Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक एक्सट्रा मेरिटल अफेयर से जुड़े एक 23 साल पुराने मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक युवक की याचिका खारिज की है, जिसमें उसमें दावा किया था कि वह अपनी मां के एक्सट्रा मैरिटल अफेयर से पैदा हुई संतान है और उसने बायोलॉजिकल पिता के डीएनए टेस्ट और गुजारा भत्ता लेने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा है कि अफेयर के बाद भी पति ही बच्चे का वैध पिता होगा।

बता दें कि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने एक महिला और उसके बेटे की उस याचिका को खारिज करते हुए फैसला सुनाया है। कोर्ट में याचिकाकर्ता का कहना था कि उसका स्वास्थ्य खराब है और सर्जरी के लिए उसे अपने बायोलॉजिकल पिता से भत्ते की आवश्यकता है लेकिन कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दिया है।

आज की बड़ी खबरें

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, महिला को 1991 में अपनी शादी से एक लड़की हुई। 2001 में उसे एक बेटा हुआ और पति का नाम कोचीन नगर निगम द्वारा बनाए गए जन्म रजिस्टर में लड़के के पिता के रूप में दर्ज किया गया। उनके बीच मतभेदों के कारण दंपत्ति 2003 में अलग-अलग रहने लगे। इसके तुरंत बाद उन्होंने तलाक के लिए एक संयुक्त आवेदन दायर किया, जिसे 2006 में एक पारिवारिक अदालत ने मंजूर कर लिया।

महिला के तलाक के बाद उसने नगर निगम से संपर्क किया और अधिकारियों से जन्म रजिस्टर में “पिता” के रूप में किसी अन्य व्यक्ति का नाम दर्ज करने का अनुरोध किया, उसका दावा था कि उसका उस दूसरे व्यक्ति के साथ विवाहेतर संबंध था और वह लड़के का जैविक पिता है। हालांकि निगम ने कहा कि वह ऐसा तभी कर पाएगा जब कानून की अदालत द्वारा निर्देश दिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, अब मेडिकल के एडमिशन में नहीं मिलेगा मूल निवासी वाला आरक्षण

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

इस विवाद पर कई दौर की मुकदमेबाजी हुई और मामला आखिरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने मंगलवार को महिला और उसके बेटे की इस दलील को खारिज कर दिया कि वैधता और पितृत्व अलग-अलग अवधारणाएं हैं, जिनके लिए अलग-अलग निर्धारण की आवश्यकता होती है।

अदालत ने कहा कि वैधता भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 112 के तहत पितृत्व का निर्धारण करती है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने फैसले में कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 की भाषा यह स्पष्ट रूप से बताती है कि एक मजबूत धारणा मौजूद है कि पति अपनी पत्नी द्वारा उनके विवाह के दौरान पैदा किए गए बच्चे का पिता है।

मुस्लिम परिवार में जन्म लेकिन उत्तराधिकार कानून से चाहिए पैतृक संपत्ति पर हक, सुप्रीम कोर्ट के सामने पहुंचा दिलचस्प मामला

सुप्रीम कोर्ट ने किया निजता का उल्लेख

महिला ने जिस व्यक्ति को अपने बेटे का जैविक पिता बताया था, उसने भी इस मामले में याचिका लगाई थी। उसकी अपील पर निर्णय करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे मामलों में हितों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता बताई है। सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी इस दलील को सही बताया और कहा कि ये व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच ने कहा कि बायोलॉजिकल पिता से DNA टेस्ट कराना सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से सही नहीं है क्योंकि इससे उस व्यक्ति की प्राइवेसी का उल्लंघन हो सकता है।

‘कुछ करें’, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार से कहा- आप राज्यों को भी इसमें शामिल कर सकते हैं, समस्या पूरे देश में

‘अफेयर था लेकिन पति के साथ भी तो थे संबंध’

इस दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर ये भी मान लिया जाए कि याचिकाकर्ता की मां एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में थी और उस रिलेशनशिप से बच्चे पैदा हुआ, तब भी ये दलील काफी नहीं है। किसी अन्य या एक से ज्यादा व्यक्ति के साथ संबंध होना ये साबित नहीं करता कि पत्नी के अपने पति से संबंध नहीं थे। ऐसे में बेटे को उसके लीगल पिता की ही संतान माना जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को अपने असली माता-पिता के बारे में जानने का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार के लिए दूसरे व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की अन्य खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।