देश के अलग-अलग हिस्सों से बारिश के कहर की खबरें सामने आ रही हैं। केरल के वायनाड से लेकर हिमाचल के कुल्लू-मनाली तक नुकसान ही नुकसान है। पिछले दिनों गुजरात के पुणे, सूरत जैसे शहरों से बाढ़ की खबरे थीं। मौसम का मिजाज लगातार बदल रहा है। वायनाड में हुए लैंडस्लाइड के बाद स्थिति और भायावह हो गई है। ऐसे में सवाल खड़े होते हैं कि भारत का मौसम विभाग किस तरह के अनुमानों पर काम कर रहा है? इस तरह की आपदा का अंदाज़ा पहले से क्यों नहीं लगाया जा रहा है? मौसम के तीनों रूप, चाहे गर्मी हो, सर्दी या बारिश हो, क्यों इस तरह रिएक्ट कर रहे हैं?
क्यों आसमान से बरस रही है आफत?
क्लाइमेट चेंज के खिलाफ आंदोलन चला रहे ब्रिटेन के एक संगठन (Campaign Against Climate Change) की एक रिपोर्ट यह कहती है कि हाल के दशकों में जलवायु आपदाओं (तूफान, बाढ़, भूस्खलन, अत्यधिक गर्मी, सूखा और जंगल की आग) की संख्या में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है।
हम यहां सिर्फ भारत की अगर बात करेंगे तो कुछ महीनों पहले तक हीटवेव की समस्या ने सभी को काफी परेशान किया था। द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने यह जानकारी दी थी कि पिछले साढ़े तीन महीनों में भारत के कई हिस्सों में महीनों तक चली भीषण गर्मी ने 100 से ज़्यादा लोगों की जान ली है और हीट स्ट्रोक के 40,000 से ज़्यादा मामले सामने आए थे।
स्वास्थ्य अधिकारी चेता रहे हैं : हर साल गर्मी से 1,116 की मौत
स्वास्थ्य अधिकारियों ने सरकार को इस संबंध में चेताया है कि इस तरह के बढ़ते मामले भविष्य के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं और इसे रोकने के लिए एक बेहतर योजना की जरूरत है। स्वास्थ्य अधिकारी यह भी मानते हैं कि गर्मी से मरने वाले लोगों की संख्या हज़ारों में है, लेकिन मृत्यु प्रमाण पत्र पर अक्सर गर्मी को मौत का कारण नहीं लिखा जाता इसलिए संख्या कम दिखाई देती है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययनों में पाया गया कि 2008 से 2019 के बीच हर साल गर्मी के कारण 1,116 लोगों की मौत हुई है।
अब बारिश का कहर : वायनाड में हालात बदतर, लेकिन क्यों?
अब जब हीटवेव और गर्म मौसम से राहत मिली है तो बारिश का कहर सामने है। केरल के वायनाड में एक रात में आए तीन लैंडस्लाइड से पूरे के पूरे गांव तबाह और बर्बाद हो गए हैं। अब तक 270 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। मौसम विभाग ने अलर्ट जारी किया है कि बारिश अभी जारी रहेगी। केरल में मौसम स्थिर रहता है। जहां आमतौर पर ऐसी बारिश नहीं होती। लेकिन मौसम के ऐसे परिवर्तन का क्या कारण है? केरल में इस साल पहली बार हीटवेव के मामले सामने आए थे, जबकि ऐसा वहां होता नहीं है। क्यों मौसम इस तरह रिएक्ट कर रहा है?
माधव गाडगिल कमेटी रिपोर्ट : क्यों की गई अनदेखी?
वायनाड एक पहाड़ी इलाका है। जिसे एक 13 साल पुरानी रिपोर्ट (Madhav Gadgil-Panel Report) में एक पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र बताया गया है। जहां यह चेतावनी दी गई थी कि अंधाधुंध खनन और निर्माण गतिविधियों को रोक दिया जाए। वरना हालात खराब हो सकते हैं। हुआ क्या? वही जो कहा गया था। यहां अंधाधुंध खनन और निर्माण गतिविधियों ने हालात बदतर बना दिए और नतीजा हमारे सामने है।
माधव गाडगिल की अध्यक्षता पैनल ने अगस्त 2011 में केंद्र को सौंपी अपनी रिपोर्ट में मेप्पाडी में पर्यावरण विरोधी गतिविधियों के खिलाफ विशेष रूप से चेतावनी दी थी, जहां एक बड़े भूस्खलन ने एक पूरे गांव को खत्म कर दिया था।
पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ : खतरनाक हो सकते हैं नतीजे
माधव गाडगिल की रिपोर्ट को नजरअंदाज़ किया गया, यह एक उदाहरण है। ऐसे कई उदाहरण भारत में आपको मिल जाएंगे, जहां पर्यावरण के साथ धड़ल्ले से छेड़छाड़ की जा रही है। पेड़ काटे जा रहे हैं, नदियों के रास्तों में घर बनाए जा रहे हैं, निर्माण हो रहे हैं। पानी को गंदा किया जा रहा है।
कुछ दिन पहले एक खबर आई थी कि इस सदी का सबसे गर्म दिन, 21 जुलाई को माना गया था। ऐसा 84 सालों के बाद हुआ था। यह जानकारी कॉपरनिकल क्लाइमेट चेंज (C3S) सर्विस ने जारी की थी। गर्मी से जुड़ी यह खबर, महज एक खबर नहीं बल्कि क्लाइमेट चेंज के बढ़ते प्रभाव को दिखाती है। दक्षिणी यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया, उत्तरी अफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे क्षेत्रों हीटवेव जारी है और ग्रीस, कनाडा और अल्जीरिया में जंगल में आग लगने जैसी गंभीर मौसमी घटनाएं हुई हैं।
