राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गोवा इकाई के प्रमुख सुभाष वेलिंगकर को पद से हटाए जाने की खबर से औरों की तरह वो भी काफी हैरान हुए। आरएसएस का कहना है कि वह ‘राजनीतिक गतिविधियों’ में शामिल होने की कोशिश कर रहे थे जो उसकी परंपराओं के विरुद्ध है। हालांकि वेलिंगकर आरएसएस से 54 साल लंबे जुड़ाव पर गर्व है। वेलिंगकर को आज भी जून 1962 में गोवा के पुर्तगाली शासन से आजाद होने के बाद पणजी के महालक्ष्मी मंदिर में लगी आरएसएस की पहली शाखा में जाना याद है। उस समय उनकी उम्र महज 13 साल थी। 68 वर्षीय वेलिंगकर कहते हैं, “मैंने अपनी आंखों से राज्य में आरएसएस को पनपते हुए देखा है। उस दिन से जब संघ प्रचारक बालाचंद्र सताद्रे हमें आरएसएस में लाए, मैंने देखा है कि किस तरह एक मंदिर के प्रांगण में खड़ा 60 किशोरों का एक समूह आज पूरे राज्यव्यापी संगठन में बदल चुका है।”
1988 से संघ कार्यवाह वेलिंगकर राज्य में कई स्वयंसेवकों और कार्यकर्ताओं को आरएसएस से जोड़ने का श्रेय लेते हैं। उनका दावा है कि राज्य के पूर्वी सीएम और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, गोवा के वर्तमान सीएम लक्ष्मीकांत पारेसकर, केंद्रीय मंत्री श्रीपद नाइक और गोवा के मंत्री राजेंद्र आर्लेकर जैसे नेता उनके संरक्षण में ही आगे बढ़े। वेलिंगकर कहते हैं, “मैं प्रशासनिक प्रमुख था और ये मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं उन्हें सार्वजनिक संवाद का मौका दूं। पर्रिकर मेरे राजनीतिक दौरों में मेरे साथ रहते थे। वो अच्छे प्रेक्षक हैं।”
आरएसएस से निकाले जाने के बाद भारतीय भाषा सुरक्षा मंच (बीबीएसएम) ने राज्य में अगले साल होने वाले विधान सभा चुनावों के मद्देनजर एक नई पार्टी बनाने का निर्णय लिया है। वेलिंगकर बीबीएसएम के संयोजक हैं। बीबीएसएम की मांग है कि राज्य के स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा कोंकणी और मराठी में दी जाए और अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों को मिलने वाली सरकारी मदद बंद की जाए। संगठन इस मुद्दे पर राज्य के सीएम पारेसकर और रक्षा मंत्री पर्रिकर की आलोचना करता रहा है।
वेलिंगकर को ये स्वीकार करना काफी कठिन हो रहा है कि उनके “निर्देशन में परिपक्व हुए” पर्रिकर ने उन्हें, बीबीएसएम और गोवा के अन्य लोगों को “चुनाव से पहले झूठे वादे” करके “धोखा” दिया है। वेलिंगकर के अनुसार पर्रिकर ने चुनाव से पहले राज्य के स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में दिए जाने और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को दी जाने वाली वित्तीय मदद बंद करने का वादा किया था। हाल ही में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के गोवा दौरे में वेलिंगकर और उनके साथियों ने उन्हें काला झंडा दिखाया था। वेलिंगकर कहते हैं, “हां, मैंने काला झंडा दिखाया था लेकिन अमित शाह के विरोध में नहीं। हम उनका ध्यान शिक्षा के माध्यम के मसले पर पर्रिकर के अन्याय, धोखे और यू-टर्न पर दिलाना चाहते थे। जाहिर है काला झंटा पर्रिकर के लिए था।” वेलिंगकर कहते हैं कि बीबीएसएम अपने विचार नहीं बदलेगी और वो या तो बीजेपी की साझीदार एमजीपी के साथ मिलकर या अकेले चुनाव लड़ेगी।
वेलिंगकर को 1996 में गोवा का विभाग संघचालक बनाया गया था। बुधवार को हटाए जाने से पहले तक 20 सालों तक वो निर्बाध रूप से इस पद पर रहे। अपनी पृष्ठभूमि के बारे में बताते हुए वेलिंगकर कहते हैं कि 1975 में इमरजेंसी के दौरान वो 50 कार्यकर्ताओं के साथ मीसा कानून के तहत गिरफ्तार हुए थे। इमरजेंसी में 10 महीने जेल में रहे। वो 34 स्कूलों तक एक स्कूल से जुड़े रहे थे। इस दौरान सात सालों तक वो स्कूल के हेडमास्टर रहे और 18 साल तक प्रिंसिपल। वेलिंगकर कहते हैं, “एक शिक्षाविद् होने के नाते मेरे लिए ये स्वीकार करना कठिन है कि सरकार मातृ भाषा में शिक्षा देने के वैश्विक स्तर पर स्वीकार्य मानक के खिलाफ है। यूनेस्को इसे उचित मानता है।” वो आगे कहते हैं, “अंग्रेजों के गुलाम रहे देशों को छोड़कर जर्मनी, जापान, चीन, रूस जैसे देशों को देखिए वहां प्राथमिक से लेकर उच्चतर शिक्षा मातृ भाषा में दी जाती है। हम तो केवल प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में देने की मांग कर रहे हैं ताकि लोगों का अपनी संस्कृति से परिचय हो सके।”
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