गुजरात के पोरबंदर की एक अदालत ने 1997 के हिरासत में यातना से जुड़े मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को बरी कर दिया है। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित ही नहीं कर सका। अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुकेश पंड्या ने ‘संदेह का लाभ’ देते हुए उन्हें बरी कर दिया है। संजीव भट्ट को इससे पहले जामनगर में 1990 में हिरासत में हुई मौत के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और 1996 में पालनपुर में राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए ड्रग्स रखने के मामले में 20 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। वह फिलहाल राजकोट सेंट्रल जेल में बंद है।
अदालत ने क्या कहा?
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले को साबित नहीं कर सका। मामला दर्ज हुआ था कि संजीव भट्ट ने नारन जादव नाम के व्यक्ति को अपराध कबूल करने के लिए मजबूर किया गया था और खतरनाक हथियारों और धमकियों का उपयोग करके आत्मसमर्पण करने के लिए कहा था। कोर्ट को इस मामले को लेकर पर्याप्त सबूत नहीं मिल सके, इसलिए संजीव भट्ट को रिहा कर दिया गया।
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नारन जादव 1994 के हथियार बरामदगी मामले में 22 आरोपियों में से एक थे। शिकायत के मुताबिक पोरबंदर पुलिस की एक टीम 5 जुलाई, 1997 को अहमदाबाद की साबरमती सेंट्रल जेल से ट्रांसफर वारंट पर जादव को पोरबंदर में संजीव भट्ट के घर ले गई थी। जहां कथित तौर पर नारन जादव को टोर्चर किया गया था। मार्च 2024 में पूर्व आईपीएस अधिकारी को बनासकांठा जिले के पालनपुर की एक अदालत ने 1996 में राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए ड्रग्स रखने के मामले में 20 साल कैद की सजा सुनाई थी।
वह सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार के साथ 2002 के गुजरात दंगों के मामलों के संबंध में कथित तौर पर सबूत गढ़ने के एक मामले में भी आरोपी हैं। यहां पढ़ें