आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ड्यूटी के दौरान रेजिडेंट डॉक्टर के साथ बलात्कार की घटना के एक साल से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी अब तक पीड़िता को न्याय नहीं मिल सका है। उनकी 32 वर्षीय बेटी की हत्या के 16 महीने बाद पीड़िता के माता-पिता का कहना है कि उनका जीवन अब अदालतों, सुनवाई के स्थगित होने और न्याय की अंतहीन प्रतीक्षा के इर्द-गिर्द घूमता है। इस दौरान, उन्होंने 5 वकील बदल दिए हैं क्योंकि उन्हें यकीन हो गया था कि कोई भी उनके मामले को ठीक से आगे नहीं बढ़ा सका।

रेजिडेंट डॉक्टर की मां ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमारे लिए हर सुबह एक नया दिन होता है, हमारी बेटी के लिए एक नई लड़ाई। पहले मेरी दिनचर्या सुबह उठकर बेटी के लिए खाना बनाना और उसे तैयार करना होती थी क्योंकि वह जल्दी में काम पर चली जाती थी। अब हम मुश्किल से ही खाना बनाते हैं। हर सुबह हम उठते हैं और कलकत्ता हाई कोर्ट की ओर दौड़ते हैं, इस उम्मीद में कि उस दिन मामले की सुनवाई हो जाएगी।”

इस साल जनवरी में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने दोषी संजय रॉय के लिए अधिकतम सजा, मृत्युदंड की मांग करते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। यह मामला न्यायमूर्ति देबांशु बसाक की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध है लेकिन अभिभावकों के अनुसार, इसकी सुनवाई बार-बार नहीं हो रही है।

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पिछले महीने हम कम से कम 20 दिन अदालत के चक्कर लगा चुके- पीड़िता की मां

पीड़िता की मां ने कहा, “पिछले महीने हम कम से कम 20 दिन अदालत के चक्कर लगा चुके हैं क्योंकि मामला सूचीबद्ध है। सुबह से शाम तक हम वहां बैठे रहते हैं, यह सोचकर कि आज सुनवाई होगी लेकिन हर बार खाली हाथ लौटते हैं, बस इस उम्मीद के साथ कि शायद कल सुनवाई हो जाए।” इस कानूनी लड़ाई के दौरान परिवार ने पांच वकील बदले हैं।”

पिता ने कहा कि यह फैसला इसलिए लिया क्योंकि उन्हें लगा कि उनकी आवाज़ को पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा था। उन्होंने कहा, “मुझे कहीं न कहीं लगा कि वे अपना वादा पूरा नहीं कर पाएंगे इसलिए मैंने अपने वकील बदल दिए। वकील अदालत में हमारे प्रतिनिधि होते हैं; उन्हें वही बात रखनी होती है जो हम कहना चाहते हैं। मुझे शुरू से ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा था। चाहे हमें कितना भी इंतजार करना पड़े मुझे अब भी अदालत पर भरोसा है।”

आरजी कर: 5 वकील बदल चुके पीड़िता के माता-पिता

पीड़िता के पिता ने आगे कहा, “इस उम्र में हमें लगभग हर दिन अदालत के चक्कर लगाने पड़ते हैं। इस घटना के बाद हमने धैर्य और दृढ़ता सीखी है। हमें अपनी बेटी के लिए फिर से उठ खड़ा होना पड़ा। हम अगर कमजोर पड़ जाते तो उसके लिए कौन लड़ता?” अदालत से परे माता-पिता का कहना है कि यह संघर्ष उनके दैनिक जीवन में भी समा गया है। कई लोग जो कभी उनके साथ खड़े थे, धीरे-धीरे उनसे दूर होते चले गए हैं।

 रेजिडेंट डॉक्टर की मां ने कहा, “मेरे बच्चे को न्याय दिलाने के लिए अभय मंच का गठन किया गया था लेकिन अब वे कहां हैं? लोगों ने इस लड़ाई के लिए पैसे दान किए थे लेकिन अब वे कहते हैं कि कोई फंड नहीं है। मुझे इन सब बातों की चिंता नहीं है।” माता-पिता के अनुसार, वे कानूनी लड़ाई और घरेलू खर्चों का वित्तपोषण अपनी सीमित बचत और कपड़ों के छोटे व्यवसाय से होने वाली आय से कर रहे हैं। पिता ने कहा, “मेरा एक छोटा व्यवसाय है। मैं हमेशा वहां मौजूद नहीं रह सकता लेकिन किसी तरह हम गुजारा कर लेते हैं।”

स्वार्थी और अपने हितों के लिए काम करने वाले लोग हम से अलग हो गए- पीड़िता के पिता

पीड़िता के पिता ने आगे कहा, “शुरुआत में कई लोग हमारे साथ जुड़े थे लेकिन स्वार्थी या अपने हितों के लिए काम करने वाले लोग अलग हो गए हैं। वे जानते हैं कि हम किसी को भी अपने बच्चे की मौत का फायदा नहीं उठाने देंगे। चाहे हमें अकेले ही क्यों न खड़ा होना पड़े, हम खड़े रहेंगे। हम अंत तक लड़ते रहेंगे।” मां ने कहा कि वह अपनी बेटी की याद को ज़िंदा रखने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। “मेरी बेटी को और उसके साथ हुए इस क्रूर अपराध को कोई कभी नहीं भूलेगा। वह सबके दिल और दिमाग में बसी है। हम किसी को भी इसे भूलने नहीं देंगे। जनवरी में ही सिटी गार्डन ने हमें आमंत्रित किया था। लोग हमें याद रखते हैं और हमारे माध्यम से और भी लोगों को पता चलेगा कि क्या हुआ था।”

9 अगस्त, 2024 को आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के एक सेमिनार कक्ष में 32 वर्षीय स्नातकोत्तर रेजिडेंट डॉक्टर का शव मिला था। इस मामले में संजय रॉय को अगले दिन गिरफ्तार किया गया और इस साल जनवरी में सियालदह की एक अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया।

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