केरल के कलामंडलम में कथकली कोर्स में दाखिला लेकर 14 साल की साबरी ने इतिहास रच दिया है। वह इस कोर्स में दाखिला लेने वाली पहली मुस्लिम लड़की हैं। दो साल पहले ही कलामंडलम के आवासीय कथकली पाठयक्रम में लड़कियों के लिए दाखिले की प्रक्रिया शुरू की गई है।
19 जून को कलामंडलम में लिया था दाखिला
दो साल पहले केरल के एक गांव में वह एक मंदिर के मैदान के अंधेरे में भक्तों के बीच बैठकर रामायण के प्रमुख प्रसंगों पर कथकली नृत्य देखती थीं, जिसे देखकर वह मंत्रमुग्ध हो जाती थीं। इसके साथ ही कथकली के लिए उनका आकर्षण भी बढ़ गया और 19 जून को साबरी ने कथकली पाठ्यक्रम में दाखिला ले लिया। यह त्रिशूर जिले के चेरुथुरुथी में 123 साल पुराना संस्थान है। वह अब कलामंडलम आर्ट हायर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 8 की छात्रा हैं और डीम्ड-टू-बी यूनिवर्सिटी के परिसर में रहती है।
कलामंडलम में साबरी की उपस्थिति ने कई नियमों को तोड़ दिया
कोल्लम जिले के एडमुलक्कल गांव की रहने वाली साबरी ने कहा, “मुझे भगवान में विश्वास है। मैं अपनी उम्र की किसी भी अन्य मुस्लिम लड़की की तरह हिजाब पहनती थी। वास्तव में मैंने कक्षा 5 तक एक मदरसे में पढ़ाई की। इसके बाद जब कोविड-19 आया तो मेरी मां ने मुझे घर पर पढ़ाना शुरू कर दिया।” कलामंडलम में साबरी की उपस्थिति ने एक साथ कई नियमों को तोड़ दिया है। हिजाब में एक मुस्लिम लड़की का एक ऐसे संस्थान में प्रवेश करना, जो बड़े पैमाने पर पारंपरिक हिंदू पारंपरिक कला रूपों के रूप में पहचाना जाता है, यह काफी आश्चर्यजनक है।
दक्षिणी शैली की पढ़ाई कर रही हैं साबरी
कथकली की दो फोर्म्स थेक्कन (दक्षिणी) और वड्डकन (उत्तरी) में से, साबरी ने दक्षिणी शैली को चुना है। आठ साल की प्रशिक्षण अवधि के अंत में साबरी को एक पूर्ण कथकली नर्तक बनने की उम्मीद है। वह कथकली में कृष्ण वेशम का प्रदर्शन करना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि उनका सपना कृष्ण वेशम का मंचन करना है। वह कहती हैं कि रंग-बिरंगे परिधानों के अलावा मुझे इसकी मुद्राएं और हाव-भाव पसंद हैं। उन्होंने कहा कि कथकली सीखने में उन्हें उनके परिवार का समर्थन प्राप्त है। उन्होंने कहा कि वह संस्थान के हिसाब से अभ्यास और ड्रेस भी पहनेंगी।
कथकली कोर्स में एडमिशन लेने वाली पहली मुस्लिम लड़की
वहीं, साबरी के गुरु और थेक्कन कथकली विभाग के प्रमुख कलामंडलम रविकुमार ने उनके फैसले को क्रांतिकारी बताया है। उन्होंने कहा कि साबरी कथकली पाठ्यक्रम में शामिल होने वाली पहली मुस्लिम लड़की है। उन्होंने कहा कि अन्य पाठ्यक्रमों में कुछ मुस्लिम छात्र थे, लेकिन कथकली के लिए कभी नहीं। यह संस्थान शास्त्रीय नृत्य के विभिन्न रूपों, कर्नाटक संगीत और पारंपरिक वाद्ययंत्रों में आवासीय प्रशिक्षण प्रदान करता है। इसमें 270 छात्रों को कक्षा 8 से स्नातकोत्तर तक के पाठ्यक्रमों में प्रवेश दिया जाता है। संस्थान प्रदर्शन कला और संस्कृति अध्ययन में एमफिल और पीएचडी कार्यक्रम भी प्रदान करता है।
साबरी के पिता निजाम ने बताई बेटी की रुचि के बारे में
साबरी के पिता निजाम ने कथकली में बेटी की रुचि के बारे में कहा, “मार्च में वार्षिक शिवरात्रि उत्सव की शूटिंग के लिए हमारे गांव के पास अगस्त्यकोडु में महादेव मंदिर में जाऊंगा। मैं वापस आऊंगा और अपनी बेटी को मेरे द्वारा खींची गई कथकली की कुछ तस्वीरें दिखाऊंगा। दो साल पहले साबरी ने त्योहार पर मेरे साथ आने की जिद की। क्योंकि कथकली कार्यक्रम रातभर चलता है इसलिए मैंने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन उसने आने पर जोर दिया।”
पहले घर के पास ही शिक्षक से ट्रेनिंग लेती थीं साबरी
जब साबरी रात भर चले प्रदर्शन में बैठी तो निजाम आश्चर्यचकित रह गए। यहीं से कथकली में साबरी की रुचि की शुरुआत हुई। साबरी के पिता एक फोटोग्राफर हैं और अपने गांव एडमुलक्कल में एक स्टूडियो चलाते हैं। इसके बाद साबरी ने अपने गांव से 25 किमी दूर रहने वाले कथकली शिक्षक एरोमल से ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी। कलामंडलम के पूर्व छात्र एरोमल ने संस्थान में अस्थायी कथकली शिक्षक के रूप में काम किया है। निजाम हर रविवार को निजाम कथकली की ट्रेनिंग के लिए साबरी को एरोमल के पास ले जाते थे।
निजाम ने कहा- फैसले का मुस्लिम समुदाय ने नहीं किया विरोध
रविवार को निजाम साबरी को एरोमल के पास ले जाते थे, जो उसे कथकली की बुनियादी मुद्राएं सिखाते थे। निजाम साबरी को संस्था से परिचित कराने के लिए कलामंडलम भी ले गए। निजाम का कहना है कि उनकी बेटी की कला का चयन अपरंपरागत है, लेकिन उन्हें मुस्लिम समुदाय से किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा है। उन्होंने कहा कि वह धार्मिक लोग हैं और अपनी आस्था में दृढ़ विश्वास रखते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी बेटी भी एक मुस्लिम है और वह किसी भी चीज का आंख बंद करके अनुसरण नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि अगर वह कथकली सीखना चाहती है तो हम सुनिश्चित करेंगे कि उसका सपना साकार हो।
संस्थान के सभी नियमों का पालन करेंगी
उनका कहना है कि साबरी संस्था के सभी नियमों का पालन कर रही है और इसकी सभी गतिविधियों में भाग ले रही है। निजाम ने कहा कि बाकी सभी छात्रों की तरह उसने गुरु को हिंदू परंपरा के अनुसार दक्षिणा दी। शिक्षक ने छात्रों से किसी हिंदू भगवान से प्रार्थना करने के लिए नहीं कहा बल्कि सभी छात्रों से अपनी पसंद के भगवान से प्रार्थना करने के लिए कहा गया। निजाम की पत्नी अनीशा एक गृहिणी हैं और सबसे बड़ा बेटा मोहम्मद याजीन 12वीं कक्षा का छात्र है।