पूर्व एनएसए शिवशंकर मेनन ने कहा है कि भारत सबसे बढ़िया प्रदर्शन तभी करता है जब वह बाह्य जगत से जुड़कर चलता है। उन्होंने कहा कि इधर कुछ साल से हम अंतर्मुखी होते जा रहे हैं, अपने लिए दुनिया के दरवाजे बंद करते जा रहे हैं। शिवशंकर मेनन इंडियन एक्सप्रेस के साथ खास बातीच कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने अनेक मामलों पर बेबाक राय रखी। विश्वगुरु की बात करते हुए वे बोले, हम मान बैठे हैं कि हम विलक्षण और अद्वितीय हैं। हो सकता है, हम ऐसे हों भी लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि हमें अब दुनिया में किसी की ज़रूरत ही नहीं।

शिवशंकर मेनन ने इंटरव्यू के दौरान साफ कहा कि मुझे नहीं लगता कि अभी हम विश्व-गुरु के ओहदे का दावा करने के लायक हैं। न तो हम ज्ञान के बहुत बड़े सृजनकर्ता हैं, न ही महान अन्वेषक हैं। सच तो यह है कि हम ज्ञान, टेक्नॉलजी और विचारों के इम्पोर्टर हैं। निस्संदेह, इस स्थिति को बदला जा सकता है। लेकिन एक दिन में नहीं। एक बात और। विश्व-गुरु होने का मतलब सिर्फ यही नहीं कि भारतवासी बेहतर, सुरक्षित और सम्पन्नता का जीवन जिएं।

एक अन्य सवाल पर उन्होंने कहा कि आज विदेश नीति देश के अंदर अपनी छवि चमकाने का जरिया बन गई है। भारत उभरती हुई वैश्विक शक्ति है, जैसी बात खुद अपने ही लोगों को सुनाई जा रही हैं।  यह दुनिया, दरअसल, बहुत यथार्थवादी है। वह हमारे संसाधन, आर्थिक मजबूती और सैन्य शक्ति के साथ-साथ यह भी देखती है कि हम देश के अंदर अपना कामकाज कितने अच्छे ढंग से चला पा रहे हैं। इसके आगे वह हमारा सॉफ्ट पावर, यानी कूटनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक ताकत का भी आकलन करती है। कहना तो नहीं चाहिए कि इधर कुछ समय से हमारे सॉफ्ट पावर पर भी चोट पड़ी है।

पूर्व एनएसए ने कहा कि भारत एक भिन्न प्रकार की शक्ति है। हम खुद को विकासशील देश मानते रहे हैं और समझते रहे हैं कि हमे (तरक्की के लिए) अभी लंबा रास्ता तय करना है। लेकिन हमारे पास वज़न है। हमारा असर होता है। हमारे पास वह दिमाग है जो दूसरों की ताकत का इस्तेमाल करना जानता है। वैसे ही जैसे जूडो का पहलवान प्रतिद्वंद्वी के वजन का इस्तेमाल करते हुए उसे ही पटक देता है।

2008 में जब न्यूक्लियर सप्लाइ ग्रुप (एनएसजी) ने हमे क्लियरेंस देने से इन्कार कर दिया था। उस वक्त अपने दोस्तों और इकलौती महाशक्ति के साथ मिलकर काम करते हुए एनएसजी के इन्कार का तोड़ निकालने में सफल रहे थे। ऐसे ही 1971 में सोवियत संघ के समर्थन से उपमहाद्वीप का भूगोल बदला गया था और हमारा इतना बड़ा पड़ोसी देख कर रह गया था।…यह एक उपलब्धि थी। सो, यहां कौशल का तत्व भी शामिल है। इसका मतलब है परिस्थितयों को समझना और उन्हें अपने हित में इस्तेमाल करना।