Telangana High Court: तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को फटकार लगाई है। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर कोई आरोपी चुप है या संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा है, तो हम उसकी हिरासत अवधि नहीं बढ़ा सकते हैं। चुप रहने का अधिकार संविधान के तहत सुरक्षित उसका एक मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी का आवेदन मंजूरी के लायक नहीं है।
जस्टिस के लक्ष्मण और के सुजाना की बेंच ने एक आपराधिक मामले में दायर अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। पीएफआई के एक सदस्य ने ट्रायल कोर्ट द्वारा उसकी रिमांड पांच दिन बढ़ाने के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ता ने अपील में क्या कहा
याचिकाकर्ता ने अपनी अपील में कहा कि एनआईए ने 13 जून 2023 को आरोपी यानी याचिकाकर्ता को अरेस्ट कर लिया था। इसके बाद चार जुलाई को कोर्ट ने आरोपी को पांच दिन की कस्टडी दे दी। जांच एजेंसी ने याचिकाकर्ता को 5 दिनों की अवधि के लिए रिमांड पर लिया। जांच एजेंसी ने 1 सितंबर 2023 को दूसरा आवेदन देकर फिर से पांच दिनों के लिए आरोपी की हिरासत मांगी। एनआईए ने कोर्ट को बताया कि हिरासत के दौरान आरोपी ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया। वह ज्यादातर सवालों पर शांत ही रहा। इस मामले में जांच अभी चल रही है। इस आधार पर ट्रायल कोर्ट ने एनआईए के आवेदन को मंजूरी दे दी।
दूसरी तरफ सीआरपीसी की धारा 167 और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 43 (डी), (2) (बी) के तहत रिमांड आवेदन 30 दिनों के भीतर दायर किया जाना चाहिए। लेकिन इस मामले में आरोपी ने यह दावा करते हुए इसे चुनौती दी थी कि गिरफ्तारी के 30 दिन बीत चुके हैं।
इस पर हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण करने के बाद पुलिस कस्टडी के लिए दूसरा आवेदन 30 दिनों के भीतर दिया जा सकता है। लेकिन जांच एजेंसी के पास इसके लिए एक कारण भी होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि एनआईए का आवेदन मंजूरी के लायक है लेकिन उसने जो वजह बताई है वह सही नहीं है।