पौराणिक काल से ‘ब्रह्म द्रव्य’ के रूप में प्रचलित गंगा नदी के औषधीय गुणों एवं प्रवाह मार्ग पर जल के स्वरूप एवं इससे जुड़े विभिन्न कारकों एवं विशेषताओं का पता लगाने के लिए सरकार द्वारा शुरू कराया गया अध्ययन कार्य लगभग पूरा हो चुका है जिसकी रिपोर्ट जल्द ही आने की उम्मीद है। यह अध्ययन राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (निरी) कर रहा है। जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने कहा, ‘गंगा नदी में औषधीय गुण हैं जिसके कारण इसे ‘ब्रह्म द्रव्य’ कहा जाता है और जो इसे दूसरी नदियों से अलग करता है। यह कोई पौराणिक मान्यता का विषय नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार है।’
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि गंगा नदी के औषधीय गुणों एवं प्रवाह मार्ग से जुड़े कारणों के अध्ययन का दायित्व राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग शोध संस्थान (निरी) को दिया गया था। इसके लिए तीन मौसम के अध्ययन की जरूरत थी और इस बरसात के बाद संस्थान अपनी रिपोर्ट पेश कर देगा। इस अध्ययन को केंद्र को तीन चरणों में पूरा करना था, जिसमें शीतकालीन, पूर्व मानसून और उत्तर मॉनसून मौसम में गंगा नदी के 50 से अधिक स्थलों पर नमूनों का परीक्षण किया गया है। शीतकालीन व पूर्व मॉनसून मौसम की अध्ययन रिपोर्ट दिसंबर 2015 में गंगा सफाई राष्ट्रीय मिशन को पेश भी की जा चुकी है।
उत्तर मॉनसून मौसम में किए गए परीक्षणों के परिणामों का अध्ययन और संकलन अपने अंतिम चरणों में होने की जानकारी प्राप्त हुई है। इस अध्ययन व अनुसंधान परियोजना को पंद्रह महीनों में किया जाना था। इस अध्ययन में गंगा जल के विशेष गुणधर्मों के स्रोतों को पहचानने की प्रक्रिया थी। इसी तरह नदी के पानी में मिलने वाले प्रदूषित जल के अनुपात से होने वाले दुष्परिणामों का पता लगाना भी एक हिस्सा था। 12 दिसंबर 2014 से 30 नवंबर 2016 तक इस परियोजना को पूरा करना था।
उमा भारती ने कहा कि गंगा नदी के औषधीय गुणों के बारे में वरिष्ठ शिक्षाविद प्रो. भार्गव का सिद्धांत भी है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इसके पीछे यह कारण बताया गया है कि हिमालयी क्षेत्र औषधियों से भरा हुआ है जो शीत रितु में बर्फ से दब जाते हैं। बाद में बर्फ पिघलने के बाद ये औषधियां पानी के साथ गंगा नदी में मिल जाती हैं। इस अध्ययन में इस बात का भी पता लगाया जाएगा कि गंगा नदी के औषधीय गुण मौजूद हैं या धीरे धीरे खत्म हो रहे हैं। इसके अलावा गंदगी एवं जलमल के प्रवाह से जुड़े विषयों का भी अध्ययन किया जाएगा। इसमें गोमुख से गंगा सागर तक जल प्रवाह से जुड़े तत्वों का भी अध्ययन किया जा रहा है। इसके तहत टिहरी से पहले और टिहरी के बाद, नरौरा से पहले और नरौरा के बाद, कानपुर से पहले और कानपुर के बाद, पटना से पहले और पटना के बाद… पानी के स्वरूप में बदलाव का अध्ययन किया जा रहा है।
जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय का कहना है कि इस पवित्र नदी में प्रत्येक वर्ष अनेक धार्मिक अवसरों पर करोड़ों लोगों द्वारा डुबकी लगाने के बावजूद इस नदी से कोई बीमारी या महामारी नहीं फैलती है। इसका कारण इस नदी के जल में अपने आप सफाई करने की कोई अद्भुत शक्ति है जो इसके पानी में सड़न को रोकती है। इस अध्ययन से अपने विशिष्ट गुणों के कारण गंगा जल को मानव जाति के कल्याण और स्वास्थ्य के लिए उपयोग करने में मदद मिलेगी। इस विषय पर ब्रिटिश जीवाणु विशेषज्ञ अर्नेस्ट हेनबरी हेन्किन के संदर्भों का हवाला दिया जाता है जिनके अनुसार इस नदी के जल में जीवाणुभोजी गतिविधियों की उपस्थिति का बहुत पहले ही पता चल चुका है। इस दावे के नवीकरण के लिए नए अनुसंधान किए जाने की जरूरत है।