तमिलनाडु के अपनिकेनपत्ती पुदूर गांव में एक भूमिहीन किसान के घर पैदा हुए वेलुमणि ने सरकारी स्कूलों में पढ़ाई पूरी की। उनके पास इतना पैसा भी नहीं था कि एक जोड़ी चप्पल खरीद सकें। खुद वेलुमणि कहते हैं, “मैं पिरामिड के दस पायदानों में से सबसे निचली पायदान पर पैदा हुआ। यह सब आसान नहीं था, मगर आज मैं उसी पिरामिड की सबसे ऊंची जगह पर हूं।”
दो दशक पहले वेलुमणि द्वारा स्थापित की गई कंपनी Thyrocare ने 13 मई 2016 को शेयर बाजारों में 3,377 करोड़ रुपए की परिसंपत्तियों के साथ जोरदार आमद दर्ज कराई थी। वेलुमणि के पास कंपनी में 64 प्रतिशत शेयर हैं जो उन्हें करीब 323 मिलियन डॉलर का मालिक बनाता है।
वेलुमणि ने 1979 में एक छोटी दवा कंपनी में केमिस्ट के तौर पर नौकरी से शुरुआत की। तब वह हर महीने 150 रुपए कमाते थे। तीन साल बाद कंपनी बंद हो गई और वेलुमणि सड़क पर आ गए। लेकिन यहीं से उन्होंने कुछ पाने की सोची। उन्होंने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में लैब असिस्टेंट की नौकरी के लिए अप्लाई किया। उन्हें नौकरी मिल गई। लेकिन अंदर पहुंचने के बाद वेलुमणि ने और पढ़ने का फैसला किया।
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1985 में उन्होंने मास्टर्स की डिग्री ली और 1995 में Thyroid बॉयोकेमिस्ट्री में डॉक्टरेट पूरी की। वेलुमणि कहते हैं, “1982 में मैं नहीं जानता था कि थायरॉयड ग्रंथि कहांं होती हैं और 1995 तक मैं थायरॉयड बॉयोकेमिस्ट्री में पीएचडी हो चुका था।” इसी दौरान वह वैज्ञानिक बन गए और सेंटर के उस विभाग में पोस्टेड रहे जो स्वास्थ्य सेवाओं और खेती में परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल पर शोध करता था।
भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में 14 साल काम करने के बाद, वेलुमणि ने नौकरी छोड़ दी। उन्होंने फैसला किया कि वह अपनी रिसर्च का इस्तेमाल थायरॉयड डिसऑर्डर्स को डिटेक्ट करने वाली टेस्टिंग लैब बनाने में करेंगे। अपने पीएम से जुटाए 1 लाख रुपयों से उन्होंने दक्षिणी मुंबई में एक दुकान खोली। तब उनकी उम्र 37 साल थी। वेलुमणि की पत्नी, जिनकी इस साल फरवरी में पैनक्रियाटिक कैंसर से मौत हो गई, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की नौकरी छोड़कर उनकी पहली कर्मचारी बनीं।
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थायरॉड टेस्टिंग में सुनहरा भविष्य देखकर वेलुमणि ने फेंचाइज मॉडल के साथ शुरुआत की। वे देश भर से सैंपल जुटाते और मुंबई की केन्द्रीय लैब में भेजते। वेलुमणि अपने बिजनेस मॉडल को सफलता का श्रेय देते हैं। उनके मुताबिक, “हमारी सफलता के दो मुख्य कारण हैं। पहला, हमने पिछले 20 सालों में कभी भी कर्ज नहीं लिया। दूसरा, पिछले 10 सालों में, हमने 60 करोड़ रुपया कैश में तैयार रखा।”
