Narendra Modi: भारत में 17वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव की घोषणा शुरू हो चुकी है। राजनीतिक पार्टियां जहां वादों और अपने किए गए कामों को गिना रही है तो वहीं, कुछ नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पिछले पांच साल के कार्यकाल के प्रदर्शन की समीक्षा में जुटे हैं। कोई महंगाई को लेकर समीक्षा कर रहे हैं तो किसी का ध्यान औद्योगिक उत्पादन और घरेलू उत्पाद वृद्धि पर है। हालांकि, एक पहलू यह भी है कि सरकार ने देश के विभिन्न सेवाओं व वस्तुओं पर टैक्स लगाकर जो पैसा प्राप्त किया है, उसे कहां और कैसे खर्च किया गया। डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, 2004-05 से लेकर 2018-19 के बीच किए गए समीक्षा से पता चलता है कि मोदी सरकार के दौरान केंद्र का कुल खर्च जीडीपी के प्रतिशत के रूप में मनमोहन सरकार से कम रहा है। 2004-05 में जहां कुल जीडीपी का 15.6 प्रतिशत खर्च किया गया। वहीं, 2018-19 में यह संभावित खर्च प्रतिशत 12.9 है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि मोदी सरकार में मनमोहन सिंह की सरकार से कम खर्च हुआ।

दरअसल, मोदी सरकार द्वारा किए गए बहुत सारे पूंजीगत खर्च के साथ-साथ राजस्व खर्च को भी पिछले कुछ वर्षों में बजट से हटा दिया गया है। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने कुछ समय पहले जारी अपने एक रिपोर्ट में बताया था, ” सरकार ने राजस्व के साथ-साथ पूंजीगत खर्च के लिए ऑफ-बजट फाइनेंसिंग का भी सहारा लिया है। इसका उपयोग विशेष बैंकिंग व्यवस्थाओं के माध्यम से उर्वरक बकाया/बिलों को चुकाने के लिए किया गया था। उधार के माध्यम से एफसीआई की खाद्य सब्सिडी बिलों / बकाया राशि और दीर्घकालीन सिंचाई निधि (एलटीआईएफ) के तहत नाबार्ड द्वारा उधार के माध्यम से सिंचाई योजना (एआईबीपी) को लागू करने के लिए किया गया था।” रिपोर्ट में आगे कहा गया था, “पूंजीगत खर्च के संदर्भ में, आईआरएफसी की उधारी के माध्यम से रेलवे परियोजनाओं को फाइनेंस और पीएफसी के माध्यम से बिजली परियोजनाओं को फाइनेंस किया गया। इन सभी को बजट से बाहर रखा गया था।”

एफसीआई के मामले की बात करें तो इसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से गेहूं की खरीद की गई और सब्सिडी रेट पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से वितरित किया गया। इस खरीद-बिक्री में हुए घाटे की भरपाई सरकार ने बजट में फूड सब्सिडी का आवंटन कर की। यूं तो किसी वर्ष के दौरान हुए नुकसान की भरपाई उस वर्ष की जानी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता है, और इन नुकसानों को भविष्य के वर्षों के लिए आगे बढ़ाया जाता है। उदाहरण के तौर पर एफसीआई को नेशनल स्मॉल सेविंग फंड से 1,21,000 करोड़ रुपये उधार लेने पड़े क्योंकि सरकार ने पैसे नहीं दिए थे। आदर्श स्थिति ये होती कि सरकार एफसीआई को पैसे दे देती तो उसे उधार लेने की जरूरत नहीं पड़ती। समय पर पैसे नहीं देने की वजह से सरकार को अपना खर्च कम करना पड़ा।

पैसे की उधारी पर लगने वाला ब्याज भी सरकार को देना होता है। वर्ष 2005-06 में सरकार ने अपने पूरे खर्च का 26.2 प्रतिशत ब्याज में खर्च किया था। 2010-11 में ब्याज पर सबसे कम 19.5 प्रतिशत खर्च हुआ और 2018-19 में यह अनुमानित 23.9 प्रतिशत है। खर्च का एक बड़ा हिस्सा रिटायर्ड कर्मचारियों के पेंशन में जाता है। 2004-05 में यह हिस्सा करीब 3.7 प्रतिशत था। वहीं, 2018-19 में बढ़कर यह अनुमानित 6.8 प्रतिशत पर पहुंच गया है। मोदी सरकार द्वारा सैन्यकर्मियों के लिए लागू किए गए ओआरओपी की वजह से भी इसमें काफी उछाल आया।

कर्मचारियों को वेतन देने में भी सरकार का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है। वर्ष 2004-05 में यह कुल खर्च का जहां 7.3 प्रतिशत था, वहीं 2009-10 में बढ़कर 9.4 प्रतिशत हो गया था। वर्ष 2018-19 में 9.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इन सब के अलावा सरकार द्वारा खाद्य, खाद, पेट्रोलियम पर दिए जाने वाले सब्सिडी में भी जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है। वर्ष 2004-05 में सब्सिडी में कुल जीडीपी का 9.3 प्रतिशत खर्च हुआ था। 2012-13 में बढ़कर यह 18.3 प्रतिशत तक पहुंच गया था। वहीं, 2018-19 में यह 12.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है।