रजनीश जैन
लिहाजा पहली बार उन्होंने किसी भी शब्द को वार्षिकी शब्द की श्रेणी में शामिल नहीं किया है! कोरोना ने जीवन का एक भी क्षेत्र अनछुआ नहीं रखा है।
खेल के मैदान एक समय वीरानी की भेंट चढ़ गए थे। महत्त्वपूर्ण नामी खेल प्रतियोगिताएं स्थगित कर दी गई। क्रिकेट के मेले बगैर दर्शकों के संपन्न हो रहे हैं। ऐसा ही कुछ सिनेमा के साथ हो रहा है। हालांकि जिस दौर में रोजमर्रा की जरूरतों और आम जिंदगी के सामने कई तरह की चुनौतियां खड़ी हो रही हों, उसमें मनोरंजन की दुनिया की बात करना थोड़ा विचित्र है, लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि फिल्म उद्योग की दुनिया ने कल्पना, कहानी, निर्माण से लेकर प्रदर्शन तक के विस्तार में कितने लोगों के जीवन को सामान्य बनाए रखने में अपनी भूमिका निभाई है। देश की अर्थव्यवस्था को गति देने में इसका कितना बड़ा हिस्सा रहा है।
लेकिन भारत और दुनिया की सबसे चकाचौंध भरा उद्योग यानी ‘फिल्म इंडस्ट्री’ इस समय अपने कठिनतम समय में प्रवेश कर चुकी है। हालांकि हॉलीवुड संगठित और सुव्यवस्थित तरीके से काम करने के लिए जाना जाता है, लेकिन सिनेमाघरों के एक बार फिर से बंद हो जाने की शुरुआत के चलते इस क्षेत्र से जुड़े लोगों के जीवन पर नकारात्मक असर दिखाई देने लगा है।
कोरोना की दूसरी लहर ने लगभग एक हजार अमेरिकी सिनेमाघरों के दरवाजे तत्काल प्रभाव से बंद करा दिए। ऐसे ही हालात कनाडा में भी बन गए। हाल-फिलहाल हॉलीवुड बीस लाख से अधिक लोगों को सीधे रोजगार उपलब्ध करा रहा था और चार लाख से अधिक व्यवसायों को व्यस्त रखे हुए था।
यह उदाहरण इसलिए कि टिकट लेकर फिल्म देखने वाले दर्शकों का प्रतिशत वहां शेष दुनिया से कहीं अधिक है। मार्च से लेकर अभी तक भारतीय फिल्म उद्योग में भी काफी कुछ बदल गया है। यह क्षेत्र उद्योग का दर्जा प्राप्त कर चुका है, लेकिन शुरुआत से ही कई कमियों से जूझ रहा है।
परदे के पीछे काम करने वाले और सिनेमाघरों के लाखों अनाम कर्मचारियों को आधारभूत सुविधाओं- बीमा, स्वास्थ्य सुविधाओं का सीधा लाभ आज भी दूर की कौड़ी नजर आता है। लंबे समय तक फिल्मांकन बंद रहने और नई फिल्मों के प्रदर्शन न होने से इस क्षेत्र से जुड़े लोगों की मौन पीड़ा की गहराई को सिर्फ महसूस किया जा सकता है। आधी दर्शक क्षमता और दो गज की दूरी की शर्तों के साथ सिनेमा घरों को चलाने की अनुमति तो सरकार ने प्रदान कर दी, लेकिन फिल्मकार आधे दर्शकों के लिए अपनी नई फिल्मों के प्रदर्शन का साहस नहीं जुटा पाए।
पिछले साल वैश्विक स्तर पर इस उद्योग से प्राप्त राजस्व लगभग बयालीस अरब डॉलर का था। यह इसका स्वर्णिम समय माना जा सकता है। जनसंख्या के एक बड़े तबके की फिल्मों से दूरी ने हालात उलट दिए हैं। दर्शकों के सहारे फर्श से अर्श पर पहुंचा उद्योग इस समय शिखर से ढलान की यात्रा पर मजबूती से पैर जमाने की कवायद करता नजर आ रहा है।
हालांकि भारतीय फिल्म उद्योग को लंबे समय से सरकारी अनदेखी को सहन करने का अनुभव रहा है। मल्टीप्लेक्स के आगमन के बाद एकल सिनेमाघरों के पतन का जो दौर आरंभ हुआ था, उसे रोकने में किसी भी प्रदेश की सरकार ने जाहिर दिलचस्पी नहीं ली। जबकि उनकी आय का एक बड़ा स्रोत इन सिनेमाघरों से वसूला जाने वाला मनोरंजन कर ही रहा है।
इस विकट परिस्थिति में एक क्षेत्र ऐसा है, जिसे इस हालत में भी भरपूर लाभ हो रहा है। कायदे से कहें तो इस विकल्प का खड़ा होना भी सिनेमाघरों की संस्कृति को समेटने का एक बड़ा जरिया बना है। यह है स्ट्रीमिंग वीडियो साइट। वैश्विक स्तर पर दर्शकों तक पहुंच बनाने वाली ऐसी दो प्रमुख कंपनियोंने इस संक्रमण काल में पहले से कही अधिक दर्शकों तक अपनी पहुंच बनाई है। नई फिल्मों का प्रदर्शन अब इन मंचों यानी वेबसाइटों पर होना सामान्य घटना बन चुकी है।
लेकिन इनकी भी अपनी कुछ सीमाएं है, जिनके चलते बड़े बजट की फिल्मों का प्रदर्शन इन माध्यमों पर संभव नहीं हो पा रहा है! मल्टीप्लेक्स के कारण एकल स्क्रीन वाले सिनेमाघर बंद हुए। अब सिनेमा के ऐसे मंचों के कारण मल्टीप्लेक्सों की दुनिया के सामने अपना अस्तित्व बचाए रखने की नौबत आ गई है। अब देखना है कि भविष्य में इन मंचों को चुनौती देने वाली दुनिया कौन-सी खड़ी होती है।
नई फिल्मों के फिल्मांकन और प्रदर्शन न होने से तथाकथित सौ करोड़ श्रेणी की फिल्मों की बातें पार्श्व में चली गई हैं। टीवी चैनलों पर दिखाए जाने वाले ‘प्रोमो’ और ‘टीजर’ गायब हो गए हैं। अखबारों में फिल्मों पर लगने वाला पृष्ठ बंद हो गया है या उन्हें सीमित कर दिया गया है।
फिल्मों के प्रचार और विज्ञापन से इन सभी को अच्छा-खासा राजस्व अर्जित होता था, लेकिन अब न के बराबर हो रहा है। कोरोना काल के प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही प्रभावों का आकलन अभी करना जल्दबाजी होगी, लेकिन जो दृश्य अभी दिखाई दे रहा है, उससे भविष्य की तस्वीर धुंधली और डरावनी ही नजर आ रही है!