पीएमओ की बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को बुलाए जाने के कदम पर पूर्व चुनाव आयुक्तों ने आपत्ति जताई है। पूर्व चुनाव आयुक्तों ने इसे गलत करार देते हुए कहा कि इस तरह से चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर असर पड़ेगा। इस पूरे मामले पर पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि चाहे किसी भी तरह का स्पष्टीकरण दिया जाए लेकिन यह अस्वीकार्य है। उन्होंने उदाहरण देकर पूछा कि क्या न्यायिक सुधारों पर चर्चा के नाम पर सरकार, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों के साथ चर्चा के लिए बुला सकती है। उन्होंने पूछा कि क्या चुनाव पर चर्चा के लिए आयोग को ही बुलाया जा सकता है? पूर्व चुनाव आयुक्त के अनुसार, प्रधानमंत्री भी CEC को मीटिंग के लिए नहीं बुला सकते हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार कानून मंत्रालय के एक अधिकारी ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) को प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव के साथ बैठक में मौजूद रहने के लिए कहा था और मुख्य चुनाव आयुक्त ने इस पर आपत्ति जताई थी। हालांकि इस विषय पर टिप्पणी देने के लिए चंद्रा खुद मौजूद नहीं थे लेकिन चुनाव आयोग के एक वरीष्ठ अधिकारी ने बताया कि CEC ने कानून मंत्रालय के नोट पर नाराजगी जताते हुए साफ कर दिया था कि वह बैठक में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने बताया कि चंद्रा व अन्य दो आयुक्त इस वीडियो मीटिंग से दूर रहे थे लेकिन उनके सबऑर्डिनेट मीटिंग का हिस्सा बने थे।
कुरैशी ने कहा कि इस तरह अधिकारियों के साथ किसी भी तरह की बैठक लोगों के मन में संदेह ही पैदा करेगी। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के अधिकारी सब कुछ जानते हैं, ये वहीं अधिकारी हैं जिन्होंने चुनाव की प्रक्रिया में सुधारों को प्रस्तावित किया था, अधिकारियों को इसके लिए खास ट्रेनिंग भी जाती है और वह समय समय पर सरकार की बैठकों में आयोग के दृष्टिकोण को समझाने के लिए जाते रहते हैं, ऐसे में सरकार की अनौपचारिक बातचीत में शामिल होने का कोई औचित्य नहीं है।
एक अन्य पूर्व चुनाव आयोग के प्रमुख ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि इस तरह की कॉल को अवॉइड करने की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि इस तरह की कोशिशें पूर्व की सरकारों द्वारा भी गई थीं लेकिन हम कभी किसी मीटिंग में शामिल नहीं हुए। उन्होंने माना कि ऐसा नहीं होना चाहिए था।
एक तीसरे पूर्व CEC ने कहा कि पांच राज्यों में चुनावों से पहले इस तरह सरकार के साथ बातचीत का मामला प्रकाश में आना, आयोग के लिए अच्छा नहीं है। उन्होंने कहा कि सच कहूं तो इस तरह की बैठक के बाद न ही सरकार और न ही आयोग सही नजर आता है। उन्होंने कहा कि हो सकता है कि उन्होंने चुनावों में सुधार को लेकर चर्चा की हो लेकिन असल बात ये है कि इन चीजों के लिए एक प्रोटोकॉल तय है, जोकि खास उद्देश्यों के मद्देनजर बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग की तटस्थता और स्वतंत्रता को बनाए रखना सबकी जिम्मेदारी है।
पूर्व सीईसी टीएस कृष्णमूर्ति ने कहा मैं केवल इतना कह सकता हूं कि चुनाव आयुक्तों अधिकारियों द्वारा बुलाई गई किसी भी मीटिंग में शामिल होने की जरूरत नहीं थी, अगर सरकार की तरह से इसे जरूरी बताया जाता तो लिखित में स्पष्टीकरण मांगा जा सकता था, जिसका जवाब भी लिखित में आता। इस तरह संदेह की कोई जगह ही नहीं रहती।