अंतरिम बजट में आयकर की सीमा बढ़ाने के कदम की जहां दिल्ली वालों ने सराहना की है वहीं किसानों व व्यापारियों का कहना है कि उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया। सीनियर सिटिजन काउंसिल आॅफ दिल्ली के अध्यक्ष जेआर गुप्ता ने कहा कि आयकर छूट की सीमा को दोगुना कर पांच लाख रुपए करने के प्रस्ताव से एक बड़े वर्ग को राहत मिलेगी। इससे तीन करोड़ मध्यम वर्ग करदाताओं, स्वरोजगार करने वालों और वरिष्ठ नागरिकों को लाभ मिलेगा।
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा- यह बजट किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने वाला बजट है। उन्होंने जारी बयान में कहा- प्रधानमंत्री किसान सम्मान के नाम पर किसानों को प्रति छह हजार रुपए देने की घोषणा की गई। सरल भाषा में कहा जाए तो अगर 5 लोगों का परिवार है तो, प्रति व्यक्ति 3.33 प्रतिदिन रुपए आते हैं। जिसमें आजकल चाय भी नहीं आती। उन्होंने कहा-बटाईदार किसान, खेतिहर मजदूर, लाखों वैसे किसान जिनके पास जमीन का पट्टा नहीं है, विशेषत: आदिवासी किसान और सघन वर्षा वाले क्षेत्रों के भी 5 एकड़ से अधिक भूमि रखने वाले किसानों को इस योजना के दायरे से बाहर रखा गया है।
भारतीय किसान यूनियन प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने बजट को किसान विरोधी बताते हुए कहा कि किसानों को उम्मीद थी कि बजट में स्वामिनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू किया जाएगा। फसलों के समर्थन मूल्य पर 100 फीसद खरीद का प्रावधान होगा। किसानों की आत्महत्याओं को रोकने के लिए संपूर्ण कर्ज माफी होगी, लेकिन सरकार की ओर से कोई भी निर्णय नहीं लिया गया है। किसान सम्मान योजना को केवल किसान वोट पाने की योजना करार दिया गया। आम आदमी पार्टी (आप) ने बजट को चुनावी भाषण बताते हुए इसमें दिल्ली के साथ एक बार फिर सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया। ‘आप’ के प्रवक्ता राघव चड्ढा ने कहा कि सभी सरकारों ने बजट का राजनीतिक इस्तेमाल कर इसे चुनावी भाषण बन दिया। कांफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने कहा- देश के 7 करोड़ व्यापारियों के लिए बेहद निराशाजनक बजट है। कैट के अध्यक्ष बीसी भरतिया व महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा की बजट में अर्थव्यवस्था के सभी वर्गों को सुविधाएं दी गई हैं, लेकिन व्यापारी वर्ग को पूरी तरह नकार दिया गया है। ई-कॉमर्स में एफडीआइ नीति को आगे न बढ़ाने को लेकर बजट में कोई जिक्र तक न होने से व्यापारी बेहद निराश हैं।
जय किसान आंदोलन के अविक साहा ने कहा -गौरक्षकों के आतंक व सरकार की तर्कहीन नीतियों से उपजे आवारा पशुओं की समस्या और किसानों को उससे होने वाले नुकसान को स्वीकार करना तक मुनासिब नहीं समझा। ब्याज दर कम करने की घोषणा भी प्रभावहीन है क्योंकि यह केवल प्राकृतिक आपदा के दौरान लिए गए लोन पर लागू होगी। ऐसी स्थिति में जब सरकार आपदा स्वीकार करने में भी हिचकती है, इस योजना का लाभ एक फीसद किसानों तक भी पहुंचना मुश्किल लग रहा है। स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के योगेश पांडेय ने कहा कि गन्ना किसानों पर 11,000 करोड़ से अधिक बकाया राशि की सरकार ने चर्चा तक नहीं की। सरकार किसानों की वास्तविकता से पूरी तरह अनभिज्ञ है।
