पिछले बीस दिन से चल रहा किसान आंदोलन अब जिस मोड़ पर पहुंच गया है, उससे लग रहा है कि किसान और सरकार दोनों ही अपने रवैए से टस से मस नहीं होने वाले। किसानों ने रविवार को दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग ठप करके और सोमवार को आठ घंटे अनशन कर अपना इरादा साफ कर दिया कि जब तक विवादास्पद कृषि कानून वापस नहीं लिए जाते तब तक वे लौटने वाले नहीं हैं।

दूसरी ओर सरकार भी एक तरह से जिद पर अड़ गई है कि किसान आंदोलन वापस लें और कानून में जायज संशोधन के संबंध में बात करें, वरना बैठे रहें धरने पर! वरिष्ठ मंत्रियों के जरिए समय-समय पर सरकार अपने इस रुख को स्पष्ट भी कर चुकी है। एक तरह से दोनों ही पक्षों ने इसे नाक की लड़ाई बना लिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब दोनों पक्ष ऐंठ दिखाते रहेंगे तो समस्या का हल कैसे निकलेगा।

इस तरह का टकराव अच्छे संकेत नहीं दे रहा। टकराव की ऐसी स्थिति धीरे-धीरे अराजकता में तब्दील होने लगती है, जो कि हम देख भी रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से आंदोलन में शरारती तत्त्वों की घुसपैठ की खबरें भी आई हैं। किसान संगठनों में भी फूट की बातें भी कही जा रही हैं। तरह-तरह के समूह और राजनीतिक दल अपने हित साधने में लगे हैं। किसान आंदोलन में ये जो स्थितियां निर्मित हो होती जा रही हैं, उनसे किसी समाधान की तरफ नहीं बढ़ा जा सकता। यही दुख और चिंता का विषय है।

लेकिन अब एक ज्यादा बड़ा संकट सामने है, जिसे नजरअंदाज करना संबंधित पक्षों को भारी पड़ सकता है। दिल्ली से लगी सीमाओं पर आंदोलनकारी किसानों का भारी जमावड़ा है। इस वक्त घने कोहरे और कड़ाके की ठंड में सड़कों पर तंबुओं में और ट्रैक्टरों की ट्रलियों में अस्थायी डेरे बना कर किसान डटे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा खतरा किसानों के बीमार पड़ने का है।

पिछले कुछ दिनों में तेज बुखार से हालत बिगड़ने के कारण छह किसानों की मौत हो गई। बुखार से पीड़ित किसानों को धरनास्थल से हटा कर इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाया जा रहा है। इससे भी बड़ा संकट कोरोना को लेकर बना हुआ है। जिस तादाद में किसान जमा हैं उसमें कोरोना संक्रमण का खतरा और बढ़ गया है। ऐसी भीड़ में मास्क और सुरक्षित दूरी जैसे उपायों का पालन कैसे हो रहा होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन इस ओर न तो सरकार सोच रही है, न किसान। धरने पर बैठे किसानों में नौजवानों के अलावा बड़ी संख्या में बुजुर्ग किसान भी हैं। सवाल है अगर कहीं यहां संक्रमण फैल गया तो कौन जिम्मेदार होगा?

इसलिए कृषि कानूनों को लेकर सरकार और आंदोलनकारी किसानों के बीच रास्ता निकलना बहुत जरूरी है। कोरोना महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था पहले ही चौपट हुई पड़ी है। किसान आंदोलन के कारण दिल्ली में दूसरे राज्यों से आने वाले सामान, फैक्ट्रियों के लिए कच्चे माल और फल-सब्जियों की आवक पर भारी असर पड़ रहा है। दिल्ली में चलने वाली औद्योगिक इकाइयों में पिछले बीस दिनों में उत्पादन तीस फीसद तक नीचे आ गया है।

आंदोलन से आम जनजीवन पर भी असर पड़ना स्वाभाविक है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जिद की प्रवृत्ति समाधान की तरफ नहीं बढ़ने देती। अभी तक हमें यही देखने को मिल रहा है। ऐसे में सरकार और किसान संगठनों को हठधर्मिता छोड़ते हुए खुले दिमाग से सोचना चाहिए कि जल्द से जल्द समाधान तक कैसे पहुंचा जाए।