यह एक विडंबना ही है कि एक ओर अर्थव्यवस्था के मामले में लगातार मजबूत होती दुनिया की बात की जा रही है, दूसरी ओर विश्व भर में एक बड़ी आबादी ऐसी है, जिसे लगातार भूख जैसी समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। यह वैश्विक स्तर पर असंतुलित और असमान विकास का ही सूचक है, जिसमें किसी देश के पास संसाधनों की प्रचुरता की वजह से वहां के नागरिकों को कम से कम भोजन के मामले में अभाव का सामना नहीं करना पड़ता है, दूसरी ओर ऐसे देशों की तादाद भी कम नहीं है, जहां भारी संख्या में लोगों के सामने पेट भर खाना खा पाना एक चुनौती है। यह स्थिति पिछले कुछ सालों से ज्यादा बिगड़ती गई है और अब इसके नतीजे सतह पर आने लगे हैं।

इस संकट की वजह से 14.8 करोड़ बच्चों का विकास भी हुआ बाधित

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर एक चिंताजनक रिपोर्ट (खाद्य सुरक्षा एवं पोषण स्थिति रिपोर्ट- 2023) में बुधवार को कहा कि पिछले साल 2.4 अरब लोगों को लगातार भोजन नहीं मिल सका और कम से कम 78.3 करोड़ लोगों को भूख की समस्या से जूझना पड़ा। साथ ही, इस संकट की वजह से 14.8 करोड़ बच्चों का विकास भी अवरुद्ध हुआ।

दरअसल, पिछले दो-तीन साल के दौरान दुनिया के लगभग तमाम देश कई तरह की अस्थिरता से गुजरे। महामारी से उपजे हालात को संभालने की वजह से कई स्तर पर बड़े और गंभीर झटके लगे। इसमें जो देश पहले से आर्थिक रूप से मजबूत थे, उन्हें संभलने में अपनी बुनियादी ठोस स्थिति की वजह से मदद मिली। लेकिन पश्चिम एशिया, कैरेबियाई और अफ्रीका में ऐसे कई देश हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था का ढांचा आंशिक या पूर्णबंदी की वजह से बाजार के बिखरने के बाद चरमरा गया।

इसके अलावा, रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से भी खाद्यान्न की आपूर्ति गंभीर स्तर पर प्रभावित हुई। फिर जलवायु परिवर्तन के चलते अनेक देशों में मौसम अनियमित और कई बार विपरीत रहा और इसका सीधा असर खाद्यान्न के उत्पादन पर भी पड़ा। जाहिर है, कई कारकों के एक साथ मिल जाने का व्यापक असर कई देशों की वैसी आबादी पर ज्यादा पड़ा, जो पहले से ही भूख की समस्या से पीड़ित थे और उन तक सही समय पर खाने-पीने का सामान नहीं पहुंचाया जा सका।

जाहिर है, जिन देशों में स्थिति ज्यादा चिंताजनक रही, वहां अभाव के लिए आर्थिक कमजोरी एक मुख्य कारक रही। लेकिन यह ऐसी व्यवस्थागत कमियों का भी नतीजा रहा, जिसमें कई बार सरकारें जरूरतमंद तबकों के बीच अपनी प्राथमिकता वक्त पर तय नहीं कर पातीं। हालांकि इसी बीच भारत में अस्सी करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त अनाज मुहैया कराया गया। यों किसी भी सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह देश के नागरिकों के जीवन की सुरक्षा को लेकर हर स्तर पर तैयार रहेगी और उसके लिए आर्थिक से लेकर खाद्यान्न जैसे मोर्चे पर एक सुरक्षित स्थिति को कायम रखेगी, ताकि संकट या आपात काल में लोगों को हालात का सामना करने में मदद मिल सके।

लेकिन मुश्किल यह है कि संसाधनों के असमान वितरण की व्यापक समस्या की वजह से कई देशों में नागरिकों के एक बड़े हिस्से के सामने न सिर्फ अन्य स्तर पर चुनौतियां खड़ी होती है, बल्कि जिंदा रहने के लिए उन्हें न्यूनतम भोजन भी हासिल नहीं हो पाता। ऐसे में अगर दो अरब से ज्यादा लोगों को लगातार भोजन न मिलने की समस्या से गुजरना पड़ा और बहुत सारे लोगों को भुखमरी की स्थिति से जूझना पड़ रहा है, तो यह हैरानी की बात नहीं है। सवाल है कि इस समस्या से पार पाने के लिए क्या ठोस किया जा सकता है!