संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा जारी रपट में कहा गया है कि भारत में करीब 74 फीसद लोगों को पोषणयुक्त आहार नहीं मिल पाता है। पर भारत सरकार ने इन रपटों को गलत और भ्रामक बताया है। पढ़ें जयंतीलाल भंडारी का आर्टिकल-जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में प्रकाशित वैश्विक भूख सूचकांक यानी ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ (जीएचआइ) 2024 में भारत 127 देशों में 105वें स्थान पर है। पिछले वर्ष 125 देशों में 111वें स्थान पर था और 2022 में 121 देशों में से 107वें स्थान पर था। यानी इस वर्ष हालत मामूली ठीक है, लेकिन भारत के लिए अब भी भूख सूचकांक में अंक 27.3 है, जो गंभीर बना हुआ है। वहीं नेपाल 68, श्रीलंका 56 और बांग्लादेश 84वें स्थान पर है। यानी इन देशों की हालत हमसे बेहतर है। पाकिस्तान 109वें स्थान पर है। यह हमसे थोड़ा ही पीछे है। इस भूख सूचकांक के तीन आधार हैं- जरूरी पोषण, बाल मृत्युदर और बाल कुपोषण। इन तीनों आधारों को सौ अंकों का मानक स्केल दिया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन की ओर से जारी रपट में कहा गया है कि भारत में करीब 74 फीसद लोगों को पोषणयुक्त आहार नहीं मिल पाता है। पर भारत सरकार ने इन रपटों को गलत और भ्रामक बताया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा कि वैश्विक भूख सूचकांक भारत की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाता। यह देश की छवि खराब करने का प्रयास है। उल्लेखनीय है कि भारत में भूख की चुनौती से संबंधित इन रपटों के समांतर देश और दुनिया के लोगों को भूख की पीड़ा से बचाने और खाद्य सुरक्षा मजबूत किए जाने से संबंधित विषयों पर प्रकाशित हो रही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रपटों में भारत की सराहना की जा रही है। कहा जा रहा है कि भारत दुनिया का ऐसा देश है जो देश के लोगों की खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ वैश्विक खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर खाद्यान्न और खाद्य प्रसंस्करण उत्पादन बढ़ाने के लिए अभूतपूर्व कदम उठा रहा है।
पिछले दिनों केंद्र सरकार ने टिकाऊ कृषि को प्रोत्साहित और खाद्य सुरक्षा मजबूत करने के लिए एक लाख करोड़ रुपए से अधिक के खर्च वाली दो बड़ी कृषि योजनाओं को मंजूरी दी। कृषि मंत्रालय का दावा है कि इन नई योजनाओं से जहां देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ेगा, वहीं खाद्य सुरक्षा मजबूत होगी और भारत वैश्विक खाद्य सुरक्षा में और अधिक मददगार देश बन सकेगा। जहां अब भारत खाद्यान्न अधिशेष वाला देश बन गया है, वहीं वह खाद्य प्रसंस्करण वाला उभरता देश बन कर वैश्विक खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिए समाधान उपलब्ध कराने की दिशा में भी काम कर रहा है। दरअसल, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, कृषि और विनिर्माण दोनों क्षेत्रों का महत्त्वपूर्ण घटक है।
80 करोड़ लोग लेते हैं खाद्यान वितरण का लाभ
पिछले दिनों नई दिल्ली में आयोजित वर्ल्ड फूड इंडिया 2024 को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस समय भारत दुनिया की नई खाद्य टोकरी और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध देश के रूप में रेखांकित हो रहा है। उन्होंने कहा कि भारत विश्व का ऐसा देश है, जो अस्सी करोड़ से अधिक लोगों को निशुल्क खाद्यान्न वितरण के साथ उनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए दुनिया के जरूरतमंद देशों के करोड़ों लोगों की भूख मिटाने में भी मददगार साबित हो रहा है।
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गौरतलब है कि अक्तूबर 2024 में संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम तथा कई देशों के अनुरोध पर भारत ने गैर-बासमती चावल यानी सफेद चावल के निर्यात पर जुलाई 2023 से लगाई रोक हटा ली है। भारत के इस निर्णय से जहां दुनिया के 140 से अधिक चावल आयातक देशों के करोड़ों चावल उपभोक्ताओं को राहत मिली है, वहीं इससे भारत के चावल उत्पादक किसानों की आय भी बढ़ेगी। यह पहल कृषि निर्यात बढ़ाने और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर भारत की अहम पहल है। यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि भारत ने खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों के अधिक निर्यात की रणनीति अपना कर वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए अधिक मदद का विश्वास दुनिया को दिलाया है। इसमें भी कोई दो मत नहीं कि खाद्य सुरक्षा के वैश्विक मानक स्थापित करने के लिए आगे बढ़ रहा है।
