आर्थिक स्थितियों के साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर बढ़ते भूराजनीतिक तनाव की वजह से पिछले दो साल में जी20 की प्राथमिकताएं बदली हैं। भारत आपूर्ति शृंखला, बहुपक्षवाद, डिजिटल ढांचा समेत कई मुद्दे उठा रहा है।

इन सबके बीच, साइबर सुरक्षा का क्षेत्र ऐसा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, जो ना केवल अस्थिर है, बल्कि इस पर के स्तर पर अत्यधिक ध्यान देने की जरूरत है। देश में सुरक्षित साइबरस्पेस की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है। विशेष रूप से ढांचागत खतरों को लेकर, जैसे कि नई दिल्ली के आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस (एम्स) में साइबर हमला इसका ताजा उदाहरण है।

चिंताजनक रिपोर्ट

वर्ष 2022 की ‘माइक्रोसाफ्ट डिजिटल डिफेंस रिपोर्ट’ के अनुसार, विभिन्न देश लगातार बढ़ते साइबर हमलों का सामना कर रहे हैं। ये हमले विशेष रूप से सूचना तकनीक क्षेत्र, वित्तीय सेवाओं, यातायात प्रणाली और संचार से जुड़े बुनियादी ढांचे को निशाना बनाकर किए जा रहे हैं। साइबर खतरों का संभावित असर सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहता, बल्कि काफी व्यापक होता है। इनका प्रभाव महत्त्वपूर्ण ढांचागत क्षेत्र के बाहर भी होता है। जो डिजिटल मंच सरकार की सेवाओं और सुविधाओं को जन-जन तक पहुंचाने का काम करते हैं, उन पर व्यापक रूप से असर डालता है।

यही वजह है कि साइबर-सुरक्षित मंच ना केवल राष्ट्रीय सुरक्षा और बेहतर प्रशासन के लिए अहम हैं, बल्कि नागरिकों के विश्वास को कायम रखने के लिए भी बेहद अहम हैं। हालांकि, सभी आयु वर्गों और पृष्ठभूमि के लोगों के लिए एक प्रकार का साइबर सुरक्षा कौशल कार्यक्रम लागू करना बेहद कठिन है।
भारत की विषय-वस्तु

भारत में नेशनल कंप्यूटर इमरजंसी रेस्पांस टीम (सर्ट) के मध्य बेहतर समन्वय से कई संभावित साइबर खतरों की पहचान की जा सकी है। साइबर सुरक्षा घटनाओं के संबंध में संवेदनशील आंकड़ों और सूचना को साझा करने पर विभिन्न देशों के सर्ट के बीच द्विपक्षीय समझौते हैं। ये महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को लक्षित करने वाले किसी भी संभावित साइबर हमले के विरुद्ध त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करते हैं।

विभिन्न देशों की सर्ट टीमों के मध्य द्विपक्षीय समन्वय अब तक आदर्श मानदंड रहा है, फिर भी दो देशों के बीच साझा किए जा रहे आंकड़ों को लेकर स्पष्टता की कमी रही है। इसके लिए जरूरी है कि साइबर खतरों की प्रतिक्रियाओं को कम करने और साइबर युद्ध रणनीति के विरुद्ध बचाव के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय प्रयास।

अपनी अध्यक्षता में भारत बहुपक्षीय सर्ट सहयोग सुनिश्चित करने के लिए एक रूपरेखा का निर्माण करके देशों के बीच समन्वय में सुधार करने की पहल को आकार दे सकता है। इसमें अन्य टीमों के साथ साझा किए जाने वाले आंकड़ों के प्रकार और साइबर घटनाओं को रिपोर्ट करने का तरीका शामिल हो सकता है। इसके अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों चुनौतियों के लिए सर्ट की प्रतिक्रिया का निर्धारण करने के लिए एक व्यापक ढांचा विकसित कर सकते हैं।

कैसे हो बचाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अक्तूबर, 2022 में इंटरपोल की 90वीं आम सभा को संबोधित करते हुए आपराधिक गतिविधियों से लड़ने के लिए वैश्विक प्रयास की जरूरत पर जोर दिया था। भारत के पास अब आर्थिक गतिविधियों के लिए एक सुरक्षित साइबर जगत का निर्माण करने और डिजिटल अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए वैश्विक साझेदारी की अगुवाई करने का मौका है।

साइबर अपराधों और वसूली खतरों को रोकने पर साइबर सुरक्षा चर्चाएं आयोजित करने होंगे। डार्कनेट गतिविधियों और क्रिप्टोकरेंसी लेनदेन की जांच करने के लिए साइबर फोरेंसिक क्षमता निर्माण करना भी संभावित कदम हो सकता है। अभी जो एक सबसे बड़ी कमी है, वह साइबर खतरों की तुलना में नियमित उपयोगकर्ताओं एवं पेशेवरों के बीच व्यापक कौशल का अंतर है।

इसके अलावा एक और अहम बात यह है कि वित्तीय संस्थाओं, सरकारी एजंसियों और कानून प्रवर्तन एजंसियों जैसे तमाम किरदार अपने डेटा को क्लाउड पर जमा कर रहे हैं। जाहिर है कि संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा के लिए बेहतर साइबर सुरक्षा उपायों की सख्त जरूरत है। इसके लिए पर्याप्त साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों और उन लोगों की आवश्यकता है, जो इस क्षेत्र में क्षमता निर्माण या विशेषज्ञता में अपना योगदान दे सकें। भारत भविष्य के लिए एक रूपरेखा प्रस्तुत कर सकता है।

जी20 में अब तक उठाए गए कदम

वर्ष 2016 में जी20 ‘डिजिटल इकोनामी टास्क फोर्स’ गठित किया गया था, लेकिन साइबर सुरक्षा के मुद्दे को इसके दायरे से बाहर रखा गया था। वर्ष 2020 में सऊदी अरब की अध्यक्षता के दौरान जी20 साइबर सिक्योरिटी डायलाग (डिजिटल इकोनामी टास्क फोर्स के भाग के रूप में) आयोजित कर डिजिटल अर्थव्यवस्था और साइबर सुरक्षा की खाई को पाट दिया गया।

वर्ष 2021 में इटली की अध्यक्षता और वर्ष 2022 में इंडोनेशिया की अध्यक्षता के दौरान भी साइबर सुरक्षा पर बातें उठीं। इस बार डिजिटल अर्थव्यवस्था की विश्वसनीयता को नाजुक माना गया है। इस मुद्दे पर काम करने की जरूरत महसूस की गई है।

क्या कहते हैं जानकार

भारत को अपने सदस्य देशों और उनके विभिन्न सामाजिक पृष्ठिभूमि वाले नागरिक समूहों के लिए साइबर कौशल कार्यक्रम शुरू करने को लेकर अलग-अलग रणनीतियों को अपनाने के बारे में विचार करना होगा। जी20 देशों को सामूहिक जिम्मेदारी निभाते हुए अपने नागरिकों को संभावित साइबर खतरों को पहचानने, उन्हें जानकारी देने, रोकने एवं डेटा में सेंध से बचने के लिए जरूरी कौशल से लैस करना होगा।

  • केवी राजन, पूर्व राजनयिक

साइबर सुरक्षा आज अंतरराष्ट्रीय मामलों का एक अनिवार्य पहलू बन चुका है। यही वजह है कि इसके आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रभावों पर पर्याप्त ध्यान देने की जरूरत है। साइबर सुरक्षा के मुद्दे को जी20 में प्रमुखता देनी होगी। ऐसे समय में जब साइबर जगत को लेकर नियम-कानून बनाने के प्रयासों की सफलता बेहद सीमित हैं, यह जरूरी है।

  • सुजय आर चिनाय, पूर्व राजनयिक