इस्तांबुल के मशहूर हागिया सोफिया संग्रहालय को अदालत ने मसजिद में बदलने का फैसला सुनाया। इसके बाद तुर्की के राष्ट्रपति रेसप तैयब एर्दोगान ने इस इमारत को मसजिद के रूप में खोलने की घोषणा कर दी। तुर्की में छठी सदी में गिरजाघर के रूप में इस इमारत को बनाया गया था।
इस इमारत को 1500 साल पहले ईसाई गिरजाघर के रूप में तैयार किया गया था। हागिया सोफिया 900 साल तक चर्च के रूप में पहचानी गई। इसके बाद 500 साल तक मसजिद के रूप में और फिर संग्रहालय के रूप में इसे जाना गया। इसे सन 1934 में संग्रहालय में बदला गया और अब इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त है।
तुर्की में इस्लामवादी लंबे समय से इसे मसजिद में बदलने का आह्वान कर रहे थे, लेकिन धर्मनिरपेक्ष विपक्षी सदस्यों ने इस कदम का लगातार विरोध किया।
अब अदालती निर्देश के बाद तुर्की सरकार के कदम को लेकर दुनियाभर में धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने आलोचना शुरू कर दी है। हालांकि, राष्ट्रपति एर्दोगान का कहना है कि देश ने अपने संप्रभु अधिकार का इस्तेमाल किया है और इसकी मदद से इसे वापस एक मसजिद में बदल दिया गया है। तुर्की के अधिकारियों का कहना है कि इस इमारत के अंदर लगे ईसाई प्रतीकों को नहीं हटाया जाएगा। हागिया सोफिया में बदलाव करना काफी प्रतीकात्मक है।
आधुनिक तुर्की के संस्थापक कमाल अतातुर्क ने फैसला किया था कि इसे संग्रहालय होना चाहिए। तुर्की का मौजूदा नेतृत्व अतातुर्क की धर्मनिरपेक्ष विरासत को खंडित करने में लगे हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का कहना है कि यह इमारत मानवता के अधीन है, ना कि तुर्की के। यह इमारत दो धर्मीय विश्वासों के बीच एक पुल की तरह काम करता है और यह दो धर्मों के साथ-साथ फलने-फूलने का प्रतीक है।
हागिया सोफिया का यह विवाद ऐसे समय में आया है, जब तुर्की और ग्रीस के बीच कई मुद्दों पर कूटनीतिक तनाव बढ़ता जा रहा है। इसी साल, मई महीने में ग्रीस ने पूर्व बाइजेंटाइन साम्राज्य पर ओटोमन साम्राज्य के आक्रमण की 567वीं वर्षगांठ पर हागिया सोफिया संग्रहालय के अंदर कुरान के अंशों को पढ़ने पर आपत्ति जताई थी। ग्रीस के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा था कि तुर्की का यह कदम यूनेस्को के विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण संबंधी घोषणापत्र का उल्लंघन है। यूनेस्को ने हागिया सोफिया को मसजिद में बदलने के फैसले पर दुख जताया है।
इस्तांबुल की इस प्रतिष्ठित संरचना का निर्माण तकरीबन 532 ईस्वी में बाइजेंटाइन साम्राज्य के शासक जस्टिनियन के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ, उस समय इस शहर को कांस्टेनटिनोपोल या कुस्तुंतुनिया के रूप में जाना जाता था। गिरजाघर के रूप में इस ढांचे का निर्माण लगभग पांच साल यानी 537 ईस्वी में पूरा हो गया।
यह इमारत लगभग नौ सौ वर्षों तक ऑर्थोडॉक्स इसाईयत के लिए एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित रही, किंतु वर्ष 1453 में जब इस्लाम को मानने वाले ओटोमन साम्राज्य के सुल्तान मेहमद द्वितीय ने कुस्तुंतुनिया पर कब्जा कर लिया, तब इस शहर का नाम बदलकर इस्तांबुल कर दिया गया।
537 ईस्वी में अपने निर्माण से लेकर वर्ष 1453 तक हागिया सोफिया अपनी वास्तुकला के साथ ही एक गिरिजाघर के रूप में ही कायम रही। लेकिन महमद द्वितीय द्वारा इस्तांबुल पर कब्जा करते ही इस गिरजाघर को मसजिद में तब्दील कर दिया गया। तब इस संरचना के बाहरी हिस्सों में मीनारों का निर्माण किया गया। 1453 से 1931 तक ये इमारत मसजिद ही रही। फिर 1931 में जब तुर्की गणराज्य बन गया था, तब मुस्तफा कमाल पाशा, यानी कमाल अतातुर्क ने इसे संग्रहालय में बदल कर आमजन के लिए खोलने का आदेश दिया।
तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान का प्रमुख एजंडा इस इमारत को मसजिद में बदलना रहा है। हालांकि, एर्दोगान ने अपनी राजनीति की शुरुआत में पहले हागिया सोफिया को मसजिद के रूप में बदलने की मांग पर आपत्ति जताई थी, लेकिन उन्हें इस्तांबुल नगरपालिका चुनावों में हार मिलने के बाद उन्होंने अपना रुख बदल दिया।
दूसरे, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब इजराइल की राजधानी के रूप में येरुशलम को मान्यता दी तो एर्दोगान भी हागिया सोफिया को मसजिद के रूप में बदलने को लेकर मुखर हो गए। जानकारों का कहना है कि हागिया सोफिया को संग्रहालय से मसजिद के रूप में बदलना एर्दोगान के लिए राजनीतिक प्रतिष्ठा की इच्छा से जुड़ा हुआ है।