किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत हर किसी से ठेठ गंवई अंदाज और भाषा में ही बात किया करते थे। खुद खेती भी करते थे। टिकैत के बारे में कहा जाता है कि वे किसी से भी आसानी से मिल लेते थे। महेंद्र सिंह टिकैत असल जीवन में प्रेम विवाह के सख्त खिलाफ थे। वे टेलीविजन और फिल्मों से भी दूर रहा करते थे। लेकिन शोले उनकी पसंदीदा फिल्म थी और उसे कई बार देखने से भी परहेज नहीं करते थे।
टिकैत जाट समाज के बड़े नेता थे और बालियान खाप के चौधरी हुआ करते थे। जब वह चौधरी बने थे तब केवल आठ साल के थे। कहा जाता है कि असल में टिकैत परिवार को यह उपनाम खाप समाज से नहीं मिला है। बल्कि उन्हें यह उपनाम सातवीं सदी के राजा हर्षवर्धन ने दिया था।
महेंद्र सिंह टिकैत अपने आप को सिर्फ किसान नेता मानते थे। वे खुद को राजनीति और राजनेताओं से दूर रखते थे. जब महेंद्र सिंह टिकैत ने भारतीय किसान यूनियन की स्थापना की तो उन्होंने इसमें एक और शब्द जोड़ दिया “अराजनैतिक”। इतना ही नहीं वे राजनीतिक नेताओं को भी अपने मंच पर बिठाना पसंद नहीं करते थे।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार एक बार देश के पूर्व प्रधानमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह की विधवा पत्नी गायत्री देवी और बेटा अजित सिंह महेंद्र टिकैत से मिलने गए। मिलने के दौरान जब गायत्री देवी और अजित सिंह टिकैत के मंच पर जाने लगे तो उन्होंने उनको रोकते हुए कहा कि हमारे मंच पर कोई भी राजनीतिक व्यक्ति नहीं आ सकता है।
टिकैत हमेशा कोशिश करते थे कि वे राजनीति से दूर रहें। एक बार उन्हें राज्यसभा भेजने का ऑफर भी मिला, पर उन्होंने ठुकरा दिया। वे इस बात को हमेशा मानते थे कि मैं सिर्फ किसानों के संगठन को ही देखता हूँ। कहा जाता है कि वे सरकार को हुक्मरान कहकर संबोधित किया करते थे।
राजनीति से दूरी बनाकर रखने वाले महेंद्र टिकैत के बेटे राकेश टिकैत इन मामलों में अपने पिता से अलग हैं। राकेश टिकैत राजनीति से कोई गुरेज नहीं करते हैं। उन्होंने दो बार लोकसभा का चुनाव भी लड़ा है।
महेंद्र मौजूदा किसान आंदोलन का चेहरा बन गए भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत किसानों के कद्दावर नेता थे। उनके ठेठ गंवई अंदाज, कड़े तेवर, रसूख और विशाल समर्थकों की ताकत के आगे कई बार सरकारों को झुकना पड़ा था। तत्कालीन सीएम वीर बहादुर सिंह, मायावती से लेकर पीएम राजीव गांधी तक को। कैसे, जानने के लिए क्लिक करें।

