र योजना बनानी होगी। लोगों को समझाना होगा कि भिक्षा देने से भिखारी आत्मनिर्भर नहीं बनते, बल्कि उनके जीवन की उन्नति में बाधा उत्पन्न होती है।
केंद्र सरकार ने भिक्षावृत्ति मुक्त भारत के लिए जिन तीस शहरों की सूची तैयार की गई है, उनमें धार्मिक, ऐतिहासिक और पर्यटन- तीन आधारों पर शहरों को चुना गया है। उनमें धार्मिक शहर अयोध्या, ओंकारेश्वर, कांगड़ा, सोमनाथ, उज्जैन, बोधगया, त्र्यंबकेश्वर, पावागढ़, मदुरै, गुवाहाटी हैं। पर्यटक शहर वारंगल, तेजपुर, कोझिकोड, अमृतसर, उदयपुर, कटक, इंदौर, मैसूर, पंचकूला और शिमला हैं। ऐतिहासिक शहरों में जैसलमेर, तिरुवनंतपुरम, विजयवाड़ा, कुशीनगर, सांची, केवडिया, श्रीनगर, नामसाई, खजुराहो, पुदुचेरी हैं। इन शहरों में भिक्षावृत्ति के खिलाफ जन जागरूकता फैलाने और भिक्षावृत्ति में लगे लोगों के पुनर्वास के लिए सरकार कई उपाय कर रही है।
केंद्र सरकार ने भिक्षावृत्ति में लगे लोगों के सर्वेक्षण और पुनर्वास के लिए एक राष्ट्रीय पोर्टल और मोबाइल ऐप तैयार करवाया है। इसका उद्देश्य भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों का डाटा एकत्र करना और उनके पुनर्वास के लिए प्रभावी योजनाएं लागू करना है। इस पोर्टल और मोबाइल एप के माध्यम से, जिला और नगर निगम अधिकारी इन शहरों में प्रमुख जगहों की पहचान कर सकते हैं, जहां लोग भीख मांगते हैं। सर्वेक्षण के दौरान भिखारियों से पूछा जाएगा कि क्या वे भीख मांगना छोड़ना चाहते हैं? इसकी जगह आजीविका के लिए वे क्या करना चाहते हैं? सर्वेक्षण के आधार पर, इन लोगों को पुनर्वास के लिए पात्रता के आधार पर वर्गीकृत किया जाएगा। फिर पुनर्वास के लिए आश्रय, कौशल, शिक्षा और अन्य सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। इस पोर्टल और मोबाइल ऐप पर चयनित शहरों में अधिकारियों को आश्रय, कौशल, शिक्षा और पुनर्वास प्रदान करने की प्रगति रपट डालनी होगी। इस पोर्टल और मोबाइल ऐप के माध्यम से भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों के पुनर्वास की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाया जा सकेगा।
भारत में भिक्षावृत्ति से संबंधित कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है। हालांकि कई राज्य और केंद्र शासित प्रदेश भिक्षावृत्ति को रोकने और नियंत्रित करने के लिए आधार के रूप में बांबे भिक्षावृत्ति रोकथाम अधिनियम, 1959 का उपयोग करते हैं। यह कानून भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करता और पुलिस को बिना वारंट भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों को गिरफ्तार करने और उन्हें पुनर्वास केंद्रों में भेजने की शक्ति देता है। इस कानून की प्रभावशीलता पर भी अक्सर बहस होती रहती है। कुछ लोगों का मानना है कि ये कानून भिक्षावृत्ति को रोकने में प्रभावी नहीं हैं, जबकि कुछ का मानना है कि यह कानून भिक्षावृत्ति को कम करने में मददगार है। भिक्षावृत्ति की समस्या को कम करने के लिए कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने के साथ-साथ गरीबी, अशिक्षा और बाल शोषण जैसी समस्याओं को भी दूर करना बहुत आवश्यक है।