डेढ़ साल में चार तबादले और 13 इन्क्वायरी झेल रहे तमिलनाडु पुलिस के एक जवान को मद्रास HC ने कर्म का हवाला देकर राहत दी है। जस्टिस श्रीमथि ने अपने फैसले में कहा कि कानून में सजा को सुधार के विकल्प के तौर पर देखा जाता है। लिहाजा कर्म के सिद्धांत को ध्यान में रख अदालत उसे राहत दे रही है। याचिका कर्ता पहले से ही कई तरह की परेशानी झेल रहा है।

कोर्ट का कहना था कि कर्म दो तरह के हैं। एक में समग्र कर्म होते हैं तो दूसरे में उसका कुछ हिस्सा। जब सजा दी जाती है तो वो कर्म के एक हिस्से पर लागू होती है न कि समग्र कर्म पर। याचिका कर्ता पहले ही तबादलों और जांच के साथ अपनी तनख्वाह का एक हिस्सा हर माह गंवा रहा है। लिहाजा उसे राहत मिलनी चाहिए।

याचिका के मुताबिक श्रीमुरुगन ने तमिलनाडु पुलिस में बतौर कांस्टेबल अपनी नौकरी की शुरुआत 2003 में की थी। 2011 में उसके साथ एक हादसा हुआ, जिसके बाद उसे लगातार छुट्टी पर रहना पड़ा। कई दफा छुट्टी पर जाने के लिए उसने पुलिस रूल्ज के प्रोटोकॉल की अवहेलना भी की। उसका कहना है कि इस तरह से छुट्टी लेने की वजह से उसके खिलाफ 2019 के बाद से कई इन्क्वायरी शुरू हो गईं। इनकी तादाद अब 13 तक पहुंच चुकी है। बीते 18 माह के दौरान उसका चार बार तबादला किया जा चुका है।

श्रीमुरुगन ने अपने खिलाफ चल रही 13 इन्क्वायरी के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया। अदालत ने तमिलनाडु पुलिस चीफ को हिदायत दी कि पनिशमेंट को कम किया जाए। लेकिन श्रीमुरुगन का दावा है कि अफसर अदालत के आदेश को लागू ही नहीं कर रहे। उसका कहना है कि पुलिस में उसके जैसे पद पर काम कर रहे बाकी जवान 59 हजार रुपये प्रतिमाह की तनख्वाह ले रहे हैं पर उसे केवल 9 हजार ही मिल पाते हैं, क्योंकि उसके खिलाफ कई तरह की जांच चल रही हैं। फिलहाल उसका तबादला तूतिकोरिन में कर दिया गया है। इतनी कम तनख्वाह में वो अपना और अपने परिवार का गुजारा किस तरह से कर सकता है।

दूसरी तरफ पुलिस का कहना था कि इस तरह की नौकरी में तबादले होते ही रहते हैं। स्टेट पुलिस की तरफ से ये भी कहा गया कि आरोपी जवान आरटीआई की इस्तेमाल करके अपने हिसाब से चीजों को चलाने की कोशिश कर रहा है। जस्टिस श्रीमथि ने आरोपी जवान को हिदायत दी कि वो अपनी नौकरी में ध्यान लगाए। आरटीआई जैसे दूसरे मसलों में खुद को न उलझाए। कोर्ट ने जवान का तबादला तूतिकोरिन के बजाए मदुरै जिले की ट्रैफिक पुलिस में करने का आदेश भी दिया।