अगली विदेश सचिव स्तर की वार्ता को लेकर अनिश्चितता के बीच सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने साफ तौर पर शांति प्रक्रिया को पहले भी कई बार पटरी से उतारने के लिए पाकिस्तानी सेना पर दोषारोपण किया है। बुधवार को उनका बयान उन खबरों की पृष्ठभूमि में आया है जिनमें कहा गया है कि पाकिस्तानी सेना अपने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ नहीं थी, जब वे वार्ता के लिए भारत आए थे। उन्होंने कहा, उसने ऐसा कई बार किया है। मैं इसके (पठानकोट के) संबंध में नहीं कह रहा हूं। सुहाग ने यह बात तब कही जब उनसे पूछा गया कि क्या वे महसूस करते हैं कि पठानकोट हमला शांति प्रक्रिया को बाधित करने के लिए पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ का प्रयास था।
इस बात की अटकलें हैं कि दोनों देशों के बीच विदेश सचिव स्तर की वार्ता टल सकती है क्योंकि भारत पठानकोट आतंकवादी हमले के षड्यंत्रकारियों के खिलाफ तुरंत और निर्णायक कार्रवाई चाहता है। उस हमले में सात सैनिक शहीद हुए थे और छह आतंकवादियों को मार गिराया गया था। भारत को चोट पहुंचाने वाले संगठनों और व्यक्तियों को उसी तरीके से जवाब देने की जरूरत पर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर के बल देने के दो दिन बाद सुहाग ने कहा कि भारतीय सेना तैयार है और उसे सौंपे गए किसी भी कार्य को करने में सक्षम है और देश की सुरक्षा पर किसी भी खतरे से निपटने को तैयार है। सेना प्रमुख सेना दिवस से पहले यहां अपने वार्षिक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने पाकिस्तान से लगी सीमा से पंजाब में अतिक्रमण पर चिंता जताई और साफ कर दिया कि इसकी जिम्मेदारी बीएसएफ पर है क्योंकि वह इलाके की सुरक्षा में तैनात है।
सुहाग ने इस बात का भी संकेत दिया कि छह पाकिस्तानी आतंकवादी पठानकोट वायु सेना ठिकाने में पहले से छिपे हों क्योंकि 24 किलोमीटर की परिधि वाली दीवार के पास सेना का घेरा लगाए जाने के बाद कोई भी अंदर नहीं आया। उन्होंने कहा कि अगर आतंकवादियों ने स्थानीय मदद से मादक पदार्थों के तस्करों के रास्ते का इस्तेमाल भीतर आने के लिए किया है तो यह देशद्रोह का मामला है।
सेना प्रमुख ने हमले का जवाब देने में समन्वय के अभाव के आरोपों को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि ‘पूरा तालमेल’ था। क्या विदेश सचिव स्तर की वार्ता इसी हफ्ते होनी चाहिए , इस पर सेना प्रमुख ने कहा कि यह कूटनीतिक और राजनैतिक फैसला है। हमले में पाकिस्तान की भूमिका पर सुहाग ने कहा कि उनके द्वारा ली गई दवाओं पर मार्किंग के साथ उनके कुछ उपकरण दर्शाते हैं कि वे पाकिस्तान से हैं।
उन्होंने कहा कि साक्ष्य को पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ साझा किया गया है। लेकिन एनआइए की जांच के बाद ही ब्योरा आएगा। जनरल ने कहा कि पठानकोट हमले का मकसद अधिकतम क्षति पहुंचाना और मीडिया में सुर्खियां बटोरना था। सेना प्रमुख ने कहा कि देश के समक्ष सुरक्षा वातावरण अधिक जटिल और गतिशील बन रहा है और कहा कि कम से कम 17 आतंकी प्रशिक्षण शिविर पाक अधिकृत कश्मीर में अब भी सक्रिय हैं। पहले 42 शिविर चल रहे थे। कई शिविरों को अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से कुछ साल पहले बंद कर दिया गया था।
पठानकोट आतंकवादी हमले पर सुहाग ने कहा कि ‘समन्वय का कोई अभाव नहीं’ है और स्थानीय कमांडरों को योजना बनाने और उस पर तामील करने की पूरी स्वतंत्रता थी। आतंकवाद निरोधी अभियान पश्चिमी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट केजे सिंह के नेतृत्व में चलाया गया है। उनकी टिप्पणियां विशेषज्ञों के उठाए गए सवालों के बीच आई हैं कि क्यों कई बार कमान में बदलाव किया गया और क्यों गृह मंत्रालय के तहत एक अर्द्धसैनिक बल एनएसजी ने अभियान का नेतृत्व किया।
सुहाग ने कहा, ‘जहां तक सेना का सवाल है तो यह किसी के भी कमान के तहत नहीं थी। यह पश्चिम सैन्य कमांडर के तहत थी जो मेरी तरफ से अभियान की निगरानी और नियंत्रण कर रहे थे।’ उन्होंने कहा कि महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक था प्रतिष्ठानों की सुरक्षा सुनिश्चित करना। 10 हजार से अधिक लोग और विदेशी प्रशिक्षु ठिकाने में रह रहे थे। उन्होंने कहा कि सेना की आठ टुकड़ियों के अलावा विशेष बलों को तैनात किया गया था।
यह पूछने पर कि पठानकोट अभियान का नेतृत्व करने के लिए एनएसजी को बुलाना सही था या नहीं तो उन्होंने कहा, ‘एनएसजी बंधक स्थिति से निपटने के लिए सर्वश्रेष्ठ बल है और यह एक अच्छा फैसला था।’ देश को आश्वस्त करते हुए उन्होंने कहा कि सेना बेहद प्रेरित है और हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के किसी भी खतरे का जवाब देने के लिए तैयार है। सुहाग ने कहा कि वे निजी तौर पर अभियान की निगरानी कर रहे थे और लेफ्टिनेंट जनरल सिंह के नियमित संपर्क में थे।
सेना प्रमुख ने कहा कि पठानकोट अभियान के लिए उनका निर्देश सभी संयंत्रों और कर्मियों को सुरक्षित रखना और इस बात को सुनिश्चित करना है कि कोई भाग न सके और लोगों को हताहत होने से बचाया जा सके।