प्रयागराज का कुंभ मेला हर भक्त के लिए एक अद्भुत अनुभव है, जहां आस्था, श्रद्धा और पुण्य की नई ऊर्जा मिलती है। यह मेला न केवल भारत बल्कि दुनिया भर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिकता का सबसे बड़ा उत्सव है। त्रिवेणी संगम पर आयोजित होने वाला कुंभ मेला, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां मिलती हैं, हर साल लाखों लोगों को अपनी ओर खींचता है। कुंभ मेला सदियों से लग रहा है, लेकिन आजादी मिलने के बाद पहला कुंभ मेला 1954 में आयोजित हुआ। करीब 70 साल पहले आजाद भारत का पहला कुंभ मेला न केवल ऐतिहासिक था, बल्कि भारत की धार्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव भी साबित हुआ।

केंद्र और राज्य सरकार ने कुंभ को सफल बनाने के लिए की थी कड़ी मेहनत

हालांकि, इस कुंभ मेले में मौनी अमावस्या के दिन भगदड़ मचने से कई श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी। स्वतंत्र भारत के इस पहले कुंभ की यह दुखद घटना थी। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे और गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। इस मेले को सफल बनाने के लिए उस समय उत्तर प्रदेश और भारत सरकार दोनों ने मिलकर पूरी ताकत लगाई थी। मेले के आयोजन के लिए न केवल सरकारी मदद की गई थी, बल्कि इसे एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का आयोजन बनाने की भी पूरी कोशिश की गई। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कुंभ मेले का जायजा लेने स्वयं प्रयागराज पहुंचे थे। उन्होंने न केवल मेला स्थल का निरीक्षण किया, बल्कि व्यवस्थाओं और तैयारियों की भी समीक्षा की थी।

भीड़ ने साधुओं के जुलूस से अलग होने वाले अवरोधों को तोड़ दिया

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 1954 के कुंभ मेले में हुई भगदड़ इतिहास की सबसे घातक घटनाओं में से एक थी। यह भीड़ नियंत्रण की कमी, खराब योजना और अत्यधिक वीआईपी लोगों की उपस्थिति के कारण हुई थी। भगदड़ तब हुई, जब भीड़ ने साधुओं के जुलूस से अलग होने वाले अवरोधों को तोड़ दिया। इस त्रासदी में लगभग 800 लोगों की मौत हो गई थी। सरकारी रिपोर्ट में केवल 300 लोगों की मौत होने की बात कही गई। इस हादसे के बाद कुंभ जैसे विराट मेले की तैयारियों को लेकर सरकारी स्तर पर कई साल पहले से ही व्यवस्थाएं की जाने लगीं। इस घटना के बाद पंडित नेहरू और गोविंद वल्लभ पंत की व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए गए थे।

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माना जाता है कि 1954 के कुंभ में लगभग एक करोड़ भक्त पहुंचे थे। यह संख्या उस समय के हिसाब से बहुत बड़ी थी। पुराने लोगों का कहना है कि श्रद्धालुओं का उत्साह देखकर ऐसा लगता था, जैसे पूरा भारत संगम पर एकत्र हो गया हो। उन दिनों के कुंभ मेले के दृश्य कुछ अलग ही थे। मेला स्थल पर घोड़ों पर सवार पुलिसकर्मी सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालते थे। इसके अलावा, कई अखाड़े हाथियों पर सवार होकर पहुंचे थे और उनकी शान से मेला स्थल पर गुजरने की झलक भव्यता का प्रतीक थी। उस समय का दृश्य आज के मुकाबले काफी अलग था, क्योंकि तब तकनीकी सुविधाएं और व्यवस्थाएं सीमित थीं। मेला प्रबंधन अब जैसा व्यवस्थित नहीं था, फिर भी श्रद्धालुओं का उत्साह और आस्था कहीं से भी कम नहीं हुई। आजादी के बाद यह आयोजन होने से यह मेला विशेष रूप से यादगार था। यह समय ऐसा था, जब मेला स्थल पर सुविधाएं बहुत कम थीं और लोग खुले मैदानों में एकत्रित होते थे। श्रद्धालु संगम में स्नान करने के बाद अपने घरों की ओर लौट जाते थे।

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1954 के कुंभ मेले में श्रद्धालुओं की सुविधाओं का भी विशेष ध्यान रखा गया था। उस समय के प्रशासन ने मेले में विशेष व्यवस्थाएं की थीं, जिससे भक्तों को किसी भी परेशानी का सामना न करना पड़े। मेले में पहुंचने वाले सभी श्रद्धालुओं को पहले स्वास्थ्य जांच के लिए टीका लगाया गया था, ताकि महामारी या बीमारी का खतरा न हो।

इसके अलावा, पुलों के निर्माण में सेना के जवानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पुलों का निर्माण किया, ताकि श्रद्धालु सुरक्षित तरीके से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंच सकें। गंगा के किनारे को समतल करने के लिए बुलडोजरों का भी उपयोग किया गया, ताकि लोग आसानी से स्नान कर सकें। इन सब व्यवस्थाओं के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने नाव की सवारी करते हुए मेला स्थल का निरीक्षण किया।

आज, 2025 में महाकुंभ मेले का आयोजन होने जा रहा है और इसकी तैयारियां जोरों पर हैं। इस बार मेला 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा। कुंभ मेला अब पहले से कहीं अधिक भव्य और सुविधाजनक हो गया है, जिसमें सुरक्षा, स्वास्थ्य और यातायात के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। इस बार की व्यवस्था में तकनीकी मदद, संचार नेटवर्क और अन्य आधुनिक सुविधाओं का पूरा ध्यान रखा जाएगा। 1954 का कुंभ मेला जहां धार्मिक आस्था और भक्ति का प्रतीक था, वहीं आज के कुंभ मेले में आधुनिकता और पारंपरिकता का सुंदर मिश्रण देखने को मिलेगा। यह मेला न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के हिंदू धर्म अनुयायियों के लिए एक बेजोड़ आध्यात्मिक अनुभव होगा।

प्रयागराज महाकुंभ मेले 2025 के लिए सरकार ने श्रद्धालुओं की स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर व्यापक इंतजाम किए हैं। किसी भी तरह की आपात स्थिति से निपटने के लिए पूरी तैयारी की गई है। स्वयं स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक उच्चाधिकारियों के साथ इन तैयारियों की नियमित समीक्षा कर रहे हैं। मेला क्षेत्र में केंद्रीय चिकित्सालय परेड ग्राउंड में अपनी सेवाएं शुरू कर चुका है। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने स्वास्थ्य विभाग को महाकुंभ 2025 के लिए सभी तैयारियां पूरी करने और किसी भी आपात स्थिति का सामना करने के निर्देश दिए हैं। पढ़ें पूरी खबर