उत्तराखंड से राज्यसभा की इकलौती सीट के लिए भाजपा और कांग्रेस ने कमर कस ली है। भाजपा ने निर्दलीय प्रत्याशी अनिल गोयल को अपना समर्थन दिया है। वहीं कांग्रेस ने दलित नेता और पूर्व लोकसभा सदस्य प्रदीप टम्टा को चुनाव मैदान में उतारा है। टम्टा मुख्यमंत्री हरीश रावत के खासमखास हैं। टम्टा को पार्टी का उम्मीदवार बनाए जाने से मुख्यमंत्री हरीश रावत और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के बीच छिड़ी जंग बढ़ती ही जा रही है।
सूबे की विधानसभा के समीकरणों को देखते हुए प्रदीप टम्टा का पलड़ा भारी है। भाजपा के पास विधायकों की संख्या 27 है। जबकि कांग्रेस के पक्ष में 32 विधायक हैं। वर्तमान में विधानसभा में कांग्रेस के 26, बसपा के दो, उत्तराखंड क्रांति दल का एक और तीन निर्दलीय विधायक कांग्रेस के उम्मीदवार प्रदीप टम्टा के साथ हैं।
वहीं भाजपा केवल 27 विधायकों के समर्थन पर ही टिकी है। भाजपा के दो नेता अनिल गोयल और गीता ठाकुर ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा के चुनाव में पर्चा भरा। भाजपा ने गीता ठाकुर के बजाय अनिल गोयल को अपना समर्थन दिया है।
इस समय उत्तराखंड विधानसभा में विधायकों की संख्या 59 हैं। सूबे की विधानसभा के 70 विधायकों में से 11 विधायकों की सदस्यता दलबल कानून के तहत खत्म हो चुकी है।
विधानसभा के सचिव जगदीश चंद्र ने बताया कि 11 जून को होने वाले राज्यसभा के चुनाव के लिए सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। मतदान कक्ष में सुरक्षाकर्मियों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है। चुनाव को देखते हुए विधानसभा में कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था की गई है। कांग्रेस ने पार्टी की ओर से कैबिनेट मंत्री इंदिरा ह्रदयेश को चुनाव के लिए अधिकृत एजंट बनाया है। उन्होंने अपने घर पर कांग्रेस और पीडीएफ के सभी विधायकों को चाय पार्टी दी।
प्रदीप टम्टा को लेकर कांग्रेस में बड़ा बवाल मचा। हरीश रावत सरकार के कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने टम्टा का विरोध करते हुए मंत्री पद से त्यागपत्र देकर भाजपा में जाने की पार्टी हाईकमान को धमकी दी थी। इससे रावत के हाथ-पांव फूल गए थे। आर्य ने सोनिया गांधी और अहमद पटेल से रावत की शिकायत की। बड़ी मुश्किल से रावत ने आर्य को मनाया था।

वहीं टम्टा को कांग्रेस की ओर से राज्यसभा का उम्मीदवार बनाए जाने से पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय भी मुख्यमंत्री हरीश रावत से नाराज हैं। रावत ने टम्टा को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाते वक्त उपाध्याय से सलाह-मशविरा तक नहीं किया। उपाध्याय भी राज्यसभा जाना चाहते थे। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक रावत ने उपाध्याय के खिलाफ टिहरी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक और कैबिनेट मंत्री दिनेश धनै को हवा दी थी।

दिनेश धनै ने पीडीएफ की तरफ से राज्यसभा की दावेदारी की थी। इससे किशोर उपाध्याय की राज्यसभा से कांग्रेस की ओर से उम्मदवारी खटाई में पड़ी थी। जैसे ही रावत के खास कुमाऊं के अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र के पूर्व विधायक प्रदीप टम्टा को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार घोषित किया तो धनै भी टम्टा के समर्थन में खड़े हो गए। जब रावत और धनै की राजनीतिक चाल किशोर उपाध्याय को समझ में आई तो उन्होंने रावत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इस वक्त पूरे प्रदेश में किशोर उपाध्याय के समर्थक हरीश रावत से बुरी तरह खफा हैं।

देहरादून में किशोर उपाध्याय ने पूरे प्रदेश के जिलाध्यक्षों की बैठक की। इसमें जिलाध्यक्षों ने हरीश रावत सरकार पर पार्टी के पदाधिकारियों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया। बैठक के बाद यह साफ हो गया कि कांग्रेस उत्तराखंड में किशोर उपाध्याय और हरीश रावत के बीच बंट गई है। उपाध्याय के समर्थकों का कहना है कि यदि सूबे में कांग्रेस के कुछ लोगों को दलितों के प्रति ज्यादा ही प्रेम था तो उन्हें गढ़वाल के घनसाली विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे भीम लाल आर्य को राज्यसभा में भेजना चाहिए था। आर्य भी दलित हैं। उन्होंने संकट के समय कांग्रेस का साथ दिया था। उन्होंने दस मई को हरीश रावत सरकार को भाजपा छोड़कर विधानसभा में विश्वास मत के दौरान अपना समर्थन दिया था। इस कारण उनकी विधायकी छिन गई।

उपाध्याय के समर्थकों का मानना है कि 2009 के संसदीय चुनाव में हरिद्वार की जनता ने रावत को भारी मतों से जिताकर कई सालों बाद उन्हें लोकसभा भेजकर सम्मान दिया। इस तरह से उनकी राजनीति में वापसी में हरिद्वार की जनता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यदि राज्यसभा में हरिद्वार जिले से किसी दलित नेता को राज्यसभा में भेजते तो पार्टी को उत्तराखंड के अलावा उत्तर प्रदेश में भी फायदा मिलता। दरअसल हरीश रावत ने यह बयान दिया था कि आजादी के साठ सालों में पहली बार किसी दलित को उत्तराखंड से राज्यसभा भेजा गया है। रावत के इस बयान से किशोर उपाध्याय और उनके समर्थकों में रोष फैल गया।

दरअसल रावत ने यह बयान किशोर उपाध्याय को उनकी राजनीतिक हैसियत बताने के लिए दिया था। डेढ़ साल पहले रावत ने किशोर उपाध्याय को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनवाया था। जबकि किशोर उपाध्याय के समर्थकों का कहना है कि किशोर उपाध्याय की सीधी पकड़ दस जनपथ में है। उपाध्याय किसी की कृपा पर नहीं बल्कि अपने बूते पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक राजीव गांधी के दरबार में उपाध्याय ने ही 1985 के आसपास हरीश रावत का प्रवेश करवाया था। किशोर उपाध्याय के राजीव गांधी से करीबी रिश्ते थे। इस तरह राज्यसभा चुनाव ने हरीश रावत और किशोर उपाध्याय के बीच खटास पैदा कर दी है।

प्रदीप टम्टा को राज्यसभा का टिकट दिलवाकर रावत ने गढ़वाल के नेताओं को अपने खिलाफ खड़ा कर लिया है। पहले ही गढ़वाल के कांग्रेस के दमदार नेता सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल, उमेश शर्मा काऊ, शैला रानी रावत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए हैं। और गढ़वाल मंडल में कांग्रेस के पास अब कोई जमीनी नेता नहीं बचा है। किशोर उपाध्याय ब्राह्मण नेता के रूप में गढ़वाल मंडल में कांग्रेस के पास बचे हैं। परंतु राज्यसभा चुनाव में हरीश रावत ने उपाध्याय को किनारे कर ब्राह्मण मतदाताओं को नाराज कर दिया है। जिसका खामियाजा कांग्रेस को अगले विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है।