बंजर और पथरीली जमीन पर उगे नए पेड़, वृक्षारोपण का अधूरा पड़ा टारगेट, राज्य के खजाने में वनों के विस्तार के लिए बिना इस्तेमाल किए पड़ी हजारों करोड़ रुपये की धनराशि, यह भारत के वनीकरण (Compensatory Afforestation) कार्यक्रम की एक झलक है। वनीकरण कार्यक्रम के जरिए विकास के नाम पर साफ किए जा रहे वनों की भरपाई का लक्ष्य रखा गया है, हालांकि अब यह कार्यक्रम अपने टारगेट को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है।

वृक्षारोपण उस जमीन पर किए जाते हैं जहां पहले कम पेड़ उगाए गए थे

इस दिशा में इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (ICIJ) के सहयोग से द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा की गई एक जांच से पता चलता है कि अच्छी गुणवत्ता वाली घनी वन भूमि अक्सर छूट जाती है जबकि नए वृक्षारोपण उस भूमि पर किए जाते हैं, जहां पहले कभी बहुत कम पेड़ उगाए गए थे। वनीकरण कार्यक्रम जरूरी है ताकि इंफ्रास्ट्रक्चर और औद्योगिक परियोजनाओं के कारण वनों के नुकसान की भरपाई की जा सके। यह साल 2030 तक 2.5-3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाने की भारत की प्रतिबद्धता को प्राप्त करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण साधन है।

राष्ट्रीय कोष में 66,000 करोड़ रुपये से अधिक इकट्ठा

प्रतिपूरक वनीकरण कोष (CAF) अधिनियम 2016 के तहत परियोजना डेवलपर्स चाहे वो सरकारी हो या प्राइवेट, मुआवजा राशि और कई अन्य शुल्क का भुगतान करने के लिए बाध्य हैं अगर उनकी परियोजना में वन भूमि में कोई बदलाव होता है। इस धन का उपयोग केवल वनीकरण या संबंधित उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। 2016 में जब कानून बनाया गया था तब से अब तक राष्ट्रीय कोष में 66,000 करोड़ रुपये से अधिक एकत्र किए गए हैं।

60% फंड का नहीं किया गया इस्तेमाल

आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि पिछले पांच सालों में लगभग 55,000 करोड़ रुपये ही राज्य सरकारों को हस्तांतरित किए जा चुके हैं, जिनका उपयोग वृक्षारोपण के लिए किया जा सकता है। हालांकि, केवल 22,466 करोड़ रुपये जोकि इस राशि का लगभग 40 प्रतिशत वनीकरण कार्यों के लिए आवंटित किया गया था। अधिकारियों ने कहा कि बाकी पैसा राज्य सरकार के खातों में बेकार पड़ा है। पैसा अक्सर सही समय पर जारी नहीं किया जाता है। अधिकारियों ने कहा कि वृक्षारोपण का मौसम होता है।

सरकारी अधिकारियों का कहना है कि वनीकरण के लिए पैसा केवल चरणों में इस्तेमाल किया जा सकता है और यह एक बार का खर्च नहीं है। रिकॉर्ड यह भी बताते हैं कि इस उद्देश्य के लिए चिन्हित की गयी जमीन के कम से कम 90 प्रतिशत पर वनीकरण गतिविधियां शुरू कर दी गई हैं। इसका एक बड़ा कारण यह है कि नए वृक्षारोपण को जंगल में विकसित होने में कई साल लग जाते हैं और अधिकांश प्रतिपूरक वनीकरण अभी भी अपेक्षाकृत नया है। हालांकि, मुख्य चुनौती मुख्य रूप से भूमि की गुणवत्ता है जिस पर वृक्षारोपण किया जा रहा है।