एमएसपी समेत अन्य मांगों को लेकर किसान एक बार फिर प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों के प्रदर्शन के कारण 13 फरवरी से दिल्ली के सभी बॉर्डर सील हैं। पंजाब और अंबाला के बीच शंभू बॉर्डर पर किसान डेरा डाले बैठे हैं। किसानों के प्रदर्शन ने एक बार फिर मोदी सरकार की चिंता बढ़ा दी हैं। केंद्र सरकार के मंत्री किसान संगठनों के साथ लगातार बैठक कर रहे हैं लेकिन मामले का अभी तक कोई हल नहीं निकला है। अब रविवार को एक बार फिर सरकार और किसान बातचीत की टेबल पर बैठेंगे। सरकार किसानों की अधिकांश मांगों को मानने के लिए तैयार है। पिछले 10 साल का मोदी सरकार ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो केंद्र सरकार ने कई बड़े फैसले लिए हैं। इन फैसलों को विपक्ष के भारी विरोध के बाद भी सरकार ने वापस नहीं लिया।
CAA के दौरान देशभर में हुए प्रदर्शन
सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट को लेकर दिसंबर 2019 में देशभर में प्रदर्शन हुए। दिल्ली के शाहीन बाग में सैकड़ों की संख्या में लोग धरने पर बैठ गए। शाहीन बाग देशभर में चल रहे आंदोलन कर प्रमुख केंद्र बन गया। प्रदर्शन को समर्थन देने के लिए देशभर से लोग यहां पहुंचे। इस दौरान उत्तर प्रदेश से लेकर एमपी, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर हिंसक घटनाएं सामने आई। शाहीन बाग में रास्ता बंद होने के कारण दिल्ली में लगातार जाम की स्थिति बनी रही। सरकार के ऊपर काफी दबाव था लेकिन विरोध के बाद भी सरकार टस से मस नहीं हुई। विपक्षी दलों ने तब बीजेपी पर आरोप लगाया कि सीएए के बहाने ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि सीएए से पूरे देश में ध्रुवीकरण का माहौल पैदा हुआ।
नोटबंदी पर भी नहीं झुकी सरकार
8 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार ने 500 और 1000 के नोटों का वापस लेने का फैसला लिया। अचानक हुए इस फैसले से सभी लोग हैरान रह गए। बैंक से नोट बदलने के लिए लोगों को घंटों लाइन में लगना पड़ा। नोटबंदी को लेकर विपक्ष ने सवाल उठाए। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सरकार ने इस फैसले को वापस लेने से इनकार कर दिया। मोदी सरकार ने इसे काला धन और आतंकवाद के खिलाफ बड़ी लड़ाई बताया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस फैसले के पीछे तर्क दिया कि जिन लोगों ने काला धन जमा किया है अब उसे बाहर लाकर बैंक में जमा करना होगा। इससे काले धन की पहचान में मदद मिलेगी। निचले तबके से इसे लेकर सरकार को समर्थन भी मिला। नोटबंदी के बाद हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इसका असर भी देखने को मिला जब बीजेपी बड़ी जीत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही।
किसानों के प्रदर्शन के बाद वापस हुए 3 कृषि कानून
जून 2020 में मोदी सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई। पहला कानून था- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम -2020, दूसरा कानून था- कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 और तीसरा कानून था- आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020। इन कानूनों के विरोध में पंजाब, हरियाणा और यूपी समेत देशभर के किसानों ने प्रदर्शन शुरू किया। दिसंबर 2020 में किसानों ने दिल्ली कूच का आह्वान किया। भारी संख्या में किसान दिल्ली पहुंचने लगे। सिंघु बॉर्डर के पास भारी संख्या में किसानों को रोका गया। हालांकि 26 जनवरी 2021 को किसानों ने प्रदर्शन ने हिंसक रूप से लिया। किसान लालकिले तक पहुंच गए। इस घटना ने सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी।
मोदी सरकार किसानों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करने से बचना जाती थी। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर सरकार किसानों के खिलाफ कोई कदम उठाती तो इससे सरकार के खिलाफ मैसेज जाता। आखिरकार सरकार ने किसानों के साथ वार्ता का रास्ता खुला रखा। किसानों से लगातार बातचीत की कोशिश की गई। हालांकि किसान पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थे। किसानों के विरोध के कारण 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस लेने की मांग की।
किसानों के मुद्दे पर पीछे क्यों हटी मोदी सरकार?
तीनों कृषि कानूनों को लेकर पिछली बार उत्तर प्रदेश के किसान भारी संख्या में प्रदर्शन में शामिल हुए थे। इस आंदोलन का किसान नेता राकेश टिकैत प्रमुख चेहरा बनकर सामने आए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आने वाले राकेश टिकैत को खास तौर पर जाट समुदाय से भारी समर्थन मिला। बीजेपी 2022 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में कोई खतरा उठाना नहीं चाहती थी। यही कारण था कि केंद्र सरकार को तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का फैसला लेना पड़ा। इसके बाद उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक बार फिर प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज की।
इस बार क्या है स्थिति?
इस बार किसानों के प्रदर्शन में मुख्य रूप से पंजाब के किसान संगठन शामिल हुए हैं। राकेश टिकैत ने सीधे तौर पर तो इस आंदोलन को समर्थन नहीं दिया है लेकिन किसानों की मांगों को जायज ठहराया है। मोदी सरकार किसान संगठनों से अब तक 3 बार वार्ता कर चुकी है जो अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची हैं। किसान संगठनों के भारत बंद के ऐलान के बाद सरकार इस मामले में पहले जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती है। एक तरफ सरकार किसी भी हाल में किसानों को दिल्ली के बॉर्डर पर रोकने की रणनीति अपना रही है तो दूसरी तरफ बातचीत का दरवाजा भी खुला रखा है। दरअसल करीब 2 महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैं। पिछली बार किसानों के प्रदर्शन को जिस तरह देशभर में समर्थन मिला, सरकार इस बार वैसी स्थिति से बचना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनावी मंच से लगातार किसानों की आय दोगुनी करने का वादा करते रहे हैं। पीएम मोदी ने विकसित भारत बनाने की दिशा में जिन 4 जातियों का जिक्र किया है उनमें युवा, महिला, गरीब और किसान का जिक्र किया है।