मद्रास उच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को लेकर केंद्र को एक बड़ा निर्देश जारी किया। सीबीआई को अक्सर केंद्र सरकार का ‘तोता’ कहा जाता है। मद्रास उच्च न्यायालय ने अब ‘पिंजरे में बंद इस तोते को रिहा करने’ के निर्देश दिये हैं।
जस्टिस एन किरूबकारन एवं जस्टिस बी पुगालेंधी की पीठ ने कहा, “जब कभी भी कोई संवेदनशील मामला सामना आता है या कोई जघन्य अपराध होता है तो सीबीआई जांच की मांग उठती है। लोग स्थानीय पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं करते और सीबीआई जांच की मांग करते हैं। ऐसे में इसे भी चुनाव आयोग और भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की तरह स्वायत्तता जरूर मिलनी चाहिए।
उच्च न्यायालय ने केंद्र की मोदी सरकार के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। अपने एक निर्देश में कोर्ट ने सीबीआई को ज्यादा अधिकार एवं क्षेत्राधिकार देने सहित जांच एजेंसी को स्वायत्त बनाने की बात कही है। कोर्ट का मानना है कि ऐसा करने से सीबीआई भी चुनाव आयोग और भारत के नियंत्रक और CAG की तरह आज़ादी से काम कर पाएगी।
पीठ ने यह टिप्पणी सीबीआई की एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए की है। अर्जी में कहा गया है कि वह कर्मियों की कमी से जूझ रही है। उच्च न्यायालय ने कहा, “जब लोग जांच की मांग करते हैं तो सीबीआई यह कहते हुए पीछे हट जाती है कि उसके पास संसाधनों एवं लोगों की कमी है। यह बहुत दुखद है।”
पीठ ने कहा, “हर बार सीबीआई के पास यही रटा-रटाया जवाब होता है।’ न्यायाधीशों ने सीबीआई के लिए एक अलग बजटीय आवंटन की सिफारिश की और एजेंसी के निदेशक को सरकार के सचिव के बराबर शक्तियां देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि सीबीआई प्रमुख सीधे संबंधित मंत्री या प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करेंगे।
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सीबीआई निदेशक को छह सप्ताह के भीतर कर्मचारियों की संख्या के साथ डिवीजनों और विंगों में और वृद्धि की मांग करते हुए एक विस्तृत प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया। निर्देश में कहा गया है कि प्रस्ताव प्राप्त होने पर, केंद्र तीन महीने के भीतर इस पर उचित आदेश पारित करेगा।