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 2027 तक 1,274 अरब डालर तक पहुंचने का अनुमान
पिछले दस वर्षों के दौरान, भारत ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए व्यापक सुधार शुरू किए हैं। भारत खाद्य प्रसंस्करण में सौ फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों का औपचारीकरण, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना जैसी बहुआयामी पहलों के माध्यम से पौष्टिक दुनिया के निर्माण के सपने को साकार करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। देश में लोगों की बढ़ती आय, शहरीकरण के कारण बदलती जीवनशैली और खानपान की आदतों में परिवर्तन के कारण खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का बाजार आकार तेजी से बढ़ रहा है। इसका जो बाजार आकार 2022 में 866 अरब डालर था, उसके बढ़ कर 2027 में 1,274 अरब डालर तक पहुंचने का अनुमान है। पर भारत रेकार्ड खाद्यान्न उत्पादन के बाद भी खाद्य प्रसंस्करण की ऊंची संभावनाओं को पर्याप्त रूप से मुठ्ठी में नहीं ले पा रहा है।
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भारत में खाद्य प्रसंस्करण का स्तर विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। भारतीय उद्योग परिसंघ की रपट के मुताबिक भारत में कुल खाद्य उत्पादन का दस फीसद से भी कम हिस्सा प्रसंस्कृत होता है। एक अध्ययन के अनुसार सब्जियों के लिए प्रसंस्करण स्तर 2.7 फीसद, फलों के लिए 4.5 फीसद, मत्स्य पालन के लिए 15.4 फीसद और दूध के लिए 21.1 फीसद है। भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में पीछे रहने का एक बड़ा कारण खाद्यान्न भंडारण में बहुत पीछे होना भी है। अनाज के भंडारण की सही व्यवस्था न होने की वजह से 12 से 14 फीसद तक खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है। कृषि उपज हासिल करने के तुरंत बाद किसानों को उसे बेच देना पड़ता है। देश में खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में भंडारण की क्षमता आधी से भी कम, करीब 1450 लाख टन ही है।
लाजिस्टिक सुधार से प्रसंस्करण उद्योग में आएगी तेजी
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में बढ़ती आर्थिक, निर्यात और रोजगार संभावनाओं का लाभ लेने के लिए इस क्षेत्र की बाधाओं का उपयुक्त निराकरण किया जाना चाहिए। खाद्य उत्पादों के प्रसंस्करण स्तर को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की नई पीएलआइ योजना से फसलों की कटाई के बाद फसल की बर्बादी रोकने, बेहतर खाद्य सुरक्षा, गुणवत्ता प्रमाणन व्यवस्था, तकनीकी उन्नयन और लाजिस्टिक सुधार के कारण देश खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगा और खाद्य सुरक्षा के नए प्रतिमान स्थापित करते हुए दिखाई दे सकेगा।
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सरकार सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी खाद्यान्न भंडारण क्षमता निर्माण की योजना कारगर तरीके से आगे बढ़ाएगी। इससे भारत में खाद्यान्न की बर्बादी कम होगी और खाद्य सुरक्षा बढ़ाई जा सकेगी। हाल ही में एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि के साथ जिस पीएम राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) और कृषोन्नति योजना केवाई को मंजूरी दी गई है, सरकार उनके क्रियान्वयन की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी। इससे सरकार देश और दुनिया के करोड़ों लोगों को खाद्य सुरक्षा देकर भूख की पीड़ा से बचाने में नई भूमिका निभा सकेगी।
भारत में खाद्य प्रसंस्करण का स्तर विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। भारतीय उद्योग परिसंघ की रपट के मुताबिक भारत में कुल खाद्य उत्पादन का दस फीसद से भी कम हिस्सा प्रसंस्कृत होता है। एक अध्ययन के अनुसार सब्जियों के लिए प्रसंस्करण स्तर 2.7 फीसद, फलों के लिए 4.5 फीसद, मत्स्य पालन के लिए 15.4 फीसद और दूध के लिए 21.1 फीसद है। भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में पीछे रहने का एक बड़ा कारण खाद्यान्न भंडारण में बहुत पीछे होना भी है।
