छोटे परिवार को लेकर तेजी से बढ़ी जागरूकता के बावजूद आज भी नियोजन के साधनों को लेकर हमारी स्थिति हैरानी में डालने वाली है। विभिन्न तरह के आधुनिक और सुरक्षित उपलब्ध होने के बावजूद परिवार नियोजन का जिम्मा महिला नसबंदी के रूप में औरतों के कंधों पर ही है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- पांच के मुताबिक भारत में इस समय 56 फीसद विवाहित महिलाएं आधुनिक गर्भनिरोधक उपाय का उपयोग करती हैं और 38 फीसद सिर्फ नसबंदी अपना रही हैं।
महिला के मुकाबले पुरुष नसबंदी को देखें तो केवल 0.3 फीसद मामलों में ही इसे अपनाया जा रहा है। सभी दूसरे आधुनिक साधनों को मिला दें तो भी वे महिला नसबंदी के आधे पर भी नहीं पहुंच पाते हैं। इसी तरह आज भी देश में नौ फीसद विवाहित दंपतियों को गर्भनिरोधक उपायों की जरूरत होने के बावजूद उन्हें यह मिल नहीं पा रहा है। भारत में परिवार नियोजन के साधनों के उपयोग में महिलाओं की स्थिति को लेकर एक चिंताजनक पहलू सामने आया है।
आंध्र प्रदेश में महिला नसबंदी सबसे ज्यादा
आज भी राष्ट्रीय स्तर पर करीब 38 फीसद महिलाएं नसबंदी अपना रही हैं। वर्ष 2016 में हुए पिछले सर्वेक्षण के मुकाबले इसमें और बढ़ोतरी ही आई है। तब यह 36 फीसद था। शहरी इलाकों में देखें तो यह फीसद 36.3 फीसद है लेकिन ग्रामीण इलाकों में बढ़कर 38.6 फीसद हो जाता है। सरकार की मौजूदा नीति है कि दंपतियों को बच्चे पसंद से हों यानी सुविचारित रूप से, न कि अचानक बिना सोचे-समझे।
इसी तरह सरकार की ओर से उपलब्ध करवाए जा रहे विभिन्न आधुनिक उपायों के बारे में लोग अच्छी तरह जानें और तब फैसला करें। महिला नसबंदी पर निर्भरता के मामले में दक्षिण भारत के राज्यों की स्थिति और भी बुरी है। आंध्र प्रदेश में 70 फीसद दंपतियों में महिला नसबंदी अपनाई जा रही है। इसी तरह तेलंगाना में यह 62 फीसद है। बिहार में 35 फीसद महिलाएं नसबंदी करवा रही हैं जबकि झारखंड में 37 फीसद।
जागरुकता पर देना होगा जोर
दूसरे विकल्पों को लेकर ऐसी उपेक्षा को विशेषज्ञ ठीक नहीं मानते। फेडरेशन आफ आब्सटेट्रिक एंड गायनाकोलाजिकल सोसाइटीज आफ इंडिया (फागसी) के अध्यक्ष जयदीप टांक के मुताबिक महिलाओं को अपना फैसला लेने की स्वतंत्रता देनी होगी। वह सभी उपायों के बारे में अच्छी तरह जाने, उसकी अच्छाइयों, बुराइयों को समझे और उसके बाद अगर फैसला ले तो वह सबसे अच्छी स्थिति होगी। इसके लिए हमें जागरुकता और उपलब्धता पर जोर देना होगा।