जी20 समिट में पहला बड़ा ऐलान हो गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत मध्य पूर्व यूरोप कनेक्टिविटी कॉरिडोर की घोषणा कर दी है। भारत, यूएई, सऊदी अरब, EU, फ्रांस, इटली, जर्मनी और अमेरिका के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए इसका निर्माण किया जा रहा है। ये ऐलान चीन-पाकिस्तान की लगातार बढ़ रही दोस्ती पर भी करारी चोट की तरह देखा जा रहा है।
ये प्रोजेक्ट क्यों मायने रखता है?
यहां ये समझना जरूरी है कि लंबे समय से भारत और मध्य पूर्व के बीच में व्यापार बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन ना पाकिस्तान से होकर वो रास्ता गुजर सकता है और ना ही चीन की मदद ली जा सकती है। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि आखिर कैसे एक ऐसे नेटवर्क को तैयार किया जाए जिससे मध्य पूर्व तक आसानी से व्यापार को फैलाया जा सके। इसी दिशा में इस साल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अमेरिका में एक अहम मुलाकात की थी। वो मुलाकात ही इस नई परियोजना की नींव बनी है।
क्या हासिल होने वाला है?
इस परियोजना के जरिए एक तिहाई वैश्विक अर्थव्यवस्था को सीधा फायदा पहुंचने वाला है। बड़ी बात ये है कि इस योजना में डेटा, रेल, बिजली और हाइड्रोजन पाइपलाइन को भी शामिल कर लिया गया है। यहां ये समझना जरूरी है कि इस योजना के जरिए भारत और यूरोप के बीच में व्यापार 40 फीसदी तक बढ़ जाएगा। अब ये प्रोजेक्ट कई उन धारणाओं को भी तोड़ने का काम करता है जो पहले कई सालों तक विकास परियोजनाओं के बीच बाधा बनकर बैठी थीं।
भारत के लिए क्यों है जरूरी?
उदाहरण के लिए पहले कहा जाता था कि भारत और अमेरिका एक बार के लिए इंडो पेसिफिक क्षेत्र में साथ काम कर सकता है, लेकिन मिडिल ईस्ट में ऐसा संभव नहीं। लेकिन अब भारत और अमेरिका ने इजराइल और United Arab Emirates के साथ मिलकर I2U2 फोरम बना दिया है। इसके अलावा पाकिस्तान ने भी हमेशा से ही भारत के तमाम कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स में बाधाएं डालने का काम किया है। 1990 से देखा गया है कि भारत को रोकने के लिए अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया तक उसके प्रोजेक्ट्स को कभी पहुंचने ही नहीं दिया गया। लेकिन अब अमेरिका के साथ जिस परियोजना पर काम किया जा रहा है, इसमें ना पाकिस्तान की जरूरत पड़ेगी और ना ही वो किसी भी तरह का अड़ंगा अटका पाएगा